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‘बीजेपी के दबाव में विधेयक मंजूर नहीं कर रहीं राज्यपाल’:कांग्रेस अध्यक्ष मरकाम बोले- वे आरक्षण देना नहीं चाहते, यह BJP-RSS का हिडेन एजेंडा

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आरक्षण विधेयकों को लेकर मचे घमासान के बीच कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम ने बड़ा आरोप लगाया है। उन्होंने कहा, राज्यपाल अनुसूईया उइके भाजपा के दबाव में आरक्षण विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं कर रही हैं। भाजपा के लोग संविधान बदलना चाहते हैं। कमजोर वर्गों को आरक्षण नहीं देना चाहते। यह BJP-भारतीय जनता पार्टी और RSS-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हिडेन एजेंडा है।

भारत जोड़ाे यात्रा में शामिल होकर राजस्थान से लौटे प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम ने सोमवार को कहा, महामहिम राज्यपाल ने ही सरकार को चिट्ठी लिखकर सत्र बुलाने कहा था। उनकी मंशा के अनुरूप सरकार ने तत्परता दिखाई और विधेयक पास करवाया। मेरा मानना है कि अब राज्यपाल को प्रदेश के हित को ध्यान में रखकर उसपर हस्ताक्षर कर देना चाहिए। मोहन मरकाम ने कहा, भाजपा के दबाव में राज्यपाल हस्ताक्षर नही कर रही है। भाजपा के विधायक आरक्षण विधेयक को विधानसभा में ही रोकना चाह रहे थे। लेकिन बाद में सर्वसम्मति जरूर बना लेकिन उनका जो हिडेन एजेंडा है कि वो संविधान बदलना चाहते हैं। आरक्षण देना नहीं चाहते। आर्थिक-सामाजिक रूप से कमजोर लोगों को आगे बढ़ते देखना नहीं चाहते। यह उनका हिडेन एजेंडा है, उसी हिडेन एजेंडे के दबाव में महामहिम राज्यपाल विधेयकों पर हस्ताक्षर नहीं कर रही हैं।

राज्यपाल ने रोक रखा है आरक्षण का रास्ता

उच्च न्यायालय के 19 सितम्बर को आये एक आदेश से छत्तीसगढ़ में SC-ST-OBC वर्ग का आरक्षण खत्म हो गया है। इसको फिर से लागू कराने के लिए सरकार ने 2 दिसम्बर को दो विधेयक पारित कर राज्यपाल की अनुमति मांगी थी। राज्यपाल ने 18 दिनों बाद भी आरक्षण संशोधन विधेयकों पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। विधेयकों को फिर से विचार करने के लिए भी सरकार को लौटाया भी नहीं है। इसके उलट 14 दिसम्बर को राजभवन ने राज्य सरकार को 10 सवालों की एक फेहरिस्त भेजी। इसमें अनुसूचित जाति और जनजाति को सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ा मानने का आधार पूछा गया है। इसके जरिये राजभवन ने कुछ कानूनी सवाल भी उठाये हैं। इसके बाद से विधेयकों के कानून बनने की संभावना टलती जा रही है।

भाजपा पर हमलावर है कांग्रेस सरकार

राजभवन में हो रही इस देरी के लिए भाजपा कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार ठहरा रही है। वहीं सरकार और कांग्रेस संगठन इस देरी के लिए भाजपा को जिम्मेदार बता रहे हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने साफ शब्दों में कह दिया है कि इन विधेयकों का इस तरह रोका जाना उचित नहीं है। अब समय आ गया है कि राज्यपाल के अधिकारों की समीक्षा होनी चाहिए। संसदीय कार्यमंत्री रविंद्र चौबे ने भाजपा के सवालों को राजभवन की मार्फत सरकार तक आने पर सवाल उठाये हैं। आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने एक दिन पहले कहा कि या तो राज्यपाल दस्तखत करे या फिर विधेयकों को वापस भेजे।

बीजेपी नेता बोले- कांग्रेस आरक्षण विरोधी पार्टी

मोहन मरकाम के बयान पर भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री केदार कश्यप ने कहा कि भाजपा आरक्षण विरोधी नहीं बल्कि कांग्रेस आरक्षण विरोधी है । कांग्रेस ने ही अपने खास व्यक्ति केपी खांडे के जरिए आरक्षण मामले पर कोर्ट में याचिका लगवाई और बाद में उन्हें आयोग का अध्यक्ष बना दिया। इससे साफ जाहिर होता है कि कांग्रेसी आरक्षण विरोधी है और आरक्षण के खिलाफ काम करने वालों को मलाईदार पदों से नवाजती है। आरक्षण विधेयक पर बन रही असमंजस की स्थिति की जिम्मेदार कांग्रेसी है बहुत से तथ्यों और डाटा की जानकारी राजभवन में न दिए जाने की वजह से हालात बने हैं । कांग्रेसी नेताओं को सोच समझकर बयान देना चाहिए।

