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“PM नरेंद्र मोदी ने देवमोगरा मंदिर में किए दर्शन, जानें यहां किसकी पूजा होती है और इतिहास?”

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बिहार में विधानसभा चुनाव में मिली जीत के दूसरे दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को गुजरात का दौरा किया। इस दौरान पीएम मोदी अनेक स्थानों पर गए। इनमें से सबसे खास जगह थी नर्मदा जिले के डेडियापाड़ा में स्थित देवमोगरा मंदिर।

बहुत कम लोग इस मंदिर से जुड़ी बातें जानते हैं जैसे यहां किसकी पूजा होती है और इस मंदिर का इतिहास क्या है और मंदिर इसी दिन क्यों देवमोगरा मंदिर गए? आगे जानिए इस मंदिर से जुड़ी रोचक बातें…

देवमोगरा मंदिर में किसकी पूजा होती है?

नर्मदा जिले के डेडियापाड़ा में स्थित देवमोगरा मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर में पंडोरी माता को समर्पित है। पंडोरी माता को गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान के आदिवासी लोग अपनी कुलदेवी मानते हैं। इसलिए यहां दिन भर भक्तों का आना-जाना लगा रहता है। 15 नवंबर को आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ने वाले नायक बिरसा मुंडा की जयंती होने के कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देवमोगरा धाम पहुंचकर पंडोरी माता के दर्शन किए।

क्यों खास है देवमोगरा धाम?

आदिवासी समुदाय की कुलदेवी का मंदिर होने के कारण देवमोगरा धाम बहुत ही प्रसिद्ध है। बाहर से देखने पर ये नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर जैसा दिखाई देता है। ये मंदिर सतपुड़ा की पर्वतमालाओं में प्रकृति की गोद आस्था व श्रद्धा का प्रमुख केंद्र है। गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश व राजस्थान के आदिवासी जनजाति के लोग यहां भक्ति के साथ पूजा-अर्चना करते हैं।

कौन हैं आदिवासियों की कुलदेवी पंडोरी माता?

पंडोरी माता से जुड़ी एक प्रचलित कथा है, उसके अनुसार, हजारों साल पहले पृथ्वी पर भीषण अकाल पड़ा। इंसान तो क्या पशु-पक्षियों के लिए अनाज और पानी की समस्या पैदा हो गई। उस समय गोर्या कोठार नाम के व्यक्ति ने अपने अनाज भंडार से लोगों को अन्न देना शुरू किया, लेकिन कुछ समय बाद उसका अन्न भंडार भी खाली होने लगा। तब उनकी पुत्री याहा पांडोरी ने कणी-कंसरी का रूप धारण कर अन्न वितरण का काम संभाला। इसके बाद उस अनाज के भंडार में कोई कमी नहीं आई। पांडोरी को आदिवासियों ने अपनी कुलदेवी स्वीकार कर उनकी पूजा करना शुरू की। तभी ये ये परंपरा चली आ रही है।

यहां देखी जाती है आदिवासी संस्कृति की झलक

आदिवासी समुदाय द्वारा समय-समय पर देवमोगरा धाम में अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। महाशिवरात्रि के मौके पर यहां 5 दिनों तक एक मेला लगता है, जिसमें हजारों आदिवासी अपनी कुलदेवी के दर्शन करने आते हैं। इस दौरान वे नई फसल को बांस की टोकरी में रखकर देवी को समर्पित करते हैं। महिला-पुरुष रंग-बिरंग वस्त्र पहनकर जुलूस निकालते हैं, जिसे होब यात्रा कहते हैं। कुछ लोग तो सवा महीने का व्रत-उपवास करने के बाद यहां दर्शन करने आते हैं। होली के मौके पर भी यहां की रौनक देखते ही बनती है।

इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।