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तो इसलिए शिवसेना से गठबंधन से डर रही है एनसीपी और कांग्रेस!

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बेंगलुरू। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 के नतीजे शिवसेना और बीजेपी के साथ-साथ एनसीपी और कांग्रेस के गले की हड्डी बन गई है। शिवसेना और बीजेपी के 30 वर्ष पुराने गठबंधन टूटने के बाद नए समीकरण तलाशने के लिए आगे आई राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस दोनों शिवसेना के साथ गठबंधन सरकार चलाने को लेकर असमंजस की स्थिति में ऐसे फंस कर रह गईं कि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करनी पड़ गई।

सरकार गठन से बीजेपी के इनकार के बाद शिवसेना दूसरी बड़ी दल बनकर उभरी थी, लेकिन तीसरे और चौथे नंबर की पार्टी एनसीपी और कांग्रेस शिवसेना को बड़ा भाई चुनने को लेकर अभी तक राजी नहीं हो सकी है। इसके पीछे पहली वजह शिवसेना का कट्टर हिंदुवादी चेहरा माना जा रहा है और दूसरी वजह शिवसेना का अपने एलायंस के साथ बर्ताव भी माना जा रहा है।

गौरतलब है पिछले 30 वर्ष बीजेपी के साथ गठबंधन में रही शिवसेना का इतिहास बेहद खराब रहा है। ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है। वर्ष 2014 महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पूर्व सीटों के बंटवारे को लेकर शिवसेना दो सप्ताह तक बीजेपी को भला-बुरा कहती रही और अंततः एनडीए एलायंस से बाहर रहकर शिवसेना ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव अकेले दम पर लड़ी।

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2014 की मतगणना के बाद चुनाव नतीजे आए तो बीजेपी 122 सीट जीतकर महाराष्ट्र की नंबर वन पार्टी बनकर उभरी जबकि शिवसेना 283 सीटों पर लड़कर भी महज 62 सीटों तक सिमट गई थी। नतीजे आए तो शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे ने पाला बदलने में देर नहीं लगाई और एक बार फिर बीजेपी के साथ गठबंधन करके महाराष्ट्र सरकार में शामिल हो गई।

वर्ष 2014 विधानसभा चुनाव नतीजों ने बीजेपी और शिवसेना दोनों को गठबंधन धर्म में बंधने के लिए मजबूर कर दिया था। देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में बीजेपी और शिवसेना गठबंधन की सरकार पूरे पांच वर्ष बेरोक-टोक जरूर चली, लेकिन इसमें शिवसेना की भूमिका बिल्कुल नगण्य थी। शिवसेना के साथ गठबंधन सरकार चला रही बीजेपी को विपक्ष से अधिक शिवसेना की प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा।

कहा जाता है कि वर्ष 2014 से 2019 के पांच वर्ष के कार्यकाल में बीजेपी को विपक्ष की जरूरत ही नहीं पड़ी, क्योंकि शिवसेना के रूप में विपक्ष उसके साथ सरकार में शामिल थी। पूरे पांच वर्ष गठबंधन सरकार में शामिल रही शिवसेना न केवल मलाईदार मंत्रालयों पर कब्जा किया था बल्कि गठबंधन सरकार की नाक में भी दम कर रखा था।

वर्ष 2019 महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पूर्व शिवसेना एनडीए नेतृत्व में शामिल होने के लिए करीब महीने भर सीटों के बंटवारे को लेकर ड्रामा किया और अंततः 124 सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार हो गई, लेकिन चुनाव नतीजों में जैसे ही बीजेपी थोड़ी पिछड़ी तो शिवसेना ने रंग दिखाना शुरू कर दिया। बीजेपी से लगभग आधी सीटें जीतकर आई शिवसेना ने बीजेपी के सामने 50-50 फार्मूले की शर्त रखकर अड़ गई जबकि बीजेपी ने चुनाव पूर्व ऐसे किसी गठबंधन से इनकार कर दिया था।

यही कारण है कि कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन से पहले शिवसेना को अभी और अच्छे तरीके से मांजना चाहती है ताकि सरकार गठन के बाद शिवसेना एलायंस सरकार से समर्थन वापसी की धमकी देकर मनमानी ने करने लग जाए। शिवसेना के इतिहास को देखते हुए कांग्रेस और एनसीपी दोनों गठबंधन में शामिल होने से पहले राजनीतिक नफे-नुकसान का आकलन कर रही है, जो गठबंधन में आगे बढ़ने से पहले दोनों दलों को डरा ज्यादा रही हैं।

