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छत्तीसगढ़ – नशीली गोलियों से ऐसी बर्बादी… हर शहर में नाबालिग नशेड़ियों की बढ़ती संख्या…

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रायगढ़. जिले में लगातार नशीली दवाएं जब्त की जा रही है। राशन दुकान, पान दुकान, कुएं के अंदर, मोहल्लों में पुलिस ने माल बरामद किया है। इस साल ड्रग विभाग व पुलिस ने 70 से ज्यादा मामले पकड़े हैं। सबसे बड़ी कार्रवाई पुलिस ने की है। ड्रग विभाग की कार्रवाई मेडिकल स्टोर पर कम ही रही है। पुलिस ने किराना स्टोर, पान ठेलों और ग्रामीण इलाकों में खेतों में कार्रवाई की हैं। चार सालों में 150 से अधिक बड़ी कार्रवाई हो चुकी है। इसकी रोकथाम के लिए प्रशासन कोई प्रयास नहीं कर पा रहा है। बड़े से लेकर बच्चे भी चपेट में आ रहे हैं।

केस -1 | मोहल्लों और घरों तक पहुंच रही
पुलिस ने 2 अक्टूबर को लैलूंगा वार्ड नंबर 7 में स्थित किराना दुकान से 4 कार्टून में रखी 475 नग कोरेक्स की सीसी जब्त की थी। आरोपी ललित गोयल दुकान से आसपास के ग्रामीण युवक कोरेक्स बेचता था।
केस -2 | कुएं के अंदर छिपाया था कोरेक्स
सरिया पुलिस ने 13 अक्टूबर को श्रीकिशन अग्रवाल के पास से लगभग 1400 नग कोरेक्स की सीसी मिली थी। आरोपी ने कुएं के अंदर माल को छिपाकर रखा था। आरोपी अपने एजेंट के जरिए आसपास के क्षेत्र में दवा की सप्लाई करता था। आरोपी ने रायपुर से माल लाने की बात कही थी।
केस -3 | पान ठेले में मिली थीं 200 बॉटल
पान ठेले में बिक रहे कोरेक्स में ड्रग विभाग ने पकड़ा ड्रग विभाग की टीम ने लगभग 15 दिन पहले ही लैलूंगा में पान ठेले में बिक रहे 200 बॉटल कोरेक्स की बॉटल को पकड़ा था। कार्रवाई के बाद ड्रग विभाग ने पुलिस को सौंप दिया था।
केस -4 | मेडिकल स्टोर से भी पकड़ी गईं  
ड्रग विभाग ने लैलूंगा के ही जय मेडिकल में रेड की थी। मेडिकल में कोरेक्स सीरप, क्लोनाजेपम, टैबलेट और एक गर्भपात करने की किट मिली थी। मेडिकल का लाइसेंस रद्द करने की प्रक्रिया ड्रग विभाग कर रही है।

रायपुर

कानून सख्त हो ताकि नशीली दवा बेचने से पहले हजार बार सोचें 
नशीली दवाइयों की बिक्री और फैलाव रोकने का एक ही तरीका है, इतना कड़ा कानून बनाना चाहिए कि कोई इन्हें बेचने के बारे में सोच भी न सकें। अभी नशीली दवा बेचने वालों को भी कड़ी सजा नहीं मिल पा रही है, और जिन मेडिकल स्टोर्स में ऐसी दवाइयां पकड़ी जा रही हैं, उनके खिलाफ भी सख्त कार्रवाई नहीं हो रही है। जिन मेडिकल स्टोर्स में नशीली दवाओं का हिसाब गड़बड़ मिला है, उनका लाइसेंस केवल कुछ समय के लिए ही निलंबित किया जा रहा है। इस तरह, कार्रवाईयां खानापूर्ति के सिवा कुछ और नहीं रह गई हैं। जब तक कानून सख्त नहीं होगा, ऐसे लोग भयभीत नहीं होंगे। सख्ती हुई तो ऐसी दवाइयां बेचने वाले भी गड़बड़ी करने की नहीं सोचेंगे। ऐसी दवा जिनमें नशे की मात्रा है, वो डाक्टरों की पर्ची के बिना किसी भी सूरत में नहीं मिलनी चाहिए, वह भी एक पर्ची से एक ही बार। जहां तक अस्पतालों का सवाल है, वहां ऐसे प्रावधान जरूरी है कि मरीजों का जीवन बचाने के लिए डाक्टर बिना किसी बंधन के कोई भी फैसला ले सकें।

सरेअाम नशे के अड्डे लेकिन मात्रा बहुत कम : अश्वनीनगर से महादेव घाट जाने वाली भीड़ भरी सड़क के फुटपाथ पर 16-17 साल के लड़के सालूशन का नशा करते मिले। ऐसा नजारा शहर की कई सड़कों पर नजर आता है। स्टेशन रोड हो या गुढ़ियारी, खमतराई, कुकुरबाड़ा, कबीरनगर, शिवानंदनगर, पंडरी-मोवा, कुंदरापारा, बैजनाथपारा, पुरानीबस्ती और आजाद चौक, रोड के किनारे लड़कों का दल ऐसे ही नशा करते साफ दिख जाता है। पुलिस लगातार कार्रवाई भी नहीं कर पाती, क्योंकि सालूशन की जितनी मात्रा मिलती है, उस पर कोई बड़ी धारा के तहत केस नहीं बनता।

