मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में बिजली संकट को लेकर हाहाकार मचा हुआ है. सत्ता के गलियारों से किसानों के सूखे खेतों को तक ये मुद्दा गर्माता जा रहा है. बिजली के इस संकट का सबसे ज्यादा सामना किसान कर रहे हैं, क्योंकि गांव में 2 से लेकर 10 घंटे तक अघोषित बिजली काटी जा रही है. इससे फसलें खराब होने की आशंका बढ़ती जा रही है.
गौरतलब है कि प्रदेश में बिजली संकट को लेकर विपक्ष सत्ता पक्ष पर लगातार हावी हो रहा है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) ने इस मुद्दे को लेकर ऊर्जा विभाग के साथ गहन विचार-विमर्श कर रिपोर्ट भी मांगी है. बता दें, प्रदेश को हर हाल में 10 हजार मेगावाट की जरूरत होती है, जबकि बिजली प्लांट, हाइडल और सेंट्रल सेक्टर से 8920 मेगावाट बिजली ही उपलब्ध है. यह स्थिति तब है जब प्रदेश बिजली के मामले में सरप्लस स्टेट माना जाता था. बिजली के मामले में सरकार आत्म निर्भर होने का दावा करती आ रही है, लेकिन अचानक बिजली संकट क्यों खड़ा हो गया.
बिजली प्लांटों में कोयले की कमी
राज्य सरकार के 4 बड़े बिजली उत्पादन प्लांटों में कोयले की कमी है. प्रदेश में सबसे ज्यादा बिजली का उत्पादन 2520 मेगावाट श्री सिंगाजी, खंडवा में होता है. यहां महज 4 दिन का कोयला स्टॉक में है और मात्र 600 मेगावाट बिजली पैदा हो रही है. ऐसी ही स्थिति अन्य तीन प्लांटों सतपुड़ा ताप विद्युत सारनी, संजय गांधी पावर प्लांट बिरसिंहपुर और अमरकंटक ताप गृह चचाई की है. इन चार प्लांटों में 16 यूनिट हैं, लेकिन कोयले की कमी के कारण 9 यूनिट बंद करना पड़ी हैं.
करोड़ों रुपए की लेनदारी-देनदारी
बता दें, MP पावर जनरेटिंग कंपनी के कोयले आधारित ताप विद्युत संयंत्रों को (WCL) वेस्टर्न कोल लिमिटेड, साउथ-ईस्टर्न कोल लिमिटेड और (SECL) नार्दन कोल लिमिटेड (NCL) से कोयला मिलता है. बताया जा रहा है कि इस कंपनी पर तीनों कंपनियों का 1500 करोड़ से ज्यादा रुपए बकाया हैं. दूसरी ओर, विद्युत वितरण कंपनियों और पावर मैनेजमेंट कंपनियों को 2500 करोड़ रुपए एमपी पावर जनरेटिंग कंपनी को देने हैं. विद्युत वितरण कंपनियों को सरकार से सब्सिडी के 8000 करोड़ रुपए लेने हैं. सरकार के स्तर पर भुगतान न होने से ये संकट बना हुआ है. आर्थिक स्थिति ठीक न होने से बिजली कंपनियों को सरकार सब्सिडी नहीं दे पा रही.
एन वक्त पर बिजली कंपनियों ने खड़े किए हाथ
जानकारी के मुताबिक, मध्य प्रदेश सरकार का निजी कंपनियों से 21 हजार मेगावाट बिजली देने का कॉन्ट्रेक्ट है. इसके तहत बिजली की डिमांड हो या न हो, सरकार कंपनियों को फिक्स चार्ज का भुगतान करती है. लेकिन इन कंपनियों ने संकट के समय बिजली सप्लाई करने से हाथ खड़े कर दिए. ऐसे में सरकार को 31 अगस्त को 1163 मेगावाट यानी 1 करोड़ 5 लाख यूनिट अतिरिक्त बिजली खरीदनीपड़ी. बता दें, इस दिन कृष्ण जन्माष्टमी के कारण उस दिन बिजली की मांग 11 हजार मेगावाट से ज्यादा थी.