हाल ही में केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले ने बयान दिया कि 2004 में यूपीए को सत्ता मिलने पर सोनिया गांधी को या तो खुद प्रधानमंत्री बन जाना चाहिए था या फिर शरद पवार को प्रधानमंत्री बना देना चाहिए था. आठवले लेकिन बयान देते वक्त ये भूल गए कि पवार ने 5 साल पहले ही कांग्रेस छोड़ दी थी और अपनी अलग पार्टी बना ली थी. शरद पवार देश के एक कद्दावर राजनेता हैं. उनके बारे में सियासी हलकों में अक्सर कहा जाता है कि अगर वो कुछ और वक्त तक कांग्रेस में होते तो देश के प्रधानमंत्री बन सकते थे….लेकिन सोनिया गांधी से अनबन के चलते उन्होने कांग्रेस छोड दी. पवार के कांग्रेस छोडने और एनसीपी नाम की नयी पार्टी बनाने की कहानी बडी दिलचस्प है. ये वो कहानी है जिसमें बगावत है, खेमेबाजी है,दगाबाजी है और विरोधाभास है.
मार्च 1998 तक सीताराम केसरी कांग्रेस के अध्यक्ष थे. उनके तौर तरीकों से पार्टी में बडा असंतोष था. चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन तो खराब था ही पार्टी में गुटबाजी भी बढ रही थी. ऐसे में कांग्रेस को बचाने के लिये उन्हें हटाये जाने की जरूरत महसूस हुई. पी सी अलैक्सजेंडर नाम के वरिष्ठ नेता की सलाह पर शरद पवार ए.के एंटोनी और गुलाम नबी आजाद के साथ दस जनपथ पहुंचे सोनिया गांधी को मनाने के लिये कि वे राजनीति में आ जायें और कांग्रेस को बचाने के लिये उसकी कमान अपने हाथों में ले लें. इस मीटिंग के बाद 14 मार्च 1998 को सीताराम केसरी को कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटा दिया गया और सोनिया गांधी पार्टी की नयी अध्यक्ष बन गयीं.