मैनपुरी में सपा की जीत और रामपुर में बीजेपी की विजय पर बसपा सुप्रीमो मायावती ने सवाल उठाए हैं. पूर्व सीएम ने ट्वीट कर लिखा कि, ‘यूपी के मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव में सपा की हुई जीत किन्तु रामपुर विधानसभा उपचुनाव में आज़म ख़ान की ख़ास सीट पर योजनाबद्ध कम वोटिंग करवाकर सपा की पहली बार हुई हार पर यह चर्चा काफी गर्म है कि कहीं यह सब सपा व भाजपा की अन्दरूनी मिलीभगत का ही परिणाम तो नहीं?’
खतौली में बीजेपी की हार पर संदेह- मायावती
मायावती ने अपने ट्वीट में आगे लिखा कि, इस बारे में ख़ासकर मुस्लिम समाज को काफी चिन्तन करने व समझने की भी ज़रूरत है, ताकि आगे होने वाले चुनावों में धोखा खाने से बचा जा सके. खतौली विधानसभा की सीट पर भाजपा की हुई हार को भी लेकर वहां काफी सन्देह बना हुआ है, यह भी सोचने की बात है।
आगामी चुनाव की तैयारी में जुटी बसपा
दरअसल, बहुजन समाज पार्टी ने यूपी में किसी भी उपचुनाव में हिस्सा नहीं लिया. मायावती ने मैनपुरी लोकसभा, रामपुर और खतौली विधानसभा उपचुनाव में पार्टी का कोई प्रत्याशी चुनावी मैदान में नहीं उतारा. उत्तर प्रदेश की राजनीति में बसपा लगातार पिछड़ती जा रही है. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में भी बसपा को सिर्फ एक सीट पर जीत मिली थी, लेकिन लगातार मिल रही हार से सबक लेते हुए मायावती ने लोकसभा चुनाव 2024 के लिए तैयारी तेज कर दी है. आगामी चुनाव और पिछले चुनावों में मिली हार को देखते हुए बसपा अब दलित-मुस्लिम वोट बैंक पर नजर बनाए हुए है.
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2007 में सोशल इंजीनियरिंग फार्मूले से पूर्ण बहुमत की सत्ता हासिल करने का दावा करने वाली बसपा ने नगर निकाय और लोकसभा चुनाव को लेकर रणनीति बदलनी शुरू कर दी है. बीएसपी चीफ मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग को छोड़कर पुराने ट्रैक पर लौटने का फैसला किया है.
बीएसपी चीफ ने बरेली समेत सभी जिलों के संगठन पदाधिकारियों को दलित, मुस्लिम और पिछड़ों को जोड़ने के निर्देश दिए हैं. पार्टी का मानना है कि ब्राह्मण वोट नहीं मिल रहा है. लेकिन, उसकी वजह से बेस वोट दूर होता जा रहा है. बीएसपी चीफ मायावती के बदलते रुख के कारण ही यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के बाद से सतीश चंद्र मिश्रा कम दिखाई दे रहे हैं, जबकि बसपा सरकार में महत्वपूर्ण विभाग संभालने वाले उनके रिश्तेदार भाजपा, कांग्रेस आदि दलों की तरफ रुख कर रहे हैं. इसको लेकर सियासी गलियारों में चर्चाएं भी शुरू हो गई हैं.