बिहार के गोपालगंज में बुधवार को जहरीली शराब पीने से 17 (आधिकारिक तौर पर 12) लोगों की मौत हो गई. वहीं गुरुवार को पश्चिम चंपारण के नौतन में संदिग्ध स्थिति में 8 लोगों की मौत हो गई. कहा जा रहा है कि इनकी मौत भी जहरीली शराब पीने से ही हुई है. शराबबंदी वाले बिहार में बीते दो दिनों में जहरीली शराब पीने से 25 लोगों की मौत हो चुकी है. वर्ष 2021 की बात करें तो अब तक जहरीली शराब करीब 85 से अधिक लोगों की जान ले चुकी है. जाहिर है ऐसी घटनाओं को लेकर विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव (Tejaswi Yadav) मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की शराबबंदी को फेल बताते हुए सरकार पर हमलावर हैं. सवाल पूछ रहे हैं कि क्या शराबबंदी का ढोल पीटने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसके जिम्मेदारी नहीं हैं? विपक्ष की बात में दम भी दिखता है क्योंकि अक्सर शराबबंदी को लेकर नीतीश सरकार कटघरे में दिखाई देती है. शासन तंत्र और शराब माफियाओं के बीच मिलीभगत के आरोप भी लगते रहे हैं.
बता दें कि हाल में ही बिहार की एनडीए सरकार में शामिल हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने नीतीश सरकार के शराबबंदी के फैसले पर सवाल उठाया था. उन्होंने कहा था कि, ‘बिहार में 50 हजार करोड़ की शराब की खपत होती है, बड़े माफिया, पुलिस-पदाधिकारी शराबबंदी के बाद माला-माल हो रहे हैं और गरीब जनता पिस रही है.
दरअसल, बिहार में कोई भी दिन ऐसा नहीं बीतता जब शराबबंदी होने के बाद भी राज्य के किसी ना किसी कोने से शराब की बरामदगी, या फिर शराबबंदी कानून तोड़ने की खबरें न सामने आती हों. संगठित आधार पर शराब तस्करी जारी है. एक गैर आधिकारिक आंकड़े के अनुसार राज्य में इसी साल लगभग एक करोड़ लीटर से अधिक अवैध देशी और विदेशी शराब पकड़ी जा चुकी है. उत्पाद विभाग के आंकड़ों के अनुसार मुजफ्फरपुर, वैशाली, गोपालगंज, पटना, पूर्वी चपारण, रोहतास और सारण क्षेत्र से सबसे अधिक शराब पकड़ी गई है.
उत्पाद विभाग के अधिकारी गैर आधिकारिक जानकारी देते हुए बताते हैं कि बिहार में झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश एवं नेपाल से शराब की बड़ी खेप तस्करी कर लाई जाती है. स्थिति इतनी बदतर है कि एक आंकड़े के अनुसार पुलिस और मद्य निषेध विभाग की टीम प्रदेश में प्रति घंटे औसतन 1341 लीटर शराब जब्त कर रही है, मिनट के हिसाब से देखें तो 22 लीटर प्रति मिनट शराब की जब्ती की जा रही है.
बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे ने जब वे पुलिस महानिदेशक के पद पर थे तो उन्होंने शराबबंदी पर जानकारी देते हुए न्यूज 18 को बताया था कि एक अप्रैल 2016 को बिहार में शराबबंदी कानून लागू होने के बाद से लेकर 31 मार्च, 2019 तक हर एक मिनट में कम से कम तीन लीटर शराब की बरामदगी हुई थी. साथ ही हर 10 मिनट के अंदर एक गिरफ्तारी की गई थी.
बता दें कि 1 अप्रैल, 2016 को बिहार देश का ऐसा पांचवां राज्य बना था जहां शराब के सेवन और जमा करने पर प्रतिबंध लग गया था. प्रतिबंध न मानने पर सख्त सजा के प्रावधान किए गए. यही कारण रहा कि 1 अप्रैल 2016 से दिसंबर 2020 तक करीब दो लाख लोगों को शराबबंदी के उल्लंघन पर जेल हुई जिनमें करीब चार सौ से अधिक लोगों को सजा भी मिली.
