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मजबूरी या कोई सोची-समझी चाल, 3 बार फेल हो चुका दांव फिर क्यों आजमा रहे अरविंद केजरीवाल?

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आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भले ही दिल्ली में पार्टी के सबसे बड़े संकट का सामना कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने ‘विस्तार प्लान’ को पहले की तरह जारी रखा है।

पहले राजस्थान और फिर अगले ही दिन मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए अभियान का आगाज करके उन्होंने इरादे साफ कर दिए हैं। भोपाल में तो उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं के सामने जिस तरह का भाषण दिया,

उसे 2023 ही नहीं 2024 को लेकर अहम संकेत के तौर पर भी देखा जा रहा है। उन्होंने एक बार फिर ‘ब्रैंड मोदी’ पर सीधा और तीखा वार करके राजनीतिक विश्लेषकों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। हालांकि, उनका यह दांव कम से कम तीन बार फेल हो चुका है। लेकिन एक बार फिर उन्होंने इसे आजमाया है।

भोपाल में मंगलवार को ‘आप’ संयोजक ने बेहद आक्रामक अंदाज में पीएम नरेंद्र मोदी पर वार किया और उन्हें ‘नासमझ’ और ‘अनपढ़’ तक कह डाला।

केजरीवाल ने कहा कि जिस दिन मनीष सिसोदिया को गिरफ्तार किया गया उस दिन उन्हें लगा कि देश का पीएम पढ़ा-लिखा होना चाहिए। दिल्ली के सीएम ने कहा कि यदि पीएम पढ़े-लिखे होते तो सिसोदिया को पूरे देश का शिक्षा मंत्री बना देते, लेकिन उन्होंने उसे जेल में डाल दिया।

आप संयोजक ने नोटबंदी और कोरोना महामारी के दौरान थाली बजवाने का उदाहरण देते हुए कहा कि पीएम मोदी की समझ कम है। अब भाजपा ने इस पर पलटवार करते हुए इसे आसमान पर थूकने जैसा बताया है।

-पहले भी मोदी पर किए तीखे वार, उठाना पड़ा नुकसान :

यह पहली बार नहीं है कि केजरीवाल ने मोदी के खिलाफ तीखे शब्दों का इस्तेमाल किया। वह इससे पहले भी कई बार मोदी के खिलाफ बेहद आक्रामक रुख अख्तियार कर चुके हैं।

लेकिन हर बार उन्हें यह दांव उलटा पड़ा और फायदे की बजाय नुकसान ही उठाना पड़ा। यही वजह है कि उन्हें बार-बार अपनी रणनीति बदलनी भी पड़ी।

2014 में मोदी को बनारस सीट पर टक्कर देने पहुंचे केजरीवाल को करारी हार का सामना करना पड़ा था। तब मोदी के खिलाफ बेहद आक्रामक रहे केजरीवाल ने के सुर बाद में कुछ नरम पड़े थे।

लेकिन 2015 में दिल्ली के विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत मिलने के बाद उन्होंने एक बार फिर मोदी को निशाने पर लेना शुरू किया।

हालांकि, 2017 में जब उन्हें पंजाब और दिल्ली एमसीडी चुनाव में उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिली तो करीब सालभर वह मोदी का नाम लेने से बचते दिखे।

2019 लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर दिल्ली के सीएम ने मोदी के खिलाफ मोर्चा खोला।

लेकिन लोकसभा चुनाव में महज एक सीट जीतने के बाद उन्होंने फिर से रणनीति बदली और मोदी की बजाय भाजपा का नाम लेकर ही हमले करते दिखे।

हाल ही में संपन्न हुए गुजरात चुनाव में भी वह मोदी की बजाय प्रदेश नेतृत्व को ही निशाने पर रखा।

-एक बार फिर बदली रणनीति :


हालांकि, एक बार फिर केजरीवाल ने भोपाल की रैली में बदली रणनीति का संकेत दिया। उन्होंने यहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर एकाध बार ही निशाना साधा और अपने तरकस के सारे तीर पीएम मोदी पर साधे।

जिस तरह उन्होंने पीएम मोदी को ‘अनपढ़’ और ‘नासमझ’ तक कह डाला उसके बाद माना जा रहा है कि वह एक बार फिर बेहद आक्रामक रुख अपनाते हुए ‘ब्रैंड मोदी’ को चुनौती दे सकते हैं।

ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्यों उन्हें एक बार फिर फेल हुए दांव को आजमाना पड़ा है?

क्या हो सकती हैं वजहें:


आखिर क्यों केजरीवाल ने एक बार फिर अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए पीएम मोदी पर सीधा वार शुरु किया है? इस सवाल के जवाब में कई राजनीतिक विश्लेषकों अलग-अलग वजहें गिनाते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं।

-कुछ विश्लेषकों का मानना है कि केजरीवाल अपने ‘दाएं हाथ’ मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी को लेकर आक्रोश में। केंद्रीय जांच एजेंसियों ने जिस तरह उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के कई आरोपों में को लेकर शिकंजा कसा है उसके बाद केजरीवाल को रणनीति बदलनी पड़ी है।

-कुछ जानकारों का मानना है कि केजरीवाल 2024 में खुद को मोदी के विकल्प के तौर पर पेश करने में जुट गए हैं। पिछले कुछ समय में कई दलों के साथ दोस्ती भी बढ़ाई है। उनकी पार्टी हाल के समय में कई बार कह चुकी है कि अगला लोकसभा चुनाव मोदी बनाम केजरीवाल होने जा रहा है।

-यह भी कहा जा रहा है कि केजरीवाल ने मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की बजाय मोदी को ही इसलिए टारगेट पर रखा क्योंकि वह जानते हैं कि भाजपा यहां भी पीएम के चेहरो को ही आगे रखकर चुनाव लड़ सकती है। यह भी चर्चा है कि चुनाव से ठीक पहले बीजेपी नेतृत्व परिवर्तन भी कर सकती है। ऐसे में केजरीवाल ने मोदी पर वार करना ही ठीक समझा।