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Bengal Panchayat Election Violence : बंगाल में चुनावी हिंसा का सच, राजनीति से लेकर बांग्लादेशी घुसपैठ और तस्करी का कनेक्शन !

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कोलकाता. पश्चिम बंगाल मेंपंचायत चुनावमें हिंसा में अभी तक सात लोगों की मौत हो चुकी है और लगातार राज्य के विभिन्न इलाकों में हिंसक वारदात की घटनाएं सामने आ रही हैं.

हिंसा को लेकर सत्तारूढ़ दल टीएमसी और विपक्षी पार्टियां कांग्रेस, भाजपा और माकपा आमने-सामने हैं और इसे लेकर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप लगाये जा रहे हैं, लेकिन बंगाल में चुनावी हिंसा का सियासी पहलु होने के साथ-साथ इसका घुसपैठ और तस्करी से भी कनेक्शन है.

पंचायत चुनाव में इस साल हुए चुनावी हिंसा में दक्षिण 24 परगना में तीन, मुर्शिदाबाद में दो, मालदा में एक, बीरभूम में एक और कूचबिहार में एक कार्यकर्ता की मौत हुई है. दिनहाटा, भांगड़, कैनिंग, बीरभूम सहित कई इलाकों में हिंसा हुई है. इस हिंसा के कारण सैंकड़ों राजनीतिक कार्यकर्ता घायल हुए हैं.

यहां यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि जिन इलाकों में हिंसा हुई है. वहां हिंसा राजनीतिक कारण से ज्यादा वर्चस्व की लड़ाई है और वर्चस्व की लड़ाई में खुद अपने ही पार्टी के नेताओं की हत्या करने या अपने ही पार्टी के नेताओं पर हमले के मामले सामने आये हैं.

राजनीतिक हिंसा में घुसपैठ और पशु तस्करी का कनेक्शन

पंचायत चुनाव में जिन इलाकों में ज्यादा हिंसा हो रही है, वे इलाके घुसपैठ, तस्करी, सांप्रदायिक हिंसा और जमीन दखल की लड़ाई के लिए जाना चाहता है और इनके पीछे सदा ही राजनीतिक समर्थन मिलता रहा है.

राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार पार्थ मुखोपाध्याय बताते हैं कि पश्चिम बंगाल में हिंसा ने एक कल्चर का रूप से लिया है, जो हर चुनाव में घूम कर सामने आ जाता है. इसके पहले लेफ्ट के शासन काल में भी हिंसा होती थी. लेफ्ट की सरकार हिंसा रोकने में विफल रही थी और अब ममता बनर्जी का शासन है, लेकिन ममता बनर्जी की सरकार भी हिंसा पर लगाम लगाने में विफल रही है.

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इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि इस हिंसा का कारण केवल राजनीतिक नहीं बल्कि इसके आर्थिक पहलु सहित अन्य पहलुओं को समझना पड़ेगा. दक्षिण 24 परगना का भांगड़ इलाका घुसपैठ के साथ-साथ कोलकाता के नजदीक होने के कारण आर्थिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है और वहां जमीन पर कब्जा की लड़ाई लेफ्ट में भी चलती थी और अब तृणमूल शासन में भी चल रही है.

सेंट्रर फॉर रिसर्च इन इंडो-बांग्लादेश रिलेशन के निर्देशक और हिंदू डिस्क्रेंट बांग्लादेश एंड वेस्ट बंगाल के लेखक बिमल प्रमाणिक बताते हैं कि मुर्शिदाबाद, मालदा, दक्षिण 24 परगना और उत्तर 24 परगना बांग्लादेश से सीमा से सटे हुए इलाके हैं. यहां तस्करी और घुसपैठ बड़ी समस्या है और इन इलाकों में सदा ही हिंसा होती है और चुनावी हिंसा से भी इनके संपर्क हैं.

इलाके में वर्चस्व की लड़ाई को लेकर होती है हिंसा

उन्होंने कहा कि तस्करी बिना स्थानीय राजनीतिक नेताओं की मदद से संभव नहीं है और इलाके में जिस नेता का वर्चस्व होता है. उसकी इसमें भागीदारी होती है. ऐसे में चुनाव में जीत से वह अपनी पकड़ बनाकर रखना जरूरी होता है. मुर्शिदाबाद और मालदा में प्रायः ही विस्फोट की घटनाएं घटती हैं और इसके पीछे आतंकियों के भी सामने के भी आरोप लगे हैं.

वह बताते हैं कि बीरभूम और दक्षिण 24 परगना इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं. दक्षिण 24 परगना में शौकल मोल्ला और अरावुल इस्लाम जैसे नेताओं के बीच पकड़ को लेकर घमासान चलता रहता है और अब नौशाद सिद्दिकी की बढ़त से वहां संघर्ष की घटना बढ़ी है. वहां पर लगातार एक समुदाय के लोगों को बढ़ावा देने के भी आरोप लगे हैं.

इसी तरह से बीरभूम में आरोप है कि गाय तस्करी के माध्यम से तृणमूल कांग्रेस के गिरफ्तार नेता अनुब्रत मंडल ने अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था. वह राजनीतिक रूप से काफी प्रभावशाली होने के साथ ही उन पर तस्करी के आरोप भी लगे थे और बीरभूम में राजनीतिक हिंसा के लिए सदा ही कुख्यात रहा है.

इसके अलावा ग्रामीण विकास हो या फिर इलाके का विकास केंद्र सरकार की ओर से ग्राम विकास के लिए आवंटित राशि पूरी तरह से पंचायत को मिलती है. विधायकों से ज्यादा पंचायतों के पास अधिकार होते हैं. एक पंचायत को करीब एक करोड़ रुपए की रमक मिलती है. इस कारण इस चुनाव को लेकर इतनी मारामारी है.