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भारत बनेगा स्मार्ट डिवाइस की ‘जान’,पीएम मोदी का बना यूएस से एक लाख करोड़ लाने का प्लान!

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दुनिया के किसी भी स्मार्ट डिवाइज की जान उसकी चिप होती है. डिवाइस जिनकी ज्यादा स्मार्ट होगी, उसमें सबसे ज्यादा चिप होगी. चिप के इस खेल में चीन महारथी है. मौजूदा समय में यही वो जमीन है जिस पर अमेरिका चीन को मात देना चाहता है, लेकिन अमेरिका ये काम अकेला नहीं कर सकता है.

चीन को अगर मात देनी है तो भारत को साथ लेना होगा. अमेरिका को ये पता है अगर चीन की ‘जान’ को निकालना है तो भारत को दुनिया के हर डिवाइस की ‘जान’ बनाना होगा. इसके लिए भारत भी पूरी तरह से दिख रहा है. अमेरिका और चीन के इस ‘इकोनॉमिक वॉर’ में भारत अपना फायदा देख रहा है. जिसमें भारत के पीएम नरेंद्र मोदी की अमेरिकी यात्रा काफी अहम मानी जा रही है.

शुक्रवार को ही सूत्रों के हवाले से खबर मिली है कि भारत में अमेरिकी चिपमेकर कंपनी माइक्रॉन एक बिलियन डॉलर का निवेश कर सकती है. जोकि आने वाले दिनों में 2 बिलियन डॉलर का निवेश हो सकता है. यह महज एक शुरूआत है. क्योंकि खबर ये भी है भारत के पीएम की य​ह विजिट सेमीकंडक्टर और ईवी सेक्टर में भारत एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा यानी 12 बिलियन डॉलर से ज्यादा का निवेश निवेश जुटा सकती है.

अभी इस बारे में कोई आधिकारिक ऐलान नहीं हुआ है. सिर्फ इस फेहरिस्त में सिर्फ माइक्रॉन ही नहीं बल्कि अमेरिका की दूसरी चिपमेकर कंपनी भी दिलचस्पी दिखा सकती है. साथ ही पीएम मोदी की यूएस विजिट टेस्ला के भारत आने के रास्ते को और भी ज्यादा आसान बना सकती है. आइए जरा सिलसिलेवार तरीके से समझने की कोशिश करते हैं आखिर इन दो सेक्टर से एक लाख करोड़ रुपये का निवेश कैसे आने की संभावना है.

आधे दर्जन से ज्यादा चिप कंपनियों की मिल सकती है हरी झंडी

अमेरिका और अमेरिकी कंपनियों के पास पैसों की कोई कमी नहीं. बस उन्हें एक ऐसी मुफीद जगह चाहिए जहां उनके प्रोडक्ट का निर्माण हो सके और सप्लाई चेन में कोई बाधा नहीं पहुंचे. चीन से चल रही खटपट के बाद भारत अमेरिकी कंपनियों को काफी मुफीद जगह दिखाई दे रही है. इस बात को दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी एपल ने साबित किया है. ऐसे में माइक्रॉन टेक्नोलॉजी का भारत में निवेश की खबरें कोई चौंकाने वाली बात नहीं है. साथ ही इस फेहरिस्त में एपल का भी नाम जुड़ सकता है, जो खुद सेमीकंडटर का निर्माण करती है. भारत में उसकी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स में फोन बनाए जा रहे हैं.

वहीं इंटेल, क्वालकॉम, माइक्रोचिप टेक्नोलॉजी, मैक्सिम इंटीग्रेटिड, टेक्सास इंस्ट्रूमेंट, एनविडिया, फेहरिस्त काफी लंबी है, आप नाम लेते चले जाइए. इन तमाम कंपनियों के साथ मुलाकात भी होगी और निवेश पर चर्चा भी होगी. इस पर अमेरिकी सरकार की सहमति भी होगी. मतलब साफ है कि ये मुलाकात, बात और सहमति भारत को सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में 50 से 75 हजार करोड़ रुपये का निवेश दिलाने में कामयाब हो सकती है. ये निवेश कोई बड़ी बात भी नहीं है, क्योंकि ये रकम अभी शुरूआती दिखाई दे रही है. इसमें काफी इजाफा हो सकता है.

भारत सरकार सेमी कंडक्टर पर खर्च करेगी 10 बिलियन डॉलर

वहीं दूसरी ओर भारत सिर्फ विदेशी पैसों पर ही निर्भर नहीं है, बल्कि सरकार भी इसमें निवेश करने का ऐलान कर चुकी है. सरकार भारतीय चिपमेकर्स को 10 बिलियन डॉलर की पीएलआई स्कीम का ऐलान कर चुकी है. ऐसे में भारत चिप पर अपनी पिच पूरी तरह से तैयार कर चुका है. अब इंतजार है 21 जून का जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका की राजकीय यात्रा पर होंगे और दुनिया के दो सबसे पॉवर राष्ट्रध्यक्ष चीन को ​आर्थिक तौर पर ठिकाने लगाने पर बात करेंगे. साथ ही दुनिया के डिवाइसेस की जान यनी चिप की जिम्मेदारी भारत को मिलेगी. क्योंकि दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने वाली चीजों में चौथे नंबर की चिप सिरमौर चीन के सामने भारत को बनाना काफी जरूरी हो गया है.

ईवी पर भी फोकस

भारत का फोकस ईवी पर भी है. देश और विदेशों की तमाम कंपनियां ईवी पर काम कर रही है. हाल ही में खबर आई है ​फॉक्सकॉन भी भारत में ईवी का प्लांट लगाने जा रहा है. ऐसे में भारत में टेस्ला की भी क्यों ना एंट्री कराई जाए. भारत सरकार और टेस्ला का रिश्ता कुछ समय से खट्टा मीठा रहा है. जिसकी वजह से अभी कोई बात पुख्ता नहीं बन सकी है. वैसे कुछ दिन पहले खबर आई थी कि टेस्ला भारत में मैन्युफैक्चरिंग के साथ अपना स्टोर भी खोलेगा वो भी सरकार की शर्तों के साथ. वहीं भारत सरकार ने भी कहा है कि अगर राज्य सरकार चाहे तो टेस्ला को टैक्स में छूट देकर मदद कर सकती है. उसके बाद मामला थोड़ा ठंडा है, लेकिन पीएम मोदी की अमेरिका विजिट ने इस चर्चा को फिर से गर्म कर दिया है.

जानकारों की मानें तो पीएम मोदी की यह अमेरिकी विजिट टेस्ला के लिए सभी रास्ते खोल देगी. इसका एक कारण भी है. रास्ते खोल देने से भारत में करीब 3 अरब डॉलर का निवेश सामने होगा. टेस्ला भारत में अपने प्लांट के लिए और बाकी काम के लिए भारत में 3 अरब डॉलर का निवेश कर सकते हैं. जोकि शुरुआती रकम होगी. क्योंकि चीन से अमेरिका की खटपट टेस्ला के लिए भी बड़ी मुसीबत बन सकती है. चीन टेस्ला का बड़ा बाजार है. ऐसे में चीन से प्रोडक्शन बंद ना करते हुए भारत में 3 बिलियन डॉलर का चांस टेस्ला लेने का प्लान बना सकती है.