हालांकि, एक दूसरी रिपोर्ट भी है जो शराबबंदी कानून को लागू किए जाने पर ही सवाल खड़े करती है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस), 2020 की रिपोर्ट के अनुसार ड्राई स्टेट होने के बावजूद बिहार में महाराष्ट्र से ज्यादा लोग शराब पी रहे हैं. बिहार में 15.5 प्रतिशत पुरुष शराब का सेवन करते हैं. वहीं, इसकी तुलना में महाराष्ट्र, जहां शराबबंदी नहीं है, वहां शराब पीने वाले पुरुषों का प्रतिशत महज 13.9 है.
एनएफएचएस की इसी रिपोर्ट के अनुसार बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में 15.8 प्रतिशत और शहरी इलाकों में 14 प्रतिशत लोग शराब पीते हैं. महिलाओं के मामले में बिहार के शहरी इलाके की 0.5 % व ग्रामीण क्षेत्रों की 0.4% महिलाएं शराब पीती हैं. महाराष्ट्र के शहरी इलाके में 0.3% और 0.5% महिलाएं शराब पीती हैं. जाहिर है शराबबंदी के बावजूद बिहार में शराब मिलती है यह हकीकत है.
बता दें कि 1 अप्रैल 2016 में शराबबंदी लागू होने से पहले भी 1977 में तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने शराबबंदी लागू की थी. लेकिन, शराब की तस्करी इतनी बढ़ गई थी कि गैरकानूनी तरीके से शराब बेचने वाले अपराधियों की संख्या में जबरदस्त बढ़ोतरी हो गई. कर्पूरी सराकर को इसके बाद शराबबंदी का फैसला वापस लेना पड़ा. तब भी सरकार के भीतर इस कानून का विरोध था और किसी तरह यह कानून डेढ़ साल तक ही लागू रहा.
बिहार में दूसरी बार शराबबंदी लागू होने की कहानी भी दिलचस्प है. दरअसल वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड ने भारतीय जनता पार्टी से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल के साथ महागठबंधन बनाया. उस दौरान बिहार में पुरुषों की शराब की लत से परेशान महिलाओं ने पारिवारिक कलह, घरेलू हिंसा, शोषण व गरीबी के आधार पर राज्य में शराबबंदी की मांग की थी.
इसी चनावी वर्ष में सीएम नीतीश ने वादा कर दिया था कि अगर वे फिर सत्ता में आए तो शराबबंदी लागू कर देंगे. महिलाओं को नीतीश के इस वादे पर इतना विश्वास हो गया कि इस इलेक्शन में 59.92 महिलाओं ने मतदान किया. कई क्षेत्रों में तो यह 70 प्रतिशत के भी पहुंच गया था. महागठबंधन की जीत हुई और नीतीश कुमार एक बार फिर मुख्यमंत्री बन गए. उन्होंने राज्य की बागडोर संभालने के बाद अप्रैल 2016 से शराबबंदी कानून लागू कर दिया.
हालांकि, एक हकीकत यह भी है कि सीएम नीतीश कुमार के ही एक निर्णय के कारण ही राज्य में पंचायत स्तर तक शराब की दुकानें खुल गई थी. प्रदेश में वर्ष 2005 से 2015 के बीच बिहार में शराब दुकानों की संख्या दोगुनी हो गई थीं. शराबबंदी से पहले बिहार में शराब की करीब छह हजार दुकानें थीं और सरकार को इससे करीब डेढ़ हजार करोड़ रुपये का राजस्व आता था.
बहरहाल, 1 अप्रैल, 2016 को बिहार देश का ऐसा पांचवां राज्य बन तो गया पर इसको लेकर कई सवाल उठते रहे हैं. एएन सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान के डॉ. अजय कुमार झा कहते हैं, ”कानून तो सही है, लेकिन इसका इंप्लीमेंटेशन गलत है. शराब पीने वाले और अवैध शराब बेचने वाले तो पकड़े जा रहे हैं, लेकिन इसके बड़े सप्लायरों को कोई कार्रवाई अब तक पांच सालों में कहीं नहीं दिखी.”
अजय कुमार झा कहते हैं, ”शराबबंदी कानून का उद्देश्य समाज सुधार है. इसके अच्छे परिणाम भी सामने हैं. बिहार में कानून लागू होने के बाद घरेलू हिंसा, सड़क दुर्घटनाओं जैसी चीजों में कमी आई है. गरीब परिवारों का जीवन भी सुकून से बीत रहा है क्योंकि जो पैसे खुलेआम शराब पीने में उड़ा दिए जाते थे वह घर आने लगा है. हालांकि, बड़ी हकीकत यह भी है कि शराब का अवैध कारोबार करने वालों ने समानांतर अर्थव्यवस्था कायम कर ली है.