संसद का शीतकालीन सत्र 1 दिसंबर से शुरू होने वाला हैं। विपक्ष के साथ टकराव टालने के लिए इससे एक दिन पहले रविवार (30 नवंबर) को ऑल पार्टी मीटिंग बुलाई गई है।
इस बार सत्र में परमाणु उर्जा बिल, हाईवे संशोधन बिल समेत कुल 10 अहम बिल पेश किए जाएंगे। इसके अलावा, परिसीमन (Delimitation) के मुद्दे पर भी जमकर हंगामा हो सकता है। दक्षिण भारतीय राज्यों की पार्टियां खास तौर पर इस मुद्दे पर बेहद मुखर हैं।
लोकसभा और विधानसभा सीटों के पुनर्निर्धारण के इस विषय को लेकर राजनीतिक दल पहले ही आमने-सामने आ चुके हैं। ऐसे में आगामी सत्र में तीखी बहस और टकराव के संकेत साफ दिखाई दे रहे हैं। परिसीमन का यह विवाद केवल राजनीतिक प्रतिनिधित्व से जुड़ा नहीं है। इसका सीधा असर राज्यों की शक्ति संतुलन, केंद्र-राज्य समीकरण पर भी पड़ना तय है।
Winter Session में परिसीमन पर संग्राम के आसार
शीतकालीन सत्र में विपक्ष न्यूनतम समर्थन मूल्य, बेरोज़गारी और महंगाई के साथ परिसीमन को प्रमुख मुद्दे के रूप में उठाएगा।
सत्ता पक्ष प्रक्रिया को स्वाभाविक और संवैधानिक बताते हुए आगे बढ़ाने का प्रयास करेगा। विशेषज्ञों का अनुमान है कि यह सत्र पिछले वर्षों की तुलना में अधिक विवादास्पद और चर्चित होने वाला है।
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Delimitation प्रक्रिया क्या होती है?
भारत में परिसीमन की प्रक्रिया संविधान के तहत समय-समय पर होती आई है। 1971 की जनगणना के बाद बढ़ती जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए सीटों में बदलाव का मुद्दा उठा। 2026 में प्रस्तावित परिसीमन को लेकर पहले से ही चर्चा चल रही है। दरअसल परिसीमन तेजी से बढ़ती आबादी के मुताबिक संसदीय राजनीति में प्रतिनिधित्व की व्यवस्था है। हालांकि पिछले 3 दशक में जनसंख्या में वृद्धि का अनुपात पूरे देश समानुपातिक दर से नहीं हुआ है।
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परिसीमन को लेकर विवाद क्यों हो रहा है?
जैसे-जैसे देश 2026 की समयसीमा के करीब पहुंच रहा है, यह प्रश्न फिर उभर आया है कि क्या आबादी में अंतर को देखते हुए सीटों का परिसीमन होगा? दक्षिणी और पूर्वोत्तर राज्यों का तर्क है कि उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण में बेहतर काम किया है। परिसीमन होने पर इन प्रदेशों में सीटों की संख्या उस अनुपात से नहीं बढ़ेगी, जैसी उत्तर भारतीय राज्यों में बढ़ने का अनुमान है। दूसरी ओर, उत्तर भारत के जनसंख्या-बहुल राज्यों का कहना है कि प्रतिनिधित्व का आधार जनसंख्या ही होना चाहिए न कि जनसंख्या नियंत्रण का प्रदर्शन।
Amit Shah ने दक्षिण भारतीय राज्यों को दिया है आश्वासन
सांसदों और विशेषज्ञों के कई बयान सामने आए, जिसमें परिसीमन को लेकर आयोग के गठन, सीटों के संभावित वितरण और राज्यों के अनुपात में बदलाव की बात कही गई। विपक्ष का आरोप है कि नए परिसीमन से राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश हो सकती है। सरकार का कहना है कि कोई भी फैसला संवैधानिक प्रावधानों और जनसंख्या डेटा के आधार पर ही होगा। गृहमंत्री अमित शाह ने स्पष्ट कर दिया है कि दक्षिण भारतीय राज्यों की सीटें किसी सूरत में कम नहीं की जाएंगी।