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में हाथ जला चुकी कांग्रेस महाराष्ट्र में इसलिए फूंक-फूंक कर कदम रख रही है, क्योंकि उसे पता है कि शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन सरकार अगर छह महीने में गिर गई तो किसी भी स्थिति में कांग्रेस और एनसीपी को सबसे अधिक नुकसान होगा। शिवसेना के चलते अगर गठबंधन सरकार गिरती है, तो कांग्रेस और शिवसेना विधायकों के टूटने का खतरा बढ़ जाएगा।

दरअसल, एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना गठबंधन सरकार गिरने का नुकसान कांग्रेस को ज्यादा है, क्योंकि विधायकों के टूट का बड़ा खतरा कांग्रेसी विधायकों पर ज्यादा है और अगर विधानसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस और एनसीपी के लिए असंभव है कि शिवसेना के साथ गठबंधन करके चुनाव में उतरे। तीनों दल अलग-अलग चुनाव में उतरे तो किस मुंह से जनता से अपनी पार्टी के लिए वोट मांगेगे, यह डर भी एनसीपी और कांग्रेस को सता रही है।

एनसीपी और शिवसेना की संभावित गठबंधन की बड़ी कड़ी बनकर उभरी कांग्रेस को शिवसेना के साथ गठबंधन में शामिल होने का सबसे बड़ा डर सेकुलर छवि को नुकसान पहुंचने का है। यही कारण है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने गठबंधन पर फैसले के लिए अभी तक राजी होती नहीं दिख रही है। अभी हाल ही में शरद पवार दिल्ली में सोनिया गांधी से 10 जनपथ पर मुलाकात की है, लेकिन दोनों नेताओं के बीच क्या बात हुई, इसका खुलासा नहीं हो सका है।

बात यही तक रहती तो महाराष्ट्र में संभावित गठबंधन सरकार की कवायद में कुछ वजन भी दिखता, लेकिन मीडिया से बात करते हुए जब एनसीपी चीफ शरद पवार ने कहा कि सोनिया गांधी से महाराष्ट्र सरकार गठन को लेकर कोई बात नहीं हुई तो मीडिया के साथ शिवसेना भी सकते में आ गई है। यही कारण है एक बार महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन सरकार की खबरें तैरने लगी हैं।

माना जा रहा है कि महाराष्ट्र में एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना गठबंधन सरकार का भी परवान चढ़ना भी मुश्किल ही है, क्योंकि शिवसेना मुख्यमंत्री पद को लेकर अड़ी है। हां, एनसीपी, कांग्रेस गठबंधन सरकार में एक शर्त पर जरूर आगे बढ़ सकती है और वह है मुख्यमंत्री पद का बंटवारा।

कहने का अर्थ है कि अगर शिवसेना 50-50 फार्मूले के तहत कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन के लिए भी तैयार हो जाए तो बात बन सकती है, क्योंकि पांच साल तक के लिए शिवसेना का मुख्यमंत्री झेलने के लिए एनसीपी और कांग्रेस दोनों बिल्कुल तैयार नहीं दिख रही है। यही वजह है कि 19 नवंबर को कांग्रेस और एनसीपी की महाराष्ट्र में सरकार गठन के लिए प्रस्तावित मीटिंग भी टाल दी गई है।

चूंकि एनडीए गठबंधन से शिवसेना 50-50 फार्मूले की जिद के चलते अलग हुई है तो उसके लिए यह बड़ा मुद्दा नहीं है, लेकिन शिवसेना अब मुख्यमंत्री पद को लेकर आगे बढ़ गई है और उसे पीछे लाना टेड़ी खीर साबित हो सकता है, यह तभी संभव है जब एनसीपी और कांग्रेस में से कोई एक दल संभावित गठबंधन में शामिल होने के लिए इनकार कर दे और मुख्यमंत्री पद और सरकार बनाने को लालयित शिवसेना दवाब में नए फार्मूले को स्वीकार कर लेगी।

अगले चुनाव में जनता तीनों दल को सबक सिखा सकती है
आदित्य ठाकरे को सीएम बनाने से गठबंधन को नुकसान की आशंका

महाराष्ट्र में एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना की संभावित गठबंधन सरकार के वजूद में नहीं आने के पीछे बड़ी कड़ी आदित्य ठाकरे भी है, क्योंकि आदित्य ठाकरे अभी इतने काबिल नहीं हैं कि वह सरकार चला सकें। 26 वर्षीय आदित्य ठाकरे को अगर कांग्रेस-एनसीपी ने महाराष्ट्र की सत्ता पर बैठाने का निर्णय ले लिया और अनुभव न होने की वजह से कुछ गड़बड़ हो गया तो जनता अगले चुनावों तीनों दल को सबक सिखा सकती है। इस जोखिम से उद्धव ठाकरे भी वाकिफ हैं, लेकिन वह सिर्फ शिवसेना की धमक को वापस पाने की कोशिश में हैं, ताकि महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर वह बड़े भाई की भूमिका में आ सके।

