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काॅमन सिविल कोड को लेकर हंगामा जानें क्या होंगे बदलाव

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काॅमन सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता एक बार फिर चर्चा में है,

वजह है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मंगलवार को भोपाल में समान नागरिक संहिता की वकालत करना. पीएम मोदी ने कहा कि दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चलेगा?

जबकि संविधान में सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार का उल्लेख है.

देश की विविधता को नष्ट करना चाहते हैं पीएम मोदी: ओवैसी

पीएम मोदी के इस बयान के बाद विपक्ष हमलावर है और खुद को मुसलमानों का हितैषी बताने वाले ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की वकालत करके पीएम मोदी मुस्लिमों को निशाना बनाना चाहते हैं और वे यह चाहते हैं कि देश में हिंदू नागरिक संहिता लागू हो. ओवैसी ने कहा कि पीएम मोदी और उनकी सरकार देश में काॅमन सिविल कोड लाकर देश के बहुलवाद और विविधता को छीन लेंगे.इस स्थिति में पहला सवाल यह है कि आखिर काॅमन सिविल कोड में एेसी क्या बात है कि विपक्ष पीएम मोदी पर हमलावर है और दूसरा कि संविधान में इसे लेकर क्या बात कही गयी है? तो आइए जानते हैं कि काॅमन सिविल कोड क्या है :-

क्या है काॅमन सिविल कोड

समान नागरिक संहिता का अर्थ है देश के सभी वर्गों के साथ, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो, राष्ट्रीय नागरिक संहिता के अनुसार समान व्यवहार किया जायेगा और यह सभी पर समान रूप से लागू होगा. समान नागरिक संहिता की सोच एक देश एक नियम के अनुरूप है, जिसे सभी धार्मिक समुदायों पर लागू किया जाना है. समान नागरिक संहिता शब्द का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग 4, अनुच्छेद 44 में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है. यह अनुच्छेद कहता है कि राज्य यानी कि देश पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा.

समान नागरिक संहिता लागू होने से क्या होंगे बदलाव

संविधान में समान नागरिक संहिता का उल्लेख तो किया गया है लेकिन इसका कोई मसौदा तैयार नहीं किया गया है. अब अगर इसकी प्रक्रिया शुरू होती है तो यह समझने वाली बात है कि इसके तहत विवाह, तलाक, रखरखाव, विरासत, गोद लेने और संपत्ति के उत्तराधिकार जैसे मुद्दे इसके तहत शामिल होंगे. चूंकि भारत में अभी विवाह, तलाक और संपत्ति के अधिकारों में विभिन्नता है और इनमें धार्मिक कानून लागू है इसलिए इस मुद्दे को लेकर विवाद की आशंका है जो नजर भी आ रही है. मसलन हिंदू और क्रिश्चियन में एक ही पत्नी हो सकती है, लेकिन इस्लाम में बहुविवाह की प्रथा है. संपत्ति के अधिकार भी विभिन्न धर्म में अलग-अलग हैं.

क्या है सुप्रीम कोर्ट की राय

समान नागरिक संहिता पर सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि देश में पर्सनल की वजह से कई बार भ्रम के हालात बनते हैं. ऐसी परिस्थितियों से निपटने में समान नागरिक संहिता या काॅमन सिविल कोड मदद कर सकता है. कोर्ट ने कहा था कि अभी तक इसके लिए कोई प्रयास नहीं किया गया है, लेकिन अगर सरकार यह करना चाहती है तो उसे कर देना चाहिए.