जरा सोचिए, कैसा हो अगर आपको पहले से ही पता चल जाये कि सामने वाला आपके बारे में क्या सोच रहा है या उसके दिमाग में क्या राज छिपा है? इससे कई सारी मुश्किलें हल हो सकती है। क्या ब्रेन को पढ़ा जा सकता है?
इस पर देश- दुनिया में लम्बे समय से बहस चल रही है लेकिन अब दावा किया जा रहा है कि ऐसा मुमकिन है। इसके लिए ख़ास तरह का हेलमेट बनाया गया है जो ये बताने में सक्षम है कि कोई भी व्यक्ति क्या सोच रहा है। तो आइये जानते है इस बारे में विस्तार से:-
हरकोर्ट बटलर प्राविधिक विश्वविद्यालय (एचबीटीयू) व त्यागराजर इंजीनियरिंग कॉलेज मदुरै के प्रोफेसरों ने एक साथ मिलकर ऐसा हेलमेट तैयार किया है जो ये बताने में सक्षम है कि कोई भी व्यक्ति क्या सोच रहा है।
ब्रेन कम्प्यूटर इंटरफेस तकनीक पर काम करने वाला यह हेलमेट दिमाग से मिलने वाले किसी भी निर्देश को पढऩे में सक्षम हैं।
एचबीटीयू के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के विभागाध्यक्ष प्रो. यदुवीर सिंह के मुताबिक इस तकनीक को साल भर शोध के बाद ईजाद किया गया है।
इस हेलमेट में 32 इलेक्ट्रोड लगे हैं जो दिमाग के सिग्नल पढ़ते हैं और ब्रेन कम्प्यूटर इंटरनफेस के जरिए कम्प्यूटर तक भेजते हैं।
खुशी, गम, संवेदना, खाने-पीने की इच्छा व किसी खास समय, व्यक्ति और चीज के बारे सोच की तरंगे इन्हीं इलेक्ट्रोड के जरिए पकड़ में आती हैं।
कॉग्नेटिव साइंस विषय पर जापान में हुई अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला का हिस्सा बनकर आए एचबीटीयू मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. जितेंद्र भास्कर ने बताया कि दिमाग सिग्नल के आधार पर काम करता है।
इन्हें इलेक्ट्रोएन्सेफलोग्राम (ईईजी) सिग्नल कहते हैं। यह एक तरह का हल्का करंट होता है जिसे पढ़कर हेलमेट यह संकेत देता है कि व्यक्ति की सोच क्या है। इस सिग्नल व करंट का कंप्यूटर पर विश्लेषण किया जा सकता है।
डॉ. जितेंद्र भास्कर ने बताया कि एक ऐसी मशीन पर काम चल रहा है जो मनुष्य की सोच के आधार पर काम कर सके। जापान में हुई कार्यशाला में ऐसी मशीन पर अध्ययन भी किया है।
जैसे जैसे आधुनिक कम्प्यूटरों की ताकत बढ़ रही है और हम अपने दिमाग की कुशलता को और गहराई से समझ रहे हैं, वैसे ही हम काल्पनिक विज्ञान की कई बातों को सच कर रहे हैं।
ब्रेन कंप्यूटर इंटरफ़ेस इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसमें दिमाग और किसी बाहरी उपकरण के बीच सीधा संचार मार्ग बैठाया जाता है। दिमाग के असाधारण प्लास्टिसिटी प्रयोग के कारण, शरीर से मेल खाने के बाद प्रत्यारोपित कृत्रिम अंगों से आते हुए सिग्नल दिमाग के द्वारा नियंत्रित हो सकते हैं।
इस क्षेत्र में हो रहा यह विकास सदी के महत्वपूर्ण तकनिकी उपलब्धियों में से एक है जो दिव्यांग लोगों के लिए काफ़ी उपयोगी साबित हो रहा है।
टीसीई मदुरई के सीनियर प्रोफेसर और वैज्ञानिक डॉ. आर हेलेन ने बताया कि दिमाग और कंप्यूटर में इंटरफ़ेस यानी तालमेल बैठाने के लिए एक इलक्ट्रोड की आवश्यकता होती है। एक प्रकार का उपकरण इलेक्ट्रोएन्सफैलोग्राफ खोपड़ी पर संलग्न कर दी जाती है।
इलेक्ट्रोड दिमाग के सिग्नल को समझ पाते हैं। उच्च संकल्प का सिग्नल पाने के लिए वैज्ञानिक इलेक्ट्रोड को दिमाग के अंदरूनी हिस्से में या खोपड़ी के नीचे लगा देते हैं। इससे विद्युत् सिग्नल का सीधा प्रतिग्रह होता है और जहाँ सिग्नल जागृत हो रहा है, उस जगह पर इलेक्ट्रोड लगा दिया जाता है।
इलेक्ट्रोड न्यूरॉन के बीच हो रहे वोल्टेज अंतर को मापित करता रहता है। सिग्नल फिर प्रवर्धित और फि़ल्टर होता है और फिर एक कंप्यूटर प्रोग्राम के द्वारा जांचा जाता है।
मरीजों पर भी यह तकनीक कारगर डॉ. आर हेलेन ने बताया कि मरीजों की बीमारी का सही और सटीक आकलन के लिए ईसीजी, ईजी सहित अन्य मेडिकल रिपोर्ट के एनालिसिस प्रक्रिया को बेहतर बनाने पर काम चल रहा है।
उन्होंने बताया कि आप दिमाग में जो सोचेंगे, वही आपका कंप्यूटर या रोबोट काम करेगा। इसके लिए एल्गोरिदम पर काम किया जा रहा है। उन्होंने बायोमेडिकल सिग्नल प्रोसेसिंग एंड इमेज प्रोसेसिंग के बारे में भी बताया। कहा कि इस दौरान इलेक्ट्रॉनिक्स विभाग के अध्यक्ष प्रो. कृष्णराज, प्रो. राजीव गुप्ता, डॉ. रजनी बिष्ट आदि मौजूद रहे।