कर्नाटक का अनुभव कांग्रेस को आगे बढ़ने से रोक रही है
महाराष्ट्र के जनादेश के खिलाफ जाने से डर रही है कांग्रेस

कहते हैं जनता सबसे ऊपर है, क्योंकि जनता ही तय करती है कि सत्ता किसके हाथ देनी है. इसे ही तो कहते हैं वोट की पावर. अब अगर जनता ने महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना के गठबंधन को जिताया है, तो दोनों को चुपचाप सरकार बनानी चाहिए. विपक्ष के लिए जनता ने कांग्रेस-एनसीपी के गठबंधन को चुना है. अब अगर कर्नाटक की तरह विपक्ष जनादेश के खिलाफ जाकर सरकार बना भी ले, तो उसकी उम्र बड़ी नहीं होगी।

झारखंड विधानसभा चुनाव में सेक्युलर कैंपेन पड़ेगा ढीला
सिर्फ भाजपा का विजय रथ रोकने के चक्कर में नहीं है कांग्रेस

दरअसल, कांग्रेस अब वह छत्तीसगढ़ और पंजाब जैसी जीत चाहती है, जिसमें भाजपा को करारी शिकस्त मिले और वह विजेता की तरह सामने आए। चूंकि झारखंड विधानसभा चुनाव नजदीक है और अगर कांग्रेस महाराष्ट्र में कट्टर हिंदुवादी शिवसेना के साथ गठबंधन करती है, तो झारखंड में बीजेपी के खिलाफ कैसे सेक्युलरिज्म को कैंपेन का हिस्सा बना पाएगी। हालांकि महाराष्ट्र के कांग्रेस के कार्यकर्ता चाहते हैं कि कांग्रेस शिवसेना से हाथ मिला लें, लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता इसका नुकसान भी अच्छे से समझ रहे हैं। हाल ही में दिल्ली में सोनिया गांधी और शरद पवार की मीटिंग भी हुई थी। उम्मीद जताई जा रही थी कि इससे कुछ निकल कर आएगा, लेकिन अभी तक स्थिति जस की तस है।

शिवसेना और कांग्रेस के बेमेल गठबंधन को लेकर सभी हैरान
शिवसेना की अवसरवादी राजनीतिक कहीं दोनों को ले ना डूबे

सियासी पंडित भी इस बेमेल गठबंधन को लेकर हैरान हैं। शिवसेना ने जहां खुलकर हिंदुत्व की राजनीति की है, वहीं कांग्रेस ने हमेशा से पंथनिरपेक्षता की हुंकार भरी है। ऐसे में हिंदुत्व के मुद्दे पर भारतीय राजनीति के फलक पर छा जाने वाली बीजेपी संग तीन दशकों तक गलबहियां करने वाली शिवसेना के पाला बदलने को राजनीतिक पंडित अवसरवादिता की ही संज्ञा दे रहे हैं. यही वजह है कि सोशल मीडिया पर शिवसेना को लेकर जमकर भड़ास निकाली जा रही है।

आरे जंगल पेड़ कटान मामले में शिवसेना ने अचानक बदला पाला
गठबंधन धर्म के पालन में फिसड्डी है शिवसेना

अभी हाल का वाक्या यह समझने के लिए काफी है कि साथ खड़ी शिवसेना पाला बदलते देर नहीं लगाती है। बात हो रही है मुंबई मेट्रों के लिए आरे जंगलों में पेड़ों की कटाई की। आरे में पेड़ों की कटाई ने शिवसेना ने पहले बीजेपी नेतृत्व के पक्ष में खड़ी रही और फिर पलक झपकते ही शिवसेना ने पाला बदलकर एकाएक पर्यावरण प्रेमी बनकर सामने आ गई। वर्ली विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार और शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे ने पहले आरे जंगल मे पेड़ों की कटाई का विरोध कर रहे लोगों का समर्थन किया और इसके बाद पूरी पार्टी ही आंदोलन में उतर गई। शिवसेना का यूटर्न देखकर बीजेपी सकते में थी। शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी निशाना साध दिया। नाम लिए बगैर अपने ट्वीट में ठाकरे ने कहा कि इस तरह से जंगल काटे जा रहे हैं तो प्लास्टिक प्रदूषण पर बोलने का कोई प्वाइंट नहीं है। इससे पहले भी आदित्य ठाकरे ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से अलग लाइन पकड़ते हुए आरे में पेड़ काटने का विरोध कर चुके है। यही वजह है कांग्रेस और एनसीपी शिवसेना के साथ गठबंधन को लेकर असमंजस में बने हुए हैं।