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“Thailand Flood: 33 मौतें.थाईलैंड में तबाही मचाने वाली बाढ़ क्यों आई? 300 साल में पहली बार दिखा ऐसा मंजर”

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थाईलैंड के दक्षिणी हिस्से, खासकर हाट याई (Hat Yai) शहर में बाढ़ तबाही मचा रही है. मौसम विभाग ने इस बारिश को तीन सौ साल में एक बार होने वाली घटना कहा. सड़कों पर 22.5 मीटर तक पानी भर गया, अस्पतालों के निचले माले डूब गए, लाखों लोग प्रभावित हुए और पड़ोसी देशों वियतनाम, मलेशिया और इंडोनेशिया तक इसका असर देखा गया.

हाट याई में 21 नवंबर को सिर्फ 24 घंटे में 335 मिमी बारिश हुई, जिसे वहां की रॉयल इरिगेशन डिपार्टमेंट ने पिछले 300 सालों में सबसे ज्यादा दर्ज की गई बारिश बताया. ऐसे में सवाल उठता है कि हाल वर्षों में थाईलैंड में ऐसा क्या बदल गया कि सामान्य मॉनसून सीज़न ऐतिहासिक आपदा में बदल गया? आइए, कारणों को समझने की कोशिश करते हैं.

300 साल में एक बार का असली मतलब क्या है?

सबसे पहले यह जान लेना जरूरी है कि तीन सौ साल में पहली बार के क्या मायने हैं? मौसम के संबंध में अक्सर ऐसी खबरें सामने आती रहती हैं. मानो कोई रहस्यमयी चक्र चल रहा हो. असलियत थोड़ी अलग है. मौसम वैज्ञानिक किसी घटना को 300-Year event कहते हैं तो उसका मतलब है कि हर साल उस स्तर की बारिश होने की संभावना लगभग 1/300 यानी 0.3% है. यह सांख्यिकीय अनुमान है, कोई निश्चित चक्र नहीं.

हाट याई में 19 से 21 नवंबर में करीब 630 मिमी बारिश हुई, जो 2010 की बड़ी बाढ़ (लगभग 428 मिमी) से बहुत ज्यादा थी. द नेशन लिखता है कि 21 नवंबर को अकेले एक दिन में 335 मिमी बारिश हुई. इसी को 300 साल के रिटर्न पीरियड वाली घटना माना जा रहा है. सरल भाषा में कहें तो, इस बार की बारिश सामान्य मौसम की सीमा से बहुत ज्यादा थी.

21 नवंबर को यहां एक दिन में 335 मिमी बारिश हुई, जिसने रिकॉर्ड बना दिया.

बाढ़ की सबसे बड़ी वजहें

थाईलैंड की रॉयल इरिगेशन डिपार्टमेंट और मौसम एजेंसियों के अनुसार, इस बार बाढ़ के पीछे दो बड़े तात्कालिक कारण थे. तेज़ और सक्रिय मॉनसून ट्रफ. यह कम दबाव की एक लंबी पट्टी होती है, जो दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में भारी बारिश का मुख्य कारण बनती है. नवंबर में यह ट्रफ असामान्य रूप से मजबूत थी और कई दिनों तक दक्षिणी थाईलैंड के ऊपर टिकी रही.

एक अलग कम दबाव का क्षेत्र (Low Pressure Cell) भी ठीक उसी इलाके में बना रहा. जब यह लो प्रेशर सेल मॉनसून ट्रफ से जुड़ा, तो लगातार और व्यापक बारिश शुरू हो गई. नतीजा यह हुआ कि चुम्फोन से लेकर नाखोन सी थम्मारात, सोंगख्ला, याला और नाराथिवात तक देश के बड़े हिस्से में 24 घंटे के भीतर 300500 मिमी तक बारिश दर्ज की गयी. थाईलैंड का मीडिया समूह द नेशन लिखता है कि इसी वजह से हाट याई जैसे शहर, जो पहले ही बाढ़ प्रवण इलाके में हैं, सीधे इसका निशाना बने.

बाढ़ पीड़ित शहर हाट याई पुराने समय से ही नदियों और निचले मैदानों के किनारे बसा है.

बाढ़ में जलवायु परिवर्तन की कितनी भूमिका?

केवल एक लो प्रेशर या मॉनसून ट्रफ से इतनी ऐतिहासिक बाढ़ नहीं बनती, अगर पृष्ठभूमि में पूरा सिस्टम न बदला हो. यहीं पर क्लाइमेट चेंज तस्वीर में आता है. जलवायु वैज्ञानिक सालों से चेतावनी दे रहे हैं कि धरती के गरम होते वातावरण का सीधा असर बारिश के पैटर्न पर पड़ेगा. जैसे-जैसे औसत तापमान बढ़ता है, हवा में नमी रखने की क्षमता लगभग 7% प्रति 1°C बढ़ जाती है.

इसका मतलब यह है कि एक ही बादल अब पहले के मुकाबले बहुत ज्यादा पानी समेट सकता है. इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की रिपोर्टों का हवाला देते हुए मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि जो घटनाएं पहले सदियों में एक बार होने की मानी जाती थीं, वे अब धीरे धीरे न्यू नॉर्मल बनती जा रही हैं. इस साल दक्षिण पूर्व एशिया में दो बड़े जलवायु पैटर्न असामान्य रूप से एक साथ सक्रिय पाए गए.

ला नीना (La Niña): प्रशांत महासागर के मध्य भाग के ठंडा होने से हवा और नमी पश्चिम की ओर पहुंच गयी, जिससे इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड जैसे देशों में सामान्य से ज्यादा बारिश होती हुई देखी गई.