केस -1 | बच्चे को लेकर पत्नी चली गई, कोर्ट में तलाक का केस किया
राजधानी का कुशाल एक प्लेसमेंट कंपनी में कर्मचारी था। उसने 28 साल की उम्र में शादी की। दो साल तक सबकुछ अच्छा रहा। एक बेटी भी हुई। अचानक उसे सालूशन की लत लग गई। काम में भी वो नशा करता और घर पर भी। पत्नी से झगड़ा होने लगा। आर्थिक स्थिति बिगड़ गई। आखिर में पत्नी बेटी के साथ अलग हो गई। तलाक के लिए कोर्ट में केस भी लगा दिया। 

केस -2 | दो साल की बेटी की जान लेने की कोशिश
खम्हारडीह इलाके का 30 साल का राजू (परिवर्तित नाम) सुलभ शौचालय में मैनेजर था। 26 साल में शादी हुई और सालभर बाद बेटी गई। दो साल तक सब ठीक चला, फिर नशे की लग लगी तो पत्नी से मारपीट करने लगा। एक दिन परिजनों ने उसे अपनी दो साल की बेटी का हाथ चाकू से काटने की कोशिश करते हुए देखा तो सब घबराए। इसके बाद निजी अस्पताल में भर्ती कराया।

बिलासपुर

मेडिकल-बाजारों में 10 साल से बिक रही नशीली दवा, संचालक कहते हैं- कोई पूछने नहीं आता 
बिलासपुर। बिलासपुर-रतनपुर मार्ग पर हाईवे से सटा गांव है सेंदरी। आबादी कोई 3000। मेंटल अस्पताल यहीं है, इसलिए पास के मेडिकल स्टोर में बिना पर्ची मांगे नींद और नशे की दवाएं खुलेआम बेच रहे। सड़क के किनारे एक अपना ढाबा खुला है। इसके कैंपस के भीतर राघवेंद्र मेडिकल स्टोर है। दुकान के बाहर किसी तरह का बोर्ड नहीं है पर लोग इसे इसी नाम से जानते हैं। गांव वालों से पूछने पर कि नशे या नींद की दवा कहां मिलेगी? यहीं का पता देते हैं। श्रद्धा मेडिकल स्टोर संचालित है। वहां भी कोडीन की शीशी ली गई।

केस -1 | घर का कमाऊ बेटा नशेड़ी, 65 साल की मां कर रही लालन पालन
सुशीला कटेलिया 65 साल की उम्र में अपने तीनों बच्चों की लाठी है। 45 वर्षीय बड़ा बेटा राजू मानसिक रूप से कमजोर है। उसने नाइट्रावेल और कोडीन जैसी दवाएं लेनी शुरू कर दी। इसके चलते ही उसका दिमागी संतुलन बिगड़ गया। मंझले बेटे रवि को लकवा है। छोटे बेटे रवि को ब्रेन हेमरेज है। दवाइयों के असर से वह कमजोर हो चुका है। अपने बेटों को पालने के लिए मिठाई के डिब्बे बनाती है। जो कमाती है और जितना समय बचता है, उसमें बच्चों का काम और इलाज।
केस -2 | बेटा नशे के लिए तड़पता है, पैरेंट्स का जीवन दुश्वार
तालापारा के 21 वर्षीय राकेश पटेल को 3 साल पहले कोडीन के नशे की लत लगी। परिजनों से छुपाने और दूसरे मादक पदार्थ की बदबू से बचने इसे लेना शुरू किया। कुछ दिनों बाद यह लत लग गई। पढ़ाई छूट गई। सबकुछ तबाह हो गया। घरवालों ने उसे रिहेबलिटेशन सेंटर भेजा है, जहां उसकी हालत से सभी को निराशा हो रही। पूरा परिवार परेशान है। हर दिन उन्हें परेशानी हो रही। पिता विवेक पटेल कहते हैं बेटा हाथ से निकल चुका है। फिर भी प्रयास कर रहे हैं। उसे सही रास्ते पर लाने की। ईश्वर करे-सब ठीक हो। 

