Telangana Assembly Election Results 2023: 1983 के बाद 2023 यानि 40 साल बाद पहली बार ऐसा मौका आया है कि के चंद्रशेखर राव (केसीआर) खुद कोई चुनाव हारे हों।
रविवार को हुई वोटों की गिनती में कामारेड्डी सीट पर वह दूसरे स्थान पर रहे हैं और बीजेपी उम्मीदवार ने उन्हें साढ़े 6 हजार से भी ज्यादा वोटों के अंतर से हराया है।
1983 में अपना पहला चुनाव भी हारे थे केसीआर
1983 में केसीआर अपना पहला ही चुनाव हार गए थे। उन्होंने तब सिद्दीपेट सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनावी भाग्य आजमाया था, लेकिन वह असफल रहे थे।
लगातार दो कार्यकाल तक रहे नए राज्य के मुख्यमंत्री
69 वर्षीय तेलंगाना के निवर्तमान मुख्यमंत्री केसीआर खुद को ‘तेलंगाना का मसीहा’ कहलाने पर गौरवांवित होते रहे हैं। संयुक्त आंध्र प्रदेश की अलग-अलग सरकारों के खिलाफ तेलंगाना के साथ कथित ‘अन्याय’ को ही उन्होंने अपनी राजनीति का आधार बनाया और लगातार दो कार्यकालों तक नए राज्य के सीएम रहे हैं।
40 साल बाद कामारेड्डी में अपना चुनाव हारे हैं केसीआर
उन्होंने एक दशक से ज्यादा समय तक तेलंगाना आंदोलन को ‘आत्म गौरवम’ और ‘स्व-शासन’ जैसे नारों से परवान चढ़ाया था। आंध्र प्रदेश से अलग होने के बाद वे राज्य के सबसे बड़े सियासी चेहरे बने हैं। लेकिन, कामारेड्डी में निजी तौर पर भी उनकी बड़ी हार हुई है, जहां बीजेपी के उम्मीदवार वेंकट रमण रेड्डी ने उन्हें अच्छे अंतर से हरा दिया है।
तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति (BRS) की हार से तो सिर्फ उनका सीएम के तौर पर हैट्रिक लगाने का सपना टूटा है, लेकिन भाजपा प्रत्याशी से त्रिकोणीय मुकाबले में मिली हार को उनके पूरे राजनीतिक करियर के लिए कभी नहीं मिट पाने वाला धब्बा कहा जा रहा है।
‘वो बाउंस बैक करेंगे’
वैसे बीआरएस के एक वरिष्ठ नेता ने उनके बारे में उम्मीद जताई है कि ‘वो बाउंस बैक करेंगे। केसीआर एक आंदोलन के नेता से शीर्ष स्तर तक पहुंचे हैं। यह बहुत बड़ी कामयाबी है। यह सिर्फ एक अस्थायी झटके की तरह है।’
चुनावों के दौरान जैसे ही मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने गजवेल के साथ-साथ कामारेड्डी से भी चुनाव लड़ने का ऐलान किया था तो विपक्ष के नेताओं ने आरोप लगाए थे कि उन्हें गजवेल से हार का डर सता रहा है।
लेकिन, गजवेल से तो उनकी जीत हो गई, लेकिन कामारेड्डी ने 6,741 वोटों से उनके चुनावी करियर पर बड़ा दाग लगा दिया।
6 बार एमएलए चुने गए,लोकसभा का भी चुनाव जीता
केसीआर 1985 से ही चुनाव जीतते आ रहे हैं। वे अपने गृह क्षेत्र सिद्दीपेट से 4 बार चुनाव जीत चुके हैं और दो बार से गजवेल से उनकी जीत हो रही है। वे करीमनगर (एक बार उप चुनाव भी), महबूबनगर और मेडक से लोकसभा चुनाव भी जीत चुके हैं।
केसीआर की राजनीतिक यात्रा का टर्निंग प्वाइंट
केसीआर की राजनीतिक यात्रा में आए सबसे बड़े टर्निंग प्वाइंट में एक तरह से टीडीपी नेता एन चंद्रबाबू नायडू का बहुत बड़ा रोल रहा है।
1999 में नायडू ने उन्हें अपनी कैबिनेट में जगह नहीं दी। 1995 से 99 तक वे नायडू सरकार में ट्रांसपोर्ट मंत्री थे, लेकिन 1999 में उन्हें डिप्टी स्पीकर बना दिया गया।
उन्होंने इसके बाद बहुत बड़ा फैसला लिया। उन्होंने डिप्टी स्पीकर के पद के साथ-साथ विधायिकी से भी इस्तीफा दे दिया और टीडीपी भी छोड़ दी।
2001 के अप्रैल में उन्होंने तेलंगाना राष्ट्र समिति का गठन किया, जिसका नाम अब भारत राष्ट्र समिति कर दिया गया है। इसके बाद ही उन्होंने अलग तेलंगाना राज्य के लिए मुहिम छेड़ी और 2014 में नए राज्य के पहले सीएम (63 सीटें जीतकर) बने। 2018 के चुनाव के बाद उन्होंने और धमाकेदार अंदाज (88 सीट) में अपनी सत्ता काबिज रखी।
लेकिन, 2023 के विधानसभा चुनाव में वह एक सीट पर खुद चुनाव हार गए और बीआरएस 119 सीटों वाली विधानसभा चुनाव में सिर्फ 39 सीटें जीतकर सत्ता से बाहर हो गई।