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पूर्णेश मोदी, बीजेपी के वो विधायक जिनके कारण रद्द हुई राहुल गांधी की सदस्यता!

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कांग्रेस नेता राहुल गांधी को सूरत की ज़िला अदालत ने आपराधिक मानहानि के एक मामले में दोषी करार देते हुए दो साल की सज़ा सुनाई है. हालांकि, अदालत ने सज़ा को 30 दिनों के लिए निलंबित करते हुए राहुल गांधी को ज़मानत दे दी.

इस बीच सज़ा की घोषणा होने के बाद राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता रद्द कर दी गई. राहुल गांधी ने शनिवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया दी.

उन्होंने संवाददाता सम्मेलन में अपनी सदस्यता रद्द करने का कारण बताते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी और अदानी के संबंधों पर सवाल उठाने के लिए उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की गई है.

लेकिन इस पूरे मामले में जो चेहरा चर्चा में आया है और वह हैं सूरत के बीजेपी नेता पूर्णेश मोदी का. राहुल गांधी के ख़िलाफ़ पूर्णेश मोदी ने ही अदालत का दरवाज़ा खटखटाया था.

पूर्णेश मोदी आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) के कार्यकर्ता माने जाते हैं. वह एबीवीपी (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) में भी सक्रिय थे.

जब वे सूरत में गणेश उत्सव समिति के अध्यक्ष थे तब ख़ासतौर से उनका राजनीतिक ग्राफ बढ़ा.

जानिए कौन हैं पूर्णेश मोदी और क्या हैं उनसे जुड़े विवाद.

कौन हैं पूर्णेश मोदी?

54 साल के पूर्णेश मोदी वर्तमान में सूरत पश्चिम से भाजपा के विधायक हैं. बीकॉम और एलएलबी डिग्री के साथ पूर्णेश मोदी पेशे से वकील भी हैं.

वे गुजरात की भूपेंद्र पटेल सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. उन्होंने पहली बार 2013 में सूरत पश्चिम सीट से विधानसभा उपचुनाव जीता था. स्थानीय विधायक किशोर वंकावाला के निधन के बाद बीजेपी ने उन्हें इस सीट से टिकट दिया था.

उन्हें सड़क एवं भवन विभाग मंत्रालय का काम सौंपा गया. लेकिन अगस्त 2022 में उनके ‘ख़िलाफ़ काम न करने की शिकायत’ के बाद उनसे ये पोर्टफोलियो छीन लिया गया.

बाद में 2022 में हुए गुजरात विधानसभा के चुनाव में पूर्णेश मोदी ने विधायक के रूप में जीत हासिल की, हालांकि भूपेंद्र पटेल 2.0 सरकार में उन्हें कोई मंत्री पद नहीं दिया गया.

वे विधानसभा में संसदीय सचिव भी रह चुके हैं. बीजेपी में शुरू से सक्रिय रहने वाले पूर्णेश मोदी सूरत नगर निगम में सत्ताधारी पार्टी के नेता के तौर पर भी काम कर चुके हैं.

वे सूरत शहर भाजपा के अध्यक्ष भी बने. हालांकि, उनके राजनीतिक करियर में कुछ विवाद और कुछ नेताओं से मतभेद भी हुए.

वह 2000 से 2005 तक सूरत नगर निगम में पार्षद रहे हैं. इस बीच, वह सूरत नगर निगम में सत्तारूढ़ दल के नेता भी थे.

इसके अलावा वे सूरत नगर निगम में स्थायी समिति के अध्यक्ष भी रहे. उसके बाद 2009 से 2012 और 2013 से 2016 तक सूरत शहर में बीजेपी के अध्यक्ष भी रहे.

पूर्णेश मोदी या ‘भूतवाला’?

राहुल गांधी के ‘मोदी सरनेम मानहानि मामले’ की सुनवाई के दौरान पूर्णेश मोदी के सरनेम को लेकर भी सवाल उठा.

राहुल गांधी के बचाव पक्ष के वकील किरीट पानवाला ने कोर्ट में तर्क दिया कि पूर्णेश मोदी का उपनाम मोदी नहीं बल्कि ‘भूतवाला’ है. उन्होंने कहा कि जब वह यह तर्क देते हैं कि राहुल गांधी ने उनका अपमान किया है तो वो झूठ कहते है.

पूर्णेश मोदी के मित्र और राजनीतिक समर्थक अशोक गोहिल कहते हैं, “उनके पूर्वज सूरत के भूत स्ट्रीट में रहते थे, इसलिए उनका मातृ उपनाम ‘भूतवाला’ था. उनके जन्म प्रमाण पत्र में भी उनका उपनाम ‘भूतवाला’ ही था, लेकिन बाद में उन्होंने अपना उपनाम बदलकर मोदी कर लिया.”

