Home समाचार शरद पूर्णिमा में खीर खाने से नहीं होता है दमा और मलेर‍िया,...

शरद पूर्णिमा में खीर खाने से नहीं होता है दमा और मलेर‍िया, जानिए कौन-कौन सी बीमारियां होती है दूर

43
0

हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा की रात को खुले आसमान में खीर रखने के बाद खाने की परांपरा काफी समय से चली आ रही हैं। मान्यता है कि इस दिन खुले आसमान में रखी जाने वाली इस खीर को खाने से सभी रोगों से मुक्ति मिल जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चांद अपनी सभी 16 कलाओं से भरा होता है, जिस वजह से चांद रात 12 बजे धरती पर अमृत बरसाता है। इसी अमृत को प्रसाद के तौर पर ग्रहण करने के लिए खीर चांद की रोशनी में रखी जाती है रात 12 बजे के बाद खीर उठाकर प्रसाद के तौर पर खाई जाती है।

लेकिन क्या आपको मालूम है कि ऐसा क्यों किया जाता है? इस बार शरद पूर्णिमा 13 अक्‍टूबर को है, जानते हैं आखिर क्यों इस खुले आसमान में रखे जाने वाली खीर को खाने के सेहत को क्‍या फायदे होते हैं। मच्छरों के काटने पर मलेरिया के बैक्टीरिया शरीर में फैलते हैं, जिससे आपको मलेरिया होता है। लेकिन बैक्टीरिया बिना उपयुक्त वातावरण के नहीं पनप सकते है। मलेरिया के बैक्टीरिया को जब पित्त का वातावरण मिलता है, तभी वह 4 दिन में पूरे शरीर में फैलता है, नहीं तो थोड़े समय में समाप्त हो जाता है।

ऐसे में मलेरिया फैलने का मुख्य कारण है शरीर में पित्त का बढ़ना या पित्त का असंतुलन। यानि पित्त को नियंत्रित रखकर, हम मलेरिया से बच सकते हैं। खीर खाने से पित्त को संतुल‍ित किया जा सकता है। इसलिए पित्त के असंतुलन से बचने के लिए इस समय खास तौर से खीर खाने की परंपरा है। शरद पूर्णिमा को रातभर चांदनी के नीचे चांदी के पात्र में रखी खीर सुबह खाई जाती है। यह खीर हमारे शरीर में पित्त का प्रकोप कम करती है। और मलेरिया के खतरे को कम करती है। यह खीर आंखों से जुड़ी बीमारियों से परेशान लोगों को भी बहुत फायदा पहुंचाती है।

माना जाता है क‍ि शरद पूर्णिमा का चांद बेहद चमकीला होता है इसीलिए आंखों की कम होती रोशनी वाले लोगों को इस चांद को एकटक देखते रहना चाहिए। क्योंकि इससे आंखों की रोशनी में सुधार होता है। इसी के साथ यह माना जाता है कि इस रात के चांद की चांदनी में आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए सुई में 100 बार धागा डालना चाहिए। दमा रोगियों के लिए यह खीर अमृत समान ही होती है। शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की चांदनी में खीर रखने के बाद सुबह चार बजे के आसपास दमा रोगियों को खा लेनी चाह‍िए।

इसल‍िए डॉक्‍टर्स भी दमा रोगियों को ये खीर खाने की सलाह देते हैं। चर्म रोग में फायदा दिलाने के साथ शरद पूर्णिमा का चांद और खीर दिल के मरीज़ों और फेफड़े के मरीज़ों के लिए भी काफी फायदेमंद होती है। इसे खाने से श्वांस संबंधी बीमारी भी दूर होती हैं। शरद पूर्णिमा की खीर को स्किन रोग से परेशान लोगों के लिए भी अच्छा बताया जाता है। मान्यता है कि अगर किसी भी व्यक्ति को चर्म रोग हो तो वो इस दिन खुले आसमान में रखी हुई खीर खाए। इसके अलावा इससे त्‍वचा भी क्रांतिमान हो जाती है। शरद पूर्णिमा की रात को छत पर खीर को रखने के पीछे वैज्ञानिक तथ्य भी छिपा है। खीर दूध और चावल से बनकर तैयार होता है।

दरअसल दूध में लैक्टिक नाम का एक अम्ल होता है। यह एक ऐसा तत्व होता है जो चंद्रमा की किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। वहीं चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया आसान हो जाती है। इसी के चलते सदियों से ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है और इस खीर का सेवन सेहत के लिए महत्वपूर्ण बताया है। एक अन्य वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार इस दिन दूध से बने उत्पाद का चांदी के पात्र में सेवन करना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं।