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देश के राज्यों की भांग की खेती को वैद्य करने की खुलकर मांग; क्या हैंं न‍ियम, वजह? जान‍िए

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भांग, गांजा और चरस और इससे होने वाले दुष्पर‍िणामों से हममें से ज्यादातर लोग वाक‍िफ ही होंगे, लेकिन कई देशों के बाद अब भारत के कुछ राज्यों में भी भांग की खेती को वैध करने की पुरजोर मांग की जा रही है.

कई देशों में इसे वैद्य घोष‍ित क‍िया जा चुका है. यहां सवाल उठता है कि आखिर भांग का पौधा दुनिया के ज्यादातर देशों में क्यों बैन है? और यदि इसके भारी नुकसान हैं तो इसे लीगल करने की मांग क्यों उठने लगी है. आइये विस्तार से समझते है.

भांग, गांजा और चरस, तीनों में क्या कनेक्शन?

भांग की खेती को लीगल करने की मांग क्यों?

भांग की खेती की हिमायत करने वाले हिमाचल प्रदेश में कुल्लू से कांग्रेस विधायक सुंदर सिंह ठाकुर का कहना है कि राज्य से भारी मात्रा में भांग की तस्करी की जाती है. यदि इसे वैध कर दिया जाता है तो कैंसर के जैसी कई बीमार‍ियों की मेडिसिन में इस्तेमाल क‍िया जा सकेगा. साथ में राज्य की आय भी बढ़ेगी. बता दें कि कोई पहला राज्य नहीं है जो इसे वैध करने की मांग कर रहा है.

भारत में कैनाबिस को कब बैन किया गया?

24 साल बाद राजीव गांधी की सरकार में NDPS Act, 1985 के तहत इसकी खेती को बैन कर दिया गया. चूंकि यह नैचुरली उगने वाला पौधा है और भारत में भारी मात्रा में भांग का इस्तेमाल भी किया जाता है, इसलिए भारत सरकार ने इसकी पत्तियों को कानून से बाहर रखा.

वैश्विक स्तर पर कैनाबिस को कब और क्यों बैन किया गया?

19वीं शताब्ती के शुरुआत से ही अलग-अलग देशों ने इसे बैन करना शुरू कर दिया था. 1900 से 1961 के बीच ब्रिटेन, अमेरिका, पोलैंड और जापान जैसे कई देशों ने कैनाबिस की खेती और इससे होने वाले उत्पाद पर बैन लगाया. लेकिन वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ा एक्शन यूएन की स्थापना के बाद लिया गया.

डॉ शेखावत बताते हैं कि UN Convention 1961 के तहत पौधे से तैयार की जाने वाली सभी ड्रग और उनकी खेती को बैन कर दिया गया. इस कन्वेंशन में 190 से अधिक देशों को सिग्नेटरी बनाया गया, जिसमें भारत भी शामिल था. जब भारत समेत कई देशों ने इसका विरोध किया तो उन देशों को कानून बनाने के लिए 25 साल का ग्रेस पीरियड दिया गया.

सेकंड वर्ल्ड वॉर के बढ़ी थी तेजी से मांग

दुनियाभर में इतने बड़े एक्शन का मुख्य कारण विश्व युद्ध को बताया जाता है. दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान दुनियाभर के सैनिक लड़ाई के दौरान मानसिक अवसाद, अपने घाव के दर्द और अपनी क्षमता को बनाए रखने के लिए पौधे से तैयार किए जाने वाले ड्रग जैसे हेरोइन, कोकेन, ब्राउन शुगर, मोर्फिन का इस्तेमाल करते थे, जिसमें कैनाबिस भी शामिल था. सैनिकों को इन ड्रग्स की लत लग गई. जिसका असर विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद भी देखने को मिला. विश्व युद्ध में हिस्सा लेने वाले देशों में ड्रग की मांग और क्राइम रेट तेजी से बढ़ा. साथ ही नशा करने वाले लोगों में खतरनाक मनोवैज्ञानिक असर भी देखने को मिले.

अमेर‍िका को शुरू करना पड़ा था ‘वॉर ऑन ड्रग’ कैंपेन

विश्व युद्ध के दौरान हुए दुष्परिणामों के देखते हुए यूएन ने ड्रग पर एक्शन लिया. वहीं, बात करें अमेरिका की तो वियतनाम वॉर के बाद वहां की स्थिति और भी दयनीय हो गई थी. इसलिए अमेरिका ने 1970 में Control Substance Act के तहत कैनाबिस समेत कई ड्रग्स को बैन कर दिया. इसके अलावा राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने 1971 में ‘वॉर ऑन ड्रग’ कैंपेन शुरू क‍िया जो दुनियाभर में फैल गया.

कैनाबिस के डिक्रिमनलाइज करने से क्या फायदे?

वैज्ञानिक शोध कैनाबिस को लीगल करने की बजाय डिक्रिमनालाइज पर ज्यादा जोर दिया जाता रहा है. डॉ शेखावत ने कहा कि साइंटिफिक टेम्प्रामेंट में कैनाबिस को ‘डिक्रिमिनलाइज’ करने की सहमति को लेकर दो तथ्यपरक तर्क हैं. उन्होंने बताया कि 1971 में जब अमेरिका ने ‘वॉर ऑन ड्रग’ मुहिम चलाई तो तेजी से क्राइम रेट बढ़ने लगे. जेलों में कैदियों की संख्या भी तेजी से बढ़ी. जिसके बाद अमेरिका को अपनी लड़ाई को क्रिमिनल जस्टिस से मेडिकल की तरफ मोड़ना पड़ा. जिसके अच्छे परिणाम भी मिले. वहीं अमेरिका के कई राज्यों ने जब हाल के दशक में इसके नशे के लिए यूज को लीगल किया तो इसके भी बुरे परिणाम सामने आए हैं.

UNODC World Drug Report 2022 में कहा गया है कि अमेरिका में कैनाबिस के इस्तेमाल को लीगल करने से एक तरफ टैक्स रेवेन्यू में बढ़ोतरी देखने को मिली. वहीं दूसरी तरफ ड्रग के तौर पर इसका इस्तेमाल भी बढ़ा है. जिसमें मुख्य रूप से युवा शामिल हैं. इसके अलावा उनमें मनौवैज्ञानिक रोग, सुसाइड और हॉस्पिटलाइजेशन रेट भी बढ़े हैं. इसलिए उनका मानना है कि ‘डिक्रिमनलाइज’ सबसे बेहतर तरीका है. इससे हम कैनाबिस पौधे से होने वाले औषधिय फायदे को भुना सकेंगे. साथ ही युवाओं द्वारा इसका दुरुपयोग और उन्हें होने वाले नुकसान को रोकने में भी कामयाबी मिलेगी.

कैनाबिस को लेकर वैज्ञानिक और शोध क्या कहते हैं?

भारत में भी 3 बार बदले जा चुके हैं इससे जुड़े नियम

कैनाबिस को लेकर भारत ने नियमों में ढील दी है. भारत में तीन बार 1999, 2001 और 2014 में इससे जुड़े नियमों में बदलाव किए गए. इसके बावजूद भारत में अभी भी काफी कड़े कानून हैं.

Hampa Wellness के Co-founder रजनीश पुंज का कहना है कि कनाडा, अमेरिका जैसी दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं ने कैनाबिस के फल-फूल वाले हिस्से की निकालने और उसके इस्तेमाल की अनुमति दे दी है. लेकिन NDPS Act के तहत भारत में यह अभी भी बैन है. उनका मानना है कि यदि इस हिस्से के इस्तेमाल की अनुमति मिल जाती है तो हेम्प प्रोडक्ट्स के उत्पादन में बढ़ोतरी होगी. इससे प्रोडक्ट्स के दाम सस्ते हो जाएंगे और भारत निर्यात भी कर सकेगा.

वहीं डॉ शेखावत की राय में कैनाबिस के मनौवैज्ञानिक असर को देखते हुए पूरी पौधे को लीगल करना किसी भी देश के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. इसलिए अमेरिका की तरह कैनाबिस के सिर्फ उन्हीं केमिकल या कंपाउंड को लीगल किया जाए, जिसे लेकर जानवरों पर शोध हो चुके हैं और उनसे सर्टिफाइड ड्रग बनाए जा चुके हो.

कैनाबिस के खतरनाक प्रभाव

डॉ. शेखावत ने आगे बताया कि THC (गांजा, चरस) की लत (Consumption) से सामाजिक, पारिवारिक, प्रोफेशनल और वित्तीय चीजों में उतना आनंद नहीं आता, जिससे इसका नशा करना वाला इंसान इन सभी चीजों से दूर हो जाता है. इसके कारण Bipolar Disorder, Anxiety, Schizophrenia और Psychosis आदि जैसी कई खतरनाक मनौवैज्ञानिक बीमारियां हो सकती हैं.

इसके अलावा उस इंसान में खुदकुशी करने के भी आसार बढ़ जाते हैं. वहीं, दिल से जुड़ी कई बीमारियों का भी खतरा बढ़ जाता है. हालांकि डॉ शेखावत ने यह भी कहा कि इसका असर किस इंसान पर कब, कितना और कैसे होगा यह उसके जेनेटिक पर निर्भर करता है.

भारत में क‍िन राज्यों में भांग की खेती को वैध करने की मांग

ओडिशा, कर्नाटक, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में छोटे स्तर में भांग की खेती जारी है. वहीं हिमाचल प्रदेश और तमिलनाडु इसे लीगल करने की मांग जोर पकड़ रही है.

7 अप्रैल को हिमाचल प्रदेश के बजट सेशन के आखिरी दिन कई विधायकों ने भांग की खेती को वैध करने को लेकर मांग उठाई. जिसके बाद सीएम ठाकुर सुखविंदर सिंह ने इसके मद्देनजर एक सर्वदलीय कमेटी की घोषणा की. ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि राज्य सरकार जल्द ही NDPS Act में संशोधन कर भांग की खेती को लीगल करने के लिए पॉलिसी ला सकती है.

कैनाबिस को लेकर विदेशों में क्या हो रहा है?

कनाडा, पुर्तगाल, जर्मनी, उरुग्वे समेत अमेरिका के दर्जनभर से अधिक राज्यों, यूरोपियन यूनियन समेत लगभग 30 देशों को कैनाबिस की खेती और इसके मेडिसिन और औद्योगिक इस्तेमाल के लिए वैध कर दिया गया है. अमेरिका का मैरीलैंड स्टेट इस लीस्ट में जुड़ने वाला सबसे नया स्टेट है. इसने 1 जुलाई से कैनाबिस के रिक्रिएशनल इस्तेमाल और बिक्री को कानूनी वैद्यता दे दी है. वहीं कनाडा, ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया, ताइपे और अमेरिका समेत अन्य कई देशों में कैनाबिस के रिक्रिएशनल इस्तेमाल को वैद्य करने को लेकर लोग प्रदर्शन कर रहे हैं.

कैनाबिस का कौन-सा हिस्सा भारत में बैन है?

आपको बता दें कि भांग जो कैनाबिस की पत्तियों से तैयार किया जाता है कभी-भी भारत में अवैध नहीं था. NDPS Act, 1985 के अनुसार, इसके पत्तियों को औषधियों और बीजों के न्यूट्रिशनल इस्तेमाल की अनुमति है. जबकि कैनाबिस के फल और फूल वाला हिस्सा अवैध है, जिससे गांजा और चरस तैयार किया जाता है. 1970 के दशक में इसकी शुरुआत हुई थी.

कैनाबिस को लेकर दुनियाभर में इतना विवाद क्यों है?

डॉ. शेखावत बताते हैं कि CBD को लेकर कोई विवाद नहीं है. सारे विवाद की जड़ THC है. कैनाबिस पौधे के फल-फूल वाले में हिस्से में 2-10% तक की मात्रा में THC पाई जा सकती है. इस कंपाउंड में Abuse Potential है यानी किसी भी कीमत पर बार-बार लेने की लत लग सकती है. साइंस की दुनिया में इसे ही लेकर सबसे ज्यादा शोध होते हैं. इसी केमिकल कंपाउंड के कारण इसकी खेती को इससे जुड़े उत्पादों को बैन किया जाता है.

Disclaimer
कैनाबिस का इस्तेमाल खतरनाक परिणाम ला सकता है. ऐसे में कैनाबिस पर शोध कर रहे शोधकर्ताओं और डॉक्टर्स की राय बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है. हम क‍िसी भी तरह के नशे या इससे जुड़ी चीजों के सेवन का समर्थन नहीं करते हैं.