रायपुर। छत्तीसगढ़ में 176 करोड़ रुपए टैक्स चोरी का खुलासा होने के बाद भी धोखेबाज कारोबारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई है। साल 2015 में सामने आए मामले में अभी तक आरोपी कारोबारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं हुआ है।
रायपुर के कारोबारी चंपालाल जैन और उसके बेटे नमित और अमित जैन ने अपनी पांच फर्मों के जरिए फ्रॉड कर प्रदेश की सबसे बड़ी कर चोरी को अंजाम दिया था। इन सबने दिल्ली से अरबों रूपये के तंबाकू, जर्दा, इलाइची, सुपारी, पान मसाला जैसे सामान मंगवाए, लेकिन वाणिज्यकर विभाग को एफ फॉर्म के जरिए महज कुछ करोड़ के माल मंगवाने की जानकारी दी। इस धोखाधड़ी की जांच हुई। सारे सबूत भी मिले। लेकिन 5 साल बाद भी अब तक ना तो धोखेबाज कारोबारियों पर FIR हुई, ना ही पौने दो अरब रुपये से ज्यादा की वसूली हो पाई। सवाल है… आखिर क्यों?
चंपालाल जैन उसकी पत्नी विमला जैन उसके बेटे नमित और अमित जैन यही वो चार नाम हैं जिन पर छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े एक्साइज टैक्स चोरी का रिकार्ड दर्ज है। साल 2015 में जब इन चारों की करतूत का खुलासा हुआ तो राज्य वाणिज्य कर विभाग के अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक सकते में आए गए। उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि कोई कारोबारी इस सीनाजोरी के साथ भी कर चोरी कर सकता है। ना कानून का डर और ना कार्रवाई का खौफ।
दरअसल, 1 सितंबर 2015 को दिल्ली ट्रेड एंड टैक्सेस के ज्वाइंट कमिश्नर ने एक ईमेल भेज कर इसकी जानकारी दी। रायपुर की फर्म आशी और अर्नव के जरिए साल 2013 से 2015 के बीच छत्तीसगढ़ में 176 करोड़ का जर्दा और पान मसाला बेचना बताया जा रहा था, जो हैरान करने वाला आंकड़ा था। जांच हुई तो पता चला आरोपी कारोबारियों ने 176 करोड़ के माल को केवल 7.71 करोड़ का माल बता कर जबरदस्त कर चोरी की है। यह सारा काम एफ फॉर्म में छेड़छाड़ कर अंजाम दिया गया। इसके बाद सघन जांच शुरू हुई।
जिसमें पता चला कि कारोबारी चंपालाल जैन, उसकी पत्नी विमला जैन, बेटे अमित और नमित जैन ने आशी, अर्नव, आन्या, अनंत और अरिहंत एजेंसी के 58.73 करोड़ रूपये की टैक्स चोरी की है। साल चोरी 2010-11 से 2015-16 के बीच की गई। इसके बाद विभाग की तरफ से टैक्स चोरी पर ब्याज और पेनाल्टी के रूप में 120.33 करोड़ रुपये और जोड़े गए और 179. 07 करोड़ रूपये की देनदारी तय कर दी गई।
कर असेसमेंट प्रक्रिया के दौरान आरोपी कारोबारियों ने लिखित में कबूल किया कि उन्होंने कर अपवंचन के लिए एफ फॉर्म में छेड़छाड़ की है। टैक्स से बचने के लिए कारोबारी दिल्ली से माल मंगाकर हरियाणा में बेचना बताया, लेकिन हरियाणा भेजे गए ट्रकों की बिल्टी, ट्रांसपोर्टर पेमेंट या माल लोड-अनलोड का खर्च नहीं दिखा पाया। डैमेज माल और डिस्काउंट के आधार पर भी छूट पाने की कोशिश की, लेकिन उसके दस्तावेज भी पेश नहीं किए जा सके।
इस मामले में आरोपियों के बैंक खाते सीज करने से लेकर उनकी संपत्तियां तक सीज की गई। उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के लिए पुलिस को पत्र भी लिखा गया। इन तमाम तथ्यों के बावजूद आज तक ना तो आरोपी पर कोई एफआईआर दर्ज हुआ, और ना ही उनसे 179 करोड़ रूपये की वसूली की गई। हालांकि प्रदेश के वाणिज्य मंत्री न्यायसंगत कार्रवाई करने की बात कह रहे हैं।
इस मामले में आरोपी हाई कोर्ट तक गए, लेकिन वहां भी उनकी याचिका खारिज कर दी गई। इसके बाद आश्चर्यजनक तरीके से वाणिज्यकर विभाग के अधिकारियों ने केस के रि असेसमेंट का आदेश जारी कर दिए। और इसी के साथ आरोपियों की सीज सारी संपत्तियां और बैंक खाते भी रीलिज कर दिए गए। अब सवाल यह है कि जब दो दो बार की जांच प्रक्रिया में आरोपी कारोबारियों को बचाव में दस्तावेज जमा करने के सारे मौके दिए जा चुके थे।
तब फिर से रिअसेसमेंट की नौबत क्यों आई। सूत्रों की मानें तो आरोपियों के सीज बैंक खातों में करीब 38 करोड़ रुपये जमा थे, लेकिन बिना वसूली किए ही बैंक खातों को रीलिज कर दिया गया। इस तरह, विभाग के पास आया पैसा फिर आरोपी के पास चला गया। अभी वाणिज्यकर विभाग दलील दे रहा है कि रिअसेसमेंट का आर्डर है इसलिए आरोपियों से कोई कोई वसूली नहीं बची है, जबकि हकीकत यह है कि उनसे करीब 170 करोड़ रूपये की वसूली अभी भी बाकी है। इस मामले की लोक आयोग में भी शिकायत हुई थी, तब वाणिज्यकर विभाग के अधिकारियों ने जवाब दिया था कि आरोपियों पर एफआईआर कराया जा रहा है। लेकिन अब तक एफआईआर दर्ज नहीं हुआ।
इन सबके चलते वाणिज्य कर विभाग की कार्रवाई कई संदेह को जन्म दे रही है। यह भी महज संयोग नहीं है कि पांच साल पहले टैक्स चोरी की सबसे बड़ी वारदात करने वाले कारोबारियों का सीधा कनेक्शन कोरोना काल में क्वींस क्लब में हुई गैर कानूनी गतिविधियों से भी हैं। वावजूद इसके ना तो वाणिज्यकर विभाग और ना ही पुलिस विभाग कोई कार्यवाई करती दिख रही है।