सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण मानकों को कमजोर करने पर चिंता जताते हुए कहा है कि पर्यावरण मंत्रालय इसे लगातार कमजोर कर रहा है। शीर्ष अदालत ने नसीहत दी है कि मंत्रालय को पर्यावरण मंत्रालय की तरह काम करना चाहिए।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि आपको दिखाना होगा कि यह पर्यावरण मंत्रालय है। मंत्रालय लगातार मानकों को कमजोर कर रहा है। 2019 में एनजीटी के एक आदेश के खिलाफ केंद्र सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए पीठ ने यह टिप्पणी की।
दरअसल एनजीटी ने मंत्रालय की 2017 की एक अधिसूचना में खामियां पाई थीं। इसमें सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) द्वारा अपशिष्ट निस्तारण के लिए नए मानदंड निर्धारित किए गए थे। यह माना गया था कि नई अधिसूचना से पानी की गुणवत्ता में गिरावट आएगी और यह तय किया गया था कि विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के आधार पर सख्त मानक बनाया जाएगा। विशेषज्ञ समिति ने एसटीपी के लिए सात वर्षों की समय सीमा तय की थी, लेकिन एनजीटी ने एसटीपी को मानकों को बिना किसी देरी के लागू करने को कहा था।
एननजीटी ने यह भी कहा था कि महानगरों के लिए निर्धारित मानक देश के अन्य हिस्सों में भी लागू होंगे। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर एनजीटी के इस आदेश पर तत्काल रोक लगाने की मांग की थी।
पीठ ने पूछा क्यों चाहिए रोक, और प्रदूषण चाहते हैं
पीठ ने केंद्र सरकार की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से सवाल किया कि आप किस तरह की रोक चाहते हैं? क्या और ज्यादा प्रदूषण होना चाहिए? पीठ ने कहा कि ट्रिब्यूनल के आदेश ने सुनिश्चित किया है कि पानी में प्रदूषण की मात्रा कम हो, इसमें भला क्या परेशानी हो सकती है। हम आदेश पर रोक नहीं लगाएंगे।
भाटी बोले, एनजीटी ने अपनी ही समिति के सुझाव नहीं माने
भाटी ने कहा कि एनजीटी ने अपनी ही विशेषज्ञ समिति के सुझावों को नहीं माना और एसटीपी को तत्काल अपग्रेड करने व अपशिष्ट निस्तारण के लिए सख्त मानकों के पालन की बात भी कही है। भाटी ने कहा कि अपग्रेडेशन में समय लगेगा और मंत्रालय ने इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए 2017 में अधिसूचना जारी की थी।