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राजनीतिक दलों के लिए कितनी बड़ी चुनौती है डिजिटल चुनाव प्रचार, कैसे खड़ा होगा नेटवर्क, जानिए डिटेल्स

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पांच राज्यों में होने जा रहे चुनाव (upcoming elections) में आयोग ने डिजिटल चुनाव प्रचार (Digital election campaign) माध्यम अपनाने का फरमान जारी किया है. इसके तहत 15 जनवरी तक किसी भी तरह के रोड शो, रैली, पद यात्रा, साइकिल और स्कूटर रैली पर प्रतिबंध भी लगा दिया है. यहां तक कि चुनाव के बाद विजय जुलूस (victory processions) की भी अनुमति नहीं है. ऐसे में डिजिटल माध्यमों से चुनाव प्रचार राजनीतिक दलों (political parties) और आजाद उम्मीदवारों (independent candidates) के लिए बड़ी चुनौती है. चुनाव प्रचार के लिए डिजिटल नेटवर्क को चार या पांच दिन में खड़ा नहीं किया जा सकता. इसलिए कई राजनीतिक दलों ने इस पर चिंता जाहिर की है.

चुनाव प्रचार नियमों में बदलाव की संभावना कम
पंजाब की बात करें तो शिरोमणि अकाली दल (Shiromani Akali Dal) चुनाव आयोग (Election Commission) के इस फैसले पर आपत्ति जाहिर कर चुका है. हालांकि चुनाव आयोग के फैसले पर अमल करते हुए आम आदमी पार्टी और कांग्रेस डिजिटल चुनाव प्रचार में उतर गए हैं. जानकारों की मानें तो जिस हिसाब से देश सहित पंजाब में कोरोना संक्रमण तेजी से फैल रहा है, उससे लगता है कि चुनाव प्रचार की नियमों में कोई बदलाव संभव नहीं दिख रहा है और हकीकत यह है कि डिजिटल चुनाव प्रचार के माध्यम से सभी मतदाओं के पास पहुंच पाना संभव नहीं है. पंजाब के बुजुर्ग और गरीबों के पास डिजिटल उपकरण नहीं हैं. डिजिटल माध्यमों से ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंच करना आसान नहीं है. आयोग ने डोर-टू-डोर कैंपेन के लिए भी पांच लोगों की संख्या निर्धारित की है.

छोटे दलों के पास डिजिटल तकनीक के लिए संसाधन नहीं
पंजाब में 2012 के चुनाव की बात करें तो 6 राष्ट्रीय दलों सहित करीब 25 पाटिर्यों ने चुनाव लड़ा था. मुख्य धारा के राजनीतिक दलों में भाजपा, बसपा, भाकपा, सीपीएम (मार्क्सवादी), भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी प्रमुख हैं. आजाद उम्मीदवारों सहित 1078 उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे. जबकि 2017 के चुनाव में 34 राजनीतिक दल चुनाव मैदान में थे और आजाद उम्मीदवारों सहित 1145 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था. इस बार चुनाव में इससे ज्यादा राजनीतिक दल और उम्मीदवार चुनाव मैदान में होंगे. पंजाब में करीब आधा दर्जन नए राजनीतिक दल इस बार चुनाव मैदान में हैं, जो डिजिटल तकनीक से भलीभांति परिचित भी नहीं हैं. इसके विपरीत कांग्रेस, भाजपा, शिअद और आप लंबे समय से डिजिटल माध्यमों का प्रयोग कर रहे हैं. डिजिटल प्रचार में भाजपा को देश में अग्रणी माना जाता है. चूंकि इसके जिला और ब्लॉक स्तर पर भी आईटी सेल गठित हैं.

डिजिटल नेटवर्क बनाने में लगते हैं कई महीने
आम आदमी पार्टी के पूर्व सोशल मीडिया और आईटी प्रमुख और ‘इंडिया सोशल’ किताब के लेखक अंकित लाल इन दिनों राजनीतिक अभियान सलाहकार और रणनीतिकार के रूप में काम कर रहे हैं. बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि डिजिटल पर उपस्थिति बनाने के लिए कम से कम चार से छह महीनों का समय चाहिए होता है. लेकिन अगर आप जीरो से शुरू कर रहे होते हैं तो आर्गेनिक नेटवर्क बनाने के लिए 18 महीनों तक का वक्त लग जाता है. हालांकि इससे जो एसेट बनते हैं वो लंबे समय तक चलते हैं.

डिजिटल चुनाव प्रचार से कितना फायदा
लाल कहते हैं कि डिजिटल अभियान का सबसे अहम पहलू होता है कंटेंट क्रिएट करना और उसकी आर्गेनिक रीच यानी बिना पेड प्रोमोशन के उसे लोगों तक पहुंचाना. पैसे खर्च करके कंटेट को लोगों तक पहुंचाया जा सकता है लेकिन उसका प्रभाव उतना नहीं होता जितना स्वयं लोगों के पास पहुंचे कंटेंट का होता है.अंकित लाल कहते हैं कि अभी की स्थिति में डिजिटल उपस्थिति की बात की जाए तो सभी राजनीतिक दलों की स्थिति बराबर नहीं है. भारतीय जनता पार्टी इस क्षेत्र में पहले उतरी है और दूसरे दलों से आगे रही है. शुरुआत के सालों में बाकी पार्टियों ने डिजिटल उपस्थिति पर उतना ध्यान नहीं दिया जितना बीजेपी ने दिया था.