“वह गुजरात के घांची समुदाय से आते हैं. पूर्णेश मोदी ने इस मामले में सबूत के तौर पर अपने नाम परिवर्तन का एक हलफनामा भी पेश किया है कि वह मोदी हैं और भूतवाला नहीं हैं.”

पूर्णेश मोदी के जीवन के बारे में वे कहते हैं, “पूर्णेश मोदी के पिता ने सूरत के एक अस्पताल में कैंटीन का ठेका लिया था और वो लोगों को चाय-नाश्ता देते थे. इस समय पूर्णेश मोदी भी अपने पिता की मदद करते थे और चाय बेचते थे.”

घांची और गोला दो ओबीसी समुदाय हैं जिसकी सूरत में अच्छी खासी आबादी है और इसीलिए पूर्णेश मोदी की इस समुदाय पर भी पकड़ मानी जाती है.

पूर्णेश मोदी को लेकर विवाद

राजनीति के कुछ जानकारों का मानना ​​है कि जब पूर्णेश मोदी भूपेंद्र पटेल सरकार में मंत्री थे, तो गुजरात बीजेपी अध्यक्ष सीआर पाटिल के साथ उनका मतभेद था. और भी कई विवादों के चलते उन्हें अपना मंत्री पद गंवाना पड़ा था.

टूटी सड़कों को लेकर उन्होंने अक्सर विवादित बयान दिए थे. उनके पीए महेश लाड पर मनमानी करने का आरोप भी लगा था. इस वजह से एसटी व्यवस्था में तबादलों को लेकर विवाद भी हुआ.

उनके सड़क एवं भवन विभाग के प्रदर्शन को उच्चतम स्तर पर भी पेश किया गया. उन पर पार्टी द्वारा की गई सिफारिशों पर ध्यान नहीं देने का भी आरोप लगा था. साथ ही यह आरोप भी लगे कि वह पर्सनल ऐप बनाकर अपनी लोकप्रियता बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे.

हालांकि, कुछ लोगों का कहना है कि ये ऐसे विवाद नहीं थे, जिनसे अन्य नेताओं के साथ उनके रिश्ते में खटास आई हो.

जब वे मंत्री थे, उस दौरान मानसून के वक्त सड़कें गिर गईं. इस पर उन्होंने एक विवादास्पद बयान दिया कि ‘मानसून के दौरान सड़कों का गिरना सामान्य बात है.’

उन्होंने कहा कि “सड़कें कोलतार और पानी के बीच नहीं होती हैं इसलिए टूट जाती हैं और मीडिया को इस मामले को अधिक तूल नहीं देना चाहिए.”

उनसे इस बयान के बाद विवाद खड़ा हो गया. एक और विवादित बयान में उन्होंने कहा कि “अच्छा हुआ कि कसाब जिंदा पकड़ा गया, नहीं तो कांग्रेस उसे भगवा आतंक में मार देती.”

इसके अलावा, उन्होंने बिना कोई सबूत दिए कांग्रेस पर आरोप लगाए कि “1965 के युद्ध के बाद कांग्रेस सरकारी क्षेत्र को पाकिस्तान को सौंपना चाहती थी.”

जब पूर्णेश मोदी से छीना गया मंत्री पद

पूर्णेश मोदी को 2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले मंत्री पद से हटा दिया गया था. उस समय पूर्णेश कैबिनेट मंत्री थे.

उनके पास सड़क एवं भवन विभाग मंत्रालय था जिसे उनसे लेकर जगदीश पांचाल को सौंप दिया गया. माना जाता है कि बीजेपी के एक बड़े नेता से झड़प के चलते ये कदम उठाया गया था.

सूरत में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार और गुजरात गार्डियन दैनिक के संपादक मनोज मिस्त्री कहते हैं कि प्रदेश में भाजपा गुटों में बंटी हुई है और पूर्णेश मोदी अभी तक यह तय नहीं कर पाए हैं कि वे किस गुट के हैं.

मनोज मिस्त्री कहते हैं, “सीआर पाटिल के साथ मतभेद की वजह से उन्हें दरकिनार कर दिया गया.”

सूरत स्थित समाचार पत्र ढाबकर के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार नरेश वारिया कहते हैं, “जब से पाटिल और पूर्णेश मोदी ने एक-दूसरे का साथ छोड़ा है, तब से पूर्णेश मोदी को किनारे कर दिया गया है.”

क्या पाटिल से दूरी पूर्णेश मोदी के लिए झटका साबित ?

राजनीतिक मामलों पर नज़र रखने वालों का कहना है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में लोगों को लगा था कि सीआर पाटिल से अनबन की वजह से पूर्णेश को टिकट नहीं मिलेगा, लेकिन पीएम मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पूर्व मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल से अच्छे संपर्क होने की वजह से उन्हें टिकट मिला.

मनोज मिस्त्री और नरेश वारिया दोनों मानते हैं कि साफ छवि के कारण उनकी जगह पार्टी में मज़बूत बनी रही है.

