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जल संरक्षण ” तापमान बढ़ते जाने से देश के विभिन्न हिस्सों में पेयजल की गंभीर समस्या…

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जल संरक्षण ” तापमान बढ़ते जाने से देश के विभिन्न हिस्सों में पेयजल की गंभीर समस्या…

साल-दर-साल गर्मियों में तापमान बढ़ते जाने से देश के विभिन्न हिस्सों में पेयजल की कमी की समस्या गंभीर होती जा रही है. सूखे क्षेत्रों और अनेक महानगरों में तो यह बेहद गहन है. कुछ समय पहले दक्षिण में बेंगलुरु में पानी के लिए कई दिनों तक हाहाकार मचा रहा था.

वहां अभी भी स्थिति सामान्य नहीं हो पायी है कि दिल्ली में जल संकट आ खड़ा हुआ है. अनेक शहरों में आपूर्ति बाधित हुई है. हमारे देश में दुनिया की 18 फीसदी आबादी बसी हुई है, पर साफ पानी का महज चार फीसदी ही हमारे हिस्से है.

यदि हमने दूरदर्शिता के साथ नदियों, जलाशयों, भूजल और वर्षा जल का संरक्षण किया होता तथा पानी के उपभोग को नियंत्रित रखा होता है, तो आज की स्थिति पैदा ही नहीं हो पाती.

निश्चित रूप से धरती के बढ़ते तापमान के साथ जलवायु में तेजी से बदलाव आ रहा है. यह बदलाव पृथ्वी पर सभी जीवों के अस्तित्व के लिए खतरा बनता जा रहा है. इस खतरे के लिए भी मानवीय उपभोग उत्तरदायी है.

हमारे देश में नदियों, जलाशयों, भूजल और बरसात से जितना पानी उपलब्ध है, वह हमारी वर्तमान और भविष्य की आवश्यकताओं के लिए पर्याप्त है. पर अंधाधुंध बढ़ते शहरीकरण ने बड़ी संख्या में जलाशयों और छोटी नदियों को निगल लिया.

जमीन पर कंक्रीट पसार कर हमने बारिश के पानी को मिट्टी में जाने और भूजल के रिचार्ज होने की प्रक्रिया को अवरुद्ध कर दिया. इस गलती के कारण पानी की कमी ही नहीं, औचक बरसात से शहरों में बाढ़ आने की घटनाओं में भी बढ़ोतरी हुई है.

अधिक समय नहीं बीता है, जब बेंगलुरु में झीलों एवं तालाबों की भरमार थी तथा दिल्ली में भी कई जलाशय होते थे. प्रदूषण, गाद भरने और बालू खनन जैसे विभिन्न कारणों से नदियों का जल स्तर तेजी से गिर रहा है.

भयावह दोहन ने भूजल का स्तर बहुत नीचे कर दिया है. केंद्र और राज्य सरकारों ने नल से जल पहुंचाने के लिए उल्लेखनीय प्रयास किये हैं, पर पानी की उपलब्धता तथा गुणवत्ता पर समुचित ध्यान दिये बिना आपूर्ति को बेहतर नहीं किया जा सकता है. यह भी एक बड़ा असंतुलन है कि सरकार और समाज के स्तर पर आपूर्ति पर अधिक ध्यान दिया गया है.

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि नदी, जलाशय या भूमि में पानी होगा, तभी उसे घरों, बाजारों और उद्योगों तक पहुंचाया जा सकता है. दूषित पेयजल के मामले में हम 180 देशों में 141 वें स्थान पर हैं. हमारा लगभग 70 प्रतिशत पानी प्रदूषित है.

देश के सैकड़ों जिलों में भूजल में आर्सेनिक तत्वों का मिश्रण है. पानी की मांग बढ़ती जा रही है. ऐसे में हमें जल संरक्षण तथा समुचित उपभोग को प्राथमिकता देनी होगी, अन्यथा यह संकट सघन होता जायेगा.