दुर्ग

ये 3 केस बता रहे कि नशे की गोलियों ने किस तरह सबकुछ बर्बाद कर दिया… 

पांच लाख रुपए महीने तक थी कमाई, नशे ने पांच हजार तक पहुंचा दिया मेर पिता जी ट्रांसपोर्टर थे। घर में अपनी दो ट्रक, एक स्कार्पियो और एक छोटी कार थी। आमदनी इतनी अच्छी थी कि पूरा परिवार मजे से रह रहा था। मेरे दोनों बच्चे शहर के अच्छे स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे। पांच साल पहले मेरे पिता जी की मौत क्या हुई ट्रांसपोर्ट का काम मेरे कंधों पर आ गया। काम मैं अच्छे से संभाल लिया। मासिक टर्न-ओवर करीब-करीब पांच लाख रुपए तक पहुंच गया था। एक-दो बार ट्रक ड्राइवरों के साथ मै भी माल गिराने गया तो उनको नशे की गोलियां खाते देखा तो मै भी एक बार गोलियां खा लिया। इसके बाद से जब ड्राइवर मुझसे मिलने आते मेरे लिए गोलियां लेकर आते थे। धीरे-धीरे मैं उन्हें इसके लिए पैसे देने लगा। एक साल के भीतर इन गोलियों की लत ऐसी लगी कि रोज इसके लिए मुझे 5000 रुपए तक खर्च होने लगे। इस नशे की पूर्ति के लिए कर्जदार होता गया। इस क्रम में कर्ज देने के लिए एक ट्रक बेचनी पड़ी। एक साल नहीं बीता कि बच्चों को भी सामान्य स्कूल में डालना पड़ गया। बीते चार सालों में नशे के कारण मेरी दो ट्रके, एक स्कार्पियों और एक घरेलू कार बिक गई। मेरी मजबूरी का फायदा उठाते हुए नशा के कारोबारी मुझसे ही इसका धंधा कराने लगे। आज जब मै नशा छोड़ना चाह रहा हूं तो शारीरिक दिक्कतें हो रही हैं। मेरे नशे के कारण मेरा कारोबार और परिवार दोनों बर्बाद हो गया है।  – संजय सिंह., निवासी पॉवर हाउस।

200 लोगों को रोज रोजगार देता था, आज खुद बेरोजगार हूं…
मैं बीएसपी में ठेकेदार था। सौ-डेढ़ सौ मजदूर मेरे साथ थे। एक भाई की पढ़ाई और घर के सभी खर्च मैं ही देखता था। तीन भाईयों में बड़ा होने के नाते सबकुछ मेरे ही कंधों पर था। ठेकेदारी से महीने में औसतन लाखों रुपए लेने देने पड़ते थे। कभी-कभार दोस्तों के साथ बीयर वगैरह भी ले लेता था। एक दिन एक मजदूर से बीयर मंगाया तो वह उसके साथ ही नशे की गोलियां भी ले आया। उसी के साथ मैं पहली बार नशे की गोलियां खाया। आगे मैं उससे जब भी सिगरेट मंगाता, वह गोलियां भी ले आता। धीरे-ध्ीरे मैं गोलियां लेने का आदी हो गया। नशे की पूर्ति के लिए प्रतिदिन 5000 रुपए खर्च होने लगे। कुछ महीने मजदूरों के वेतन से कटौती कर नशा किया लेकिन परिवार का खर्च बढ़ जाने से समस्या पैदा होने लगी। इसी क्रम में कई शिकायते हो गई तो कांट्रेक्ट खत्म हो गया। पैसे का कोई स्रोत नहीं था इसलिए सालभर में जमा पूंजी खत्म हो गई। आज मुझे ठेकेदारी छोड़ नशे का कारोबार करना पड़ रहा है। कारोबारी सेलिंग के एवज में नशे की गोलियां देते हैं। – इमरान खान, केलाबाड़ी दुर्ग

सब्जी का थोक व्यापारी था, अब ऑटो चलाकर फिर शुरू की जिंदगी
मैं सब्जी का धंधा करता था। पान तक नहीं खाता था। अन्य कारोबारियों को बीड़ी, सिगरेट पीते देख शौकिया एक दो बार मै भी सिगरेट पी लिया। आगे चलकर सिगरेट की लेने देन शुरू हो गई। इसी क्रम में कुछ लोगों के साथ बीयर वगैरह पीना भी शुरू हो गया। अबतक नशा से घर परिवार में कोई परेशानी नहीं हो रही थी। एक बार सब्जी लेकर उड़ीसा क्या जाना हुआ गाड़ी के ड्राइवर ने मुझे नशे की गोलियां खीला दी। इसके बाद से जब भी वह मिलता मुझे गाेलियां दे देता। फिर क्या मै भी उसके लिए गोलियां खरीदने लगा। यही से मेरी बर्बादी शुरू हुई। सब्जी का धंधा जो कि हर माह मै 4 से 5 लाख तक कर लेता था वह छह माह में घटकर 50 हजार से भी कम हो गया। इतने कम पैसे में आगे चलकर नशा और परिवार दोनों का खर्च मैनेज करने में मुश्किलों होने लगी। कुछ और दिनों में सब्जी का धंधा मुझे बंद करना पड़ा। दिन भर नशे की गोलियों के लिए दर-दर भटकने लगा। घर वाले घर से निकाल दिए। आज नशे की गोलियों के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाता हूं। कुछ मेरी इस मजबूरी का फायदा उठाते हैं। सबकुछ बर्बाद हो गया है।