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रूस ने इस बांध को तोड़ा या यूक्रेन ने, टूटने से किसे फ़ायदा

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काखोव्का बांध टूटने के बाद की तस्वीर.

दक्षिणी यूक्रेन के रूसी कब्जे वाले खेरसॉन प्रांत में एक विशाल बांध टूट गया है.

बांध के टूटने से निचले इलाक़े में बाढ़ आ गई है.

लेकिन इस तबाही से आख़िर किसका फ़ायदा है?

रूस और यूक्रेन दोनों ही देश एक-दूसरे पर बांध तोड़ने का आरोप लगा रहे हैं.

पिछले साल हुए नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन धमाके की गुत्थी अभी तक नहीं सुलझी है.

दोनों ही मामलों में पश्चिमी देशों ने रूस को शक के घेरे में रखा. जबकि दोनों ही मौक़ों पर रूस ने अपने ऊपर लग रहे आरोपों को सिरे से नकारा है.

मॉस्को की तरफ़ से कहा गया कि इन घटनाओं के पीछे उसका हाथ नहीं है. रूस ने कहा था, “आख़िर हम ऐसा क्यों करेंगे? ये हमले हमें ही नुकसान पहुंचाते हैं.”

रूस क्यों नहीं तोड़ेगा बांध?

काखोव्का बांध टूटने के मामले में रूस कम से कम दो बिन्दुओं को आधार बनाकर ये दावा कर सकता है कि यह क़दम उसके हितों को नुक़सान पहुंचाएगा.

पहला, बांध टूटने से नीप्रो नदी के आसपास का इलाक़ा बाढ़ के कारण डूब गया है.

इसके चलते मजबूरन रूस को अपने सैनिकों और नागरिकों को खेरसॉन प्रांत से दूर पूर्व की तरफ़ निकालना पड़ा.

यह खेरसॉन के निवासियों को थोड़ी सी राहत भी देगा, जिन्हें अपनी ज़िंदगी रूसी तोपखाने और मिसाइल हमलों के बीच गुजारनी पड़ती है.

दूसरा, इससे रूसी कब्ज़े वाले क्राइमिया को पानी पहुंचाने वाली व्यवस्था भी प्रभावित होगी.

क्राइमिया ताज़े पानी के लिए टूटे हुए बांध के क़रीब मौजूद नहर पर निर्भर रहता है.

2014 में क्राइमिया पर रूस के अवैध कब्जे के बाद दोनों ही देश (रूस और यूक्रेन) इस पर अपनी दावेदारी पेश करते आए हैं.

क्या ये यूक्रेन का जवाबी हमला है?

काखोव्का बांध के टूटने को रूस-यूक्रेन के व्यापक संदर्भ और ख़ास तौर पर यूक्रेन के जवाबी हमले के तौर पर देखने की ज़रूरत है.

इस जवाबी हमले के सफल होने के लिए, यूक्रेन को पिछले साल ज़ब्त किए इलाक़े पर रूस का दबदबा तोड़ने की ज़रूरत है.

यूक्रेन द्वारा ज़ब्त किया गया यह इलाक़ा क्राइमिया को उसके पूर्वी क्षेत्र डोनबास से जोड़ता है.

अगर यूक्रेन ज़ेपोरिज़िया शहर के दक्षिणी इलाक़े में रूस के रक्षा कवच को तोड़कर इसे दो हिस्से में बाँट देता है तो यह क्राइमिया को अलग-थलग कर सकता है.

इस क़दम से यूक्रेन एक बड़ी रणनीतिक जीत हासिल कर सकता है.

लेकिन रूस ने पिछले साल फ़रवरी में किए आक्रमण के बाद बहुत कुछ सीखा है.

उन्होंने नक्शे को देखा, उन जगहों पर काम किया, जहाँ यूक्रेन के हमला करने की आशंका सबसे अधिक है.

इसके अलावा रूस ने पिछले कुछ महीनों में अज़ोव सागर की ओर यूक्रेन के हमले को रोकने के लिए किलेबंदी भी तैयार की है.

हालांकि अभी तक इस बात की पुष्टि नहीं हुई है कि यूक्रेन इस किलेबंदी के पश्चिमी हिस्सों में अपनी सेना भेजने की तैयारी कर रहा था.

कीएव में मौजूद हाइ कमांड ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं जिससे रूस अनुमान लगाता रहे.

लेकिन अब यह कार्रवाई, जिसने भी की हो और अधिक समस्याएं खड़ी कर देगी.

नीप्रो नदी पहले से ही काफ़ी फैली हुई है और यूक्रेन के दक्षिणी हिस्से तक पहुंचते-पहुंचते ये और विस्तृत हो जाती है. ऐसे में रूसी तोपखाने, मिसाइल और ड्रोन हमलों के बीच यहां से बख़्तरबंद गाड़ियां ले जाना ख़तरे से ख़ाली नहीं होगा.

इलाके़ में रूस का इतिहासबांध टूटने के बाद खेरसॉन प्रांत मेंं आई बाढ़.

बांध अब टूट चुका है और खेरसॉन के सामने वाले पूर्वी तटों के निचले इलाक़ों में बाढ़ आ गई है.

बाढ़ प्रभावित इलाक़ा अब यूक्रेनी सेना के लिए काफ़ी चुनौतीपूर्ण बन गया है.

एक ऐतहासिक तथ्य ये भी है कि इस क्षेत्र में रूस का अतीत रहा है.

1941 में सोवियत सैनिकों ने नाज़ी सैनिकों को रोकने के लिए इसी नीप्रो नदी पर बने पुल को उड़ा दिया था. कहा जाता है कि इससे आई बाढ़ में हज़ारों सोवियत नागरिक मारे गये थे.

हालांकि, अब लब्बोलुआब यही है कि जिसने भी काखोव्का बांध को उड़ाया है, उसने दक्षिणी यूक्रेन में रणनीतिक बिसात को उलट दिया है.

इस घटना ने दोनों पक्षों को कई बड़े सुधार करने को मज़बूर किया और संभवत: लंबे समय से किए गए जवाबी हमले में यूक्रेन के अगले कदम में देरी हो रही है.

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