निगेटिव इंडियन ओशन डाइपोल (Negative IOD):

हिंद महासागर में ऐसा तापमान पैटर्न जिसमें पूर्वी हिस्से यानी इंडोनेशिया के पास समुद्र की सतह सामान्य से ज्यादा गर्म हो जाती है. नतीजा, वहां बादल और बारिश बढ़ जाती है.

सिंगापुर बेस्ड चैनल न्यूज एशिया में छपे एक विश्लेषण में जलवायु वैज्ञानिक और नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ मलेशिया के एमेरिटस प्रोफेसर फ्रेडोलिन टांगंग के हवाले से कहा गया है कि Moisture is fuel for extreme rainfall. Simple as that यानी नमी ही अतिवृष्टि का ईंधन है, बात इतनी ही सीधी है.

ला नीना और नेगेटिव IOD ने समुद्र की सतह को ज्यादा गर्म और नम बना दिया. ऊपर से मॉनसून ट्रफ और लो प्रेशर सेल ने इस नमी को एक जगह समेट कर छोड़ दिया और इसके परिणाम भयंकर हुए.

ज़मीन पर हमारी गलतियां भी कम नहीं

आसमान में घटने वाली प्रक्रियाएं अपनी जगह, लेकिन धरती पर इंसानी फैसले भी आपदा की गंभीरता तय करते हैं. थाईलैंड के मामले में कई मानवीय कारक सामने आते हैं. बाढ़ पीड़ित शहर हाट याई पुराने समय से ही नदियों और निचले मैदानों के किनारे बसा है. लेकिन हाल के दशकों में जहां नालों, जलभराव क्षेत्रों और प्राकृतिक जलमार्गों को खुला रहना चाहिए था, वहां सड़कों, मार्केट कॉम्प्लेक्स और घनी आवासीय बस्तियों ने जगह ले ली. सरकार ने पिछली बाढ़ों से सबक लेकर Khlong R.1 नाम की नई निकासी नहर बनाई, जो लगभग 1,200 क्यूबिक मीटर/सेकंड पानी निकालने की क्षमता रखती है लेकिन इस बार पड़ी बारिश उसकी डिज़ाइन क्षमता से भी आगे निकल गई. यानी इंफ्रास्ट्रक्चर उस पुराने मौसम को ध्यान में रखकर बना था, जो अब बदल चुका है.

पहाड़ी ढलानों पर निर्माण, पेड़ों की कटाई, और मिट्टी को पकड़ने वाली जड़ों का कम होना जैसे अनेक कारणों ने मिलकर यह सुनिश्चित किया कि बारिश का पानी धीरे धीरे रिसने के बजाय तेज़ी से बहकर नीचे शहरों में पहुंचे. ब्रॉडशीट एशिया साफ साफ लिखता है कि शहरी विस्तार और कमजोर इंफ्रास्ट्रक्चर ने लाखों लोगों को खुले खतरे के सामने खड़ा कर दिया.

थाई और क्षेत्रीय विशेषज्ञों की चेतावनी

थाई जलवायु विशेषज्ञ और रंगसित यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज एंड डिज़ास्टर्स के डायरेक्टर सेरी सुप्रतित (Seree Supratid) ने सीएनए से बातचीत में कहा कि यह बाढ़ दिखाती है कि जलवायु परिवर्तन की रफ्तार, सरकारों और समाजों की तैयारी से तेज़ है. दूसरी ओर, थाई अख़बार द नेशन के एक विश्लेषण में आंकड़ों के साथ दिखाया गया कि जून 2025 में मध्य थाईलैंड में बारिश सामान्य से 37% कम थी जबकि नवंबर में वही क्षेत्र 358% ज्यादा बारिश झेल रहा है. यानी अब जोखिम यह नहीं कि सिर्फ सूखा या सिर्फ बाढ़ आएगी, बल्कि यह कि दोनों चरम स्थितियां तेज़ी से और बारी बारी से सामने आएँगी, जो समाज, कृषि और अर्थव्यवस्था के लिए बहुत कठिन चुनौती है.

थाई बाढ़ हमें क्या सबक देती है?

थाई बाढ़ के बारे में 300 साल में पहली बार कहना, केवल एक डरावना शीर्षक भर नहीं है. यह हमें कुछ गहरे सबक दे रही है. जलवायु परिवर्तन अब किताबों से निकलकर हमारे भूगोल में उतर चुका है. IPCC की जो चेतावनियाँ रिपोर्टों में पढ़ी जा रही थीं, वे अब हाट याई, वियतनाम, मलेशिया और इंडोनेशिया की बाढ़ के रूप में ज़मीन पर दिख रही हैं. केवल मौसम को दोष देना पर्याप्त नहीं, हमें अपने विकास मॉडल पर भी चर्चा करनी होगी. निचले इलाकों में शहर बसाना, नालों पर कब्ज़ा, मौजूदा बांध और ड्रेनेज सिस्टम मिलकर किसी भी चरम बारिश को तबाही में बदल देते हैं.

अब भी हम नहीं संभले तो आने वाले दिनों दुनिया मौसम का चरम आतंक देखेगी. समय आ गया है कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन पर वैश्विक स्तर पर गंभीर कदम उठाए जाएँ, स्थानीय स्तर पर शहरों की योजना व इंफ्रास्ट्रक्चर को नई जलवायु हकीकत के मुताबिक ढालने की कोशिश हो. थाईलैंड की यह बाढ़ हमें एक साफ संदेश दे रही है कि मौसम बदल चुका है. अब हमें अपनी सोच, नीतियां भी बदलनी होंगी. यह समस्या केवल थाईलैंड की नहीं है, पूरी दुनिया मौसम के इस चरम स्थिति को लगातार महसूस कर रही है.