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अब तक क्यों फेल रहे तेल की जगह वाहनों को पानी से चलाने के प्रयोग.

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कई बार ये सवाल दिमाग में आता है कि हमारे वाहन आखिर पानी से क्यों नहीं चल सकते. उन्हें चलाने के लिए पेट्रोल, डीजल की ही जरूरत क्यों होती है. अब तक वाहनों को पानी से चलाने के तमाम प्रयोग किए गए. कुछ बड़ी कंपनियां अब भी ऐसे प्रयोगों पर जुटी हुई हैं. लेकिन अतीत में हुए ऐसे प्रयोग क्यों नाकाम रहे, ये जरूर जानना चाहिए लेकिन ये भी तय है कि साइंस जिस तरीके से आगे बढ़ रही है, उससे आने वाले सालों में ये सच हो सकता है

पेट्रोल और डीजल दोनों पेट्रोलियम पदार्थ हैं, इन्हें जीवाश्म ईंधन भी कहा जाता है. पेट्रोलियम ईंधन हाइड्रोकार्बन से बने होते हैं. हाइड्रोकार्बन अणुओं में अधिकतर कार्बन और हाइड्रोजन परमाणु होते हैं.
साथ ही साथ इनमें कुछ अन्य तत्व जैसे ऑक्सीजन भी मौजूद रहते हैं.  पेट्रोल और डीज़ल ही नहीं बल्कि लकड़ी, कोयला, कागज़ आदि में हाइड्रोकार्बन होते हैं. इनको जलाकर ऊर्जा में बदला जाता है.

तो किस तरह पैदा होती है ऊर्जा 
जब आप हवा में हाइड्रोकार्बन जलाते हैं, तो उसके अणु टूट जाते हैं. ये फिर ऑक्सीजन के साथ मिलकर कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) गैस और पानी (H2O) बनाते हैं. इस क्रिया अणुओं के टूटने और जुड़ने से जो ऊर्जा मुक्त होती है, वो गर्मी के रूप में बाहर निकलती है. इसे ज्वलन (combustion) कहा जाता है. इससे काफी मात्रा में ऊर्जा पैदा होती है.

कब पहली बार ऊर्जा के रूप को इंसान ने जाना
हज़ारों-लाखों वर्षों से हाइड्रोकार्बन के उपयोग से ऊर्जा तैयार हो रही है. पहली बार ये तब पैदा हुई जब इंसान आग का इस्तेमाल करना सीखा. गाड़ियों को चलाने के लिए ज़रूरी है कि यह ऊर्जा गर्मी के रूप में नहीं बल्कि ऐसे रूप में पैदा हो, जिससे यंत्रों को चलाया जा सके. गाड़ियों में पेट्रोल या डीज़ल की ज्वलन प्रक्रिया बन्द कनस्तर यानी इंजन में होती है. ये इंजन अपना काम इस तरह करते हैं कि ज्यादा से ज्यादा ऊर्जा का इस्तेमाल करते हैं.

क्यों पानी को ईंधन की तरह जलाया नहीं जा सकता
वहीं पानी को ईंधन की तरह जलाया नहीं जा सकता. दरअसल पानी की कोई रासायनिक प्रक्रिया नहीं है, जिसकी मदद से पानी को ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाए. अलबत्ता पानी जब गरम भाप में बदलता है तो जरूर ऊर्जा पैदा करता है लेकिन इस ऊर्जा के लिए पानी गरम करने के लिए भी कोयले या दूसरे ईंधन की जरूरत होती है, लिहाजा ये प्रक्रिया छोटे वाहनों और कारों में उपयोगी नहीं.

तो फिर स्टीम इंजन कैसे चलते थे
ये बात सही है कि भाप का इंजन स्टीम यानि भाप की ताकत के जरिए चलता था लेकिन उसमें बड़े पैमाने पर लगातार कोयला डालना होता था. इसी कारण इस तकनीक की जगह फिर बिजली या डीजल के इंजनों ने ली.

कब पानी से पैदा होती है ऊर्जा 
रासायनिक क्रियाओं की बात करें तो अकेले पानी से रासायनिक ऊर्जा निकालने का कोई तरीका भी नहीं .हां जब पानी बहुत ताकत से गिराया जाता है तो जरूर ऊर्जा पैदा होती है, जिसका इस्तेमाल पनबिजली संयंत्रों या बांध में किया जाता है. बड़े-बड़े बांधों में काफी ऊंचाई से पानी टरबाइन पर गिराया जाता है. टरबाइन घूमने से बिजली उत्पन्न होती है. लेकिन गाड़ी में ऐसी ऊंचाई कहां से लाई जाए, ऐसा करना मुश्किल होगा.

तब बहुत खतरनाक साबित होगी पानी से चलने वाली गाड़ी
मान लीजिए आपको पानी से चलने वाली गाड़ी बनानी है तो सबसे पहले आपको एक ऐसे उपकरण की जरूरत होगी, जो पानी के अणुओं को तोड़ सके और ऑक्सीजन एवं हाइड्रोजन को अलग कर सके. दोनों गैस को अलग-अलग टैंक में रखना होगा. इसके बाद उनके लिए दहन प्रणाली की जरूरत होगी, जिससे दोनों को जलाया जा सका. लेकिन ये प्रक्रिया ज्यादा कारगर नहीं होगी बल्कि हाइड्रोजन के चलते अगर कहीं दो गाड़ियों की मामूली टक्कर भी हो गई तो बड़ा विस्फोट हो सकता है.

इस कंपनी ने किया था पानी से चलने वाली कार बनाने का दावा
वर्ष 2002 में जेनेसिस वर्ल्ड एनर्जी ने घोषणा की थी कि उसने एक ऐसी गाड़ी तैयार की है जो हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को अलग करके और फिर उसे पानी के रूप में पुनर्संयोजित करके ऊर्जा प्राप्त करेगी. कम्पनी ने इसके लिए निवेशकों से 25 लाख डॉलर भी लिए लेकिन वे आज तक ऐसी कोई गाड़ी बाज़ार में नहीं उतार सके.

जापानी कंपनी का दावा भी हो गया फुस्स
वर्ष 2008 में एक जापानी कम्पनी जेनपेक्स ने दावा किया कि उनकी गाड़ी केवल पानी और हवा पर चलने में सक्षम है. काफी चर्चा और जांच के बाद पॉपुलर मैकेनिक्स नाम की मैगजीन ने जेनपेक्स के दावों को ध्वस्त कर दिया. जिस गाड़ी को जेनपेक्स ने मीडिया के सामने प्रदर्शित किया था, वह वास्तव में इलेक्ट्रिक कार थी जिसका निर्माण भारत में किया गया था. उसे ब्रिटेन में G-Wiz नाम से बेचा गया था.

पहले भी कई बार पानी से चलने वाली गाड़ियों के दावे हो चुके हैं लेकिन वो फेल रहे. हालांकि उम्मीद करनी चाहिए भविष्य में ऐसा कुछ हो पाए. पानी से गाड़ियां चलने लगें. वैसे ये खबरें आ रही हैं कि ऐसे कुछ प्रयोग हुए हैं और वो काफी हद तक बेहतर भी रहे हैं.