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Manipur Violence : मणिपुर हिंसा की जांच NIA को क्यों सौंपी गई? इसके पीछे बांग्लादेश का हाथ…

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2 महीने से मणिपुर हिंसा की आग में जल रहा है. शांति करने की हर कोशिश अब तक नाकाम रही है. मणिपुर जलना क्यों शुरू हुआ?

इस सवाल का पहला जवाब तो शुरूआती दौर में ही राज्य और केंद्र सरकार को पता चल गया था.

ये झगड़ा मैतई और कुकी के बीच का है. जिसमें म्यामांर, बांग्लादेश, मिजोरम घर बैठे-बैठे ही हाथ सेक रहे हैं. अब जब तमाम प्रयासों के बाद भी जलते मणिपुर की आग ठंडी नहीं की जा सकी, तो केंद्र ने राज्य सरकार के साथ फिर से कई दौर का मंथन किया. तब पता चला कि मणिपुर को जलाने या मणिपुर के जलने में केवल कुकी और मैतई के बीच का झगड़ा ही नहीं है. इसकी जड़ में तो म्यांमार, बांग्लादेश भी मौजूद हैं.

यही वह प्रमुख वजह है कि जिसके चलते सरकार ने अंदर की सटीक बात बाहर निकाल कर लाने के लिए NIA को जांच का जिम्मा सौंपा. पूर्व अधिकारी एन के सूद से बात की. नई दिल्ली में मौजूद एनके सूद ने 40 साल की रॉ जैसी दुनिया की मशहूर एजेंसी ‘रॉ’ में काम करने के अनुभव के आधार पर कहा, “दरअसल मणिपुर की बर्बादी के लिए राज्य और केंद्र सरकार को कोसना कतई सही नहीं है.”

145 साल पुरानी है कुकी-मैतेई की जंग

इसके पीछे की वजह बताते हुए पूर्व रॉ अफसर ने आगे कहा, “मणिपुर, नागालैंड, अरुणाचल, मिजोरम, सिक्किम, असम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों को समझना जितना ज्यादा जरूरी है, उतना ही यह काम मुश्किल है. हालांकि हमारी सुरक्षा, जांच व खुफिया एजेंसियां यहां हमेशा जागती रहती हैं.

इसके बाद भी कहीं न कहीं चूक तो हो ही जाती है. इस वक्त मणिपुर के जलने के पीछे भी पहली और बड़ी वजह, हमसे जाने-अनजाने कहीं न कहीं हुई कोई वो चूक तो रही ही है, जो हुई तो हमसे ही है, मगर उसे वक्त रहते हम ही (राज्य-केंद्रीय हुकूमत और सुरