बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में भी चाचा भूपेश बघेल के खिलाफ भतीजे विजय बघेल पर दांव खेला है,
ऐसे में पाटन विधानसभा क्षेत्र की दीवार पर लिखा है, ‘इस बार काका पर भतीजा भारी’. यह नारा पाटन विधानसभा सीट के त्रिकोणीय मुकाबले को बंया कर रहा है, क्योंकि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बीजेपी प्रत्याशी विजय बघेल के रिश्ते में चाचा लगते हैं. ऐसे में देखना है कि पाटन सीट पर बीजेपी द्वारा बिछाई गई सियासी बिसात के बीच चाचा क्या भतीजे के मात दे पाएंगे?
दुर्ग जिले की पाटन विधानसभा सीट छत्तीसगढ़ की सबसे हाई प्रोफाइल सीटों में से एक है, जिस पर सभी की निगाहें लगी हुई है. सीएम भूपेश बघेल के खिलाफ बीजेपी से सांसद विजय बघेल मैदान में है, तो अजीत जोगी के बेटे अमित जोगी ने भी ताल ठोंक रखी है. इस सीट पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर मानी जा रही है, यानि चाचा भूपेश बघेल और भतीजे विजय बघेल के बीच सियासी लड़ाई सिमट गई है, लेकिन अमित जोगी के उतरने से रोचक मुकाबला माना जा रहा है.
पाटन सीट से जीत की हैट्रिक लगाएंगे भूपेश!
पाटन विधानसभा सीट पर पहली बार चाचा बनाम भतीजे के बीच चुनावी मुकाबला नहीं हो रहा है, बल्कि इससे पहले भी किस्मत आजमा चुके हैं. भूपेश बघेल यहां से पांच बार जीत दर्ज कर चुके हैं. पिछले दो बार से विधायक हैं और अब जीत की हैट्रिक लगाने के लिए उतरे हैं. वहीं, दुर्ग के सांसद और बीजेपी उम्मीदवार विजय बघेल 2008 जैसी 2023 में जीत दर्ज करने के लिए उतरे हैं. विजय बघेल 15 साल पहले की तरह ही भूपेश बघेल को सियासी मात देकर विधायक बनने की जुगत में है.
2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें पाटन विधानसभा सीट से मैदान में उतारा था और उनका सामना कांग्रेस के प्रत्याशी भूपेश बघेल से हुआ था. इस चुनाव में विजय बघेल ने भूपेश बघेल करारी मात दी थी. इस तरह विजय बघेल पहली बार अपने चाचा भूपेश बघेल को चुनाव हराकर विधानसभा पहुंचे थे. 2013 के चुनाव में बीजेपी ने विजय पर एक बार फिर भरोसा जताया, लेकिन इस बार पाटन सीट पर भूपेश बघेल ने उन्हें हराकर हिसाब बराबर कर लिया.
साल 2018 के चुनाव में बीजेपी ने विजय बघेल की जगह मोतीलाल साहू को उतारा, लेकिन वो जीत नहीं सके. 2018 में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई तो भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बने. वहीं, विजय बघेल 2019 में बीजेपी के टिकट पर दुर्ग लोकसभा सीट से तीन लाख से ज्यादा मतों से जीतकर सांसद बने और अब फिर से चाचा-भतीजे आमने-सामने हैं. लेकिन, अजीत जोगी के बेटे अमित जोगी के चुनावी मैदान में उतरने से पाटन सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है.
किसको हो सकता है नफा-नुकसान
अमित जोगी ने मरवाही और कोटा जैसी अपनी परंपरागत सीट छोड़कर पाटन से चुनाव मैदान में उतरे हैं, जिसके पीछे सियासी मायने और रणनीति मानी जा रही है. पाटन से अमित जोगी के उतरकर कांग्रेस को घेरने और सीएम बघेल की चुनौती को बढ़ा दिया है. माना जा रहा है कि आदिवासी वोटों के कटने और कांग्रेसी वोट बंटने का सियासी लाभ बीजेपी को तो नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ सकता है. यही वजह है कि कांग्रेस शुरू से ही आरोप लगा रही है कि अमित जोगी और उनकी पार्टी बीजेपी की बी-टीम के रूप में काम कर रही है.
भूपेश बघेल पाटन सीट पर छह बार चुनाव लड़ चुके हैं, जिनमें से पांच बार जीत दर्ज कर चुके हैं. महज एक बार साल 2008 में बीजेपी के विजय बघेल के हाथों भूपेश बघेल हार गए थे. इसी मद्देनजर बीजेपी एक बार फिर से विजय बघेल को भूपेश बघेल के खिलाफ उतारा है ताकि मुख्यमंत्री को उनके घर में ही घेरा जा सके. चाचा-भतीजा दोनों कुर्मी समाज से हैं और कुर्मी ओबीसी वर्ग से आते हैं, जिसकी इस क्षेत्र में बड़ी आबादी है.
पाटन सीट का समीकरण
पाटन विधानसभा सीट पर ओबीसी वोटर्स का दबदबा है, यहां साहू और कुर्मी वोटरों की संख्या सबसे अधिक है. यह दोनों जाति के लोग पाटन सीट पर अहम रोल अदा करते हैं. इस सीट पर सतनामी समाज और सामान्य वर्ग के मतदाता की संख्या कम है. पाटन विधानसभा के कुल मतदाता 2 लाख 10 हजार 840 हैं. यहां के लोग बड़ी संख्या में खेती और किसानी से जुड़े है, जिसके चलते कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही किसानों के मुद्दे पर दांव खेल रहे हैं. ऐसे में देखना है कि काका भूपेश बघेल क्या फिर से भतीजे विजय बघेल को मात देते हैं या फिर भतीजा 2008 की तरह उन्हें शिकस्त देकर जीत कर विधायक बनता है.