आरक्षण मामले में अब तक क्या-क्या हुआ है

  • 19 सितम्बर को गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी मामले में उच्च न्यायालय का फैसला आया। इसमें छत्तीसगढ़ में आरक्षण पूरी तरह खत्म हो चुका है।
  • शुरुआत में कहा गया कि इसका असर यह हुआ कि प्रदेश में 2012 से पहले का आरक्षण रोस्टर लागू हो गया है। यानी एससी को 16%, एसटी को 20% और अन्य पिछड़ा वर्ग को 14% आरक्षण मिलेगा।
  • सामान्य प्रशासन विभाग ने विधि विभाग और एडवोकेट जनरल के कार्यालय से इसपर राय मांगी। लेकिन दोनों कार्यालयों ने स्थिति स्पष्ट नहीं की।
  • सामान्य प्रशासन विभाग ने सूचना के अधिकार के तहत बताया कि हाईकोर्ट के फैसले के बाद 29 सितम्बर की स्थिति में प्रदेश में कोई आरक्षण रोस्टर क्रियाशील नहीं है।
  • आदिवासी समाज ने प्रदेश भर में आंदोलन शुरू किए। राज्यपाल और मुख्यमंत्री को मांगपत्र सौंपा गया। सर्व आदिवासी समाज की बैठकों में सरकार के चार-चार मंत्री और आदिवासी विधायक शामिल हुए।
  • लोक सेवा आयोग और व्यापमं ने आरक्षण नहीं होने की वजह से भर्ती परीक्षाएं टाल दीं। जिन पदों के लिए परीक्षा हो चुकी थीं, उनका परिणाम रोक दिया गया। बाद में नये विज्ञापन निकले तो उनमें आरक्षण रोस्टर नहीं दिया गया।
  • सरकार ने 21 अक्टूबर को उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर कर उच्च न्यायालय का फैसला लागू होने से रोकने की मांग की। शपथपत्र पर लिखकर दिया गया है कि उच्च न्यायालय के फैसले के बाद प्रदेश में भर्तियां रुक गई हैं।
  • राज्यपाल अनुसूईया उइके ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर हालात पर चिंता जताई। सुझाव दिया कि सरकार आरक्षण बढ़ाने के लिए अध्यादेश लाए अथवा विधानसभा का विशेष सत्र बुलाए।
  • सरकार ने विधेयक लाने का फैसला किया। एक-दो दिसम्बर को विधानसभा सत्र बुलाने का प्रस्ताव राजभवन भेजा गया, उसी दिन राज्यपाल ने उसकी अनुमति दे दी और अगले दिन अधिसूचना जारी हो गई।
  • 24 नवम्बर को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में आरक्षण संशोधन विधेयकों के प्रस्ताव के हरी झंडी मिल गई।
  • 2 दिसम्बर को तीखी बहस के बाद विधानसभा ने सर्वसम्मति से आरक्षण संशोधन विधेयकों को पारित कर दिया। इसमें एससी को 13%, एसटी को 32%, ओबीसी को 27% और सामान्य वर्ग के गरीबों को 4% का आरक्षण दिया गया। जिला कॉडर की भर्तियों में जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण तय हुआ। ओबीसी के लिए 27% और सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए 4% की अधिकतम सीमा तय हुई।
  • 2 दिसम्बर की रात को ही पांच मंत्री विधेयकों को लेकर राज्यपाल से मिलने पहुंचे। यहां राज्यपाल ने जल्दी ही विधेयकों पर हस्ताक्षर का आश्वासन दिया। अगले दिन उन्होंने सोमवार तक हस्ताक्षर कर देने की बात कही। उसके बाद से विधेयकों पर हस्ताक्षर की बात टलती रही।
  • 14 दिसम्बर को राजभवन ने सरकार को पत्र लिखकर 10 सवाल पूछे।

दिल्ली रवाना हुई राज्यपाल अनुसूईया उइके

इन विवादों के बीच राज्यपाल अनुसूईया उइके दिल्ली रवाना हो गई हैं। उन्हें वहां गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात करनी है। बताया जा रहा है, 20 दिसम्बर को उनकी राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू से भी मुलाकात प्रस्तावित है। इस दौरान छत्तीसगढ़ के आरक्षण विधेयकों पर भी चर्चा होनी है। दिल्ली से लौटने के बाद राज्यपाल हस्ताक्षर करती हैं या उसे टाल जाती हैं सभी की इसी पर नजर है।