मनोज मिस्त्री कहते हैं, “बीजेपी की आंतरिक गुटबाज़ी के कारण उन्हें दरकिनार कर दिया है. वे फ्रंट मैन नहीं हैं, लेकिन वे शांत कार्यकर्ता हैं इसलिए पार्टी भविष्य में उनका इस्तेमाल कर सकती है.”

वो कहते हैं, “वे जुझारू जज़्बे वाले नेता हैं. सूरत शहर के लोगों में उनका सम्मान है. राजनीतिक रूप से उन्हें एक सज्जन व्यक्ति माना जाता है और वह सूरत में बीजेपी के तौर पर देखे जाते हैं.”

वो कहते हैं कि प्रदेश में पार्टी के भीतर उन्हें दरकिनार ज़रूर कर दिया गया था लेकिन उन्होंने वह काम किया जो उन्हें भाजपा ने सौंपा था.

वो कहते हैं, “भाजपा मोदी मंडल के मन में उनके लिए सम्मान है. वह उनकी अच्छे मंत्रियों के सूची में हैं. अब तो इस मामले में पीएम मोदी के लिए अच्छा काम करने का गुण भी उनके करियर में जुड़ गया है. इसलिए उनके राजनीतिक करियर पर कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए.”

वहीं नरेश वारिया कहते हैं कि सीआर पटेल के साथ सभी उनके अच्छे संबंध थे, हालांकि बाद में दोनों के बीच अक अलग तरह की लड़ाई शुरू हो गई.

कहते हैं, “जब सीआर पाटिल हीरक जयंती सहकारी बैंक घोटाले में जेल गए थे, तब सूरत बीजेपी में पूर्णेश मोदी एकमात्र नेता थे जो उनके साथ खड़े थे. लेकिन बाद में दोनों के बीच सत्ता का खेल शुरू हो गया.”

वो कहते हैं, “सीआर पाटिल के साथ कभी उनके संबंध अच्छे थे. सूरत के नागरिकों और अन्य नेताओं से भी उनके संबंध मज़बूत हैं और उनका नाम किसी बड़े विवाद में शामिल नहीं है, इसलिए बीजेपी भविष्य में उनका इस्तेमाल कर सकती है.”

वो कहते हैं, “जब वे नगर अध्यक्ष थे तब भाजपा का प्रदर्शन अच्छा था. जब वे नगर पालिका में थे तब भी उनका काम अच्छा था. वे एक सफल चुनावी रणनीतिकार हैं और उनका संगठन का काम बहुत अच्छा है. कार्यकर्ताओं पर पकड़ अच्छी है. संगठनात्मक कार्य अच्छा है. वह एक अच्छे फंड मैनेजर हैं. उनके मीडिया के अच्छे संपर्क हैं. सीआर पाटिल के साथ मतभेदों को छोड़कर, उन्हें लेकर कोई विवाद नहीं है.”

क्या इस मामले से मिलेगा राजनीतिक फायदा मिलेगा?

जानकारों का कहना है कि इस मामले के बाद पूर्णेश मोदी सुर्खियों में आ गए हैं. हालांकि कुछ का कहना है कि इससे उनका फायदा होने की संभावना लगभग नहीं के बराबर है.

मनोज मिस्त्री मानते हैं कि इस मामले से उनकी राजनीतिक साख ज़रूर बढ़ी है, लेकिन इससे उन्हें इस समय कोई फायदा होने की संभावना नहीं है.

वो कहते हैं, “अगर इस मामले में राहुल गांधी को जेल जाना पड़ा तो तो बीजेपी की मौजूदा स्थिति को देखते हुए इसका श्रेय उन्हें मिलने की संभावना बहुत कम है. उन्हें गुजरात सरकार में मंत्री पद मिलने या निगम का अध्यक्ष बनाए जाने की संभावना भी बेहद कम है.”

दरअसल यह मामला साल 2019 का है. भले ही उन्होंने राहुल गांधी के ख़िलाफ़ मुक़दमा किया था, लेकिन विवादों के कारण उन्हें 2022 में गुजरात सरकार के मंत्री पद से हटा दिया गया था.

नरेश वारिया कहते हैं कि अगर आगे उन्हें कोई बड़ा पद मिलता है तो वो उनकी पिछली प्रतिष्ठा और काम पर होगा न कि इस मामले की वजह से.

वो कहते हैं, “अगर उनका राजनीतिक करियर उड़ान भरता है तो वह इस केस के आधार पर नहीं बल्कि अतीत में उनके द्वारा किए गए काम और उनके सांगठनिक काम की वजह से होगा.”

“आप ये भी देखें कि मोदीमंडल के नेताओं के साथ उनके अच्छे संपर्क होने के बावजूद, उन्हें अभी तक मंत्री नहीं बनाया गया है, इसलिए इस मामले से उन्हें बहुत लाभ होने की संभावना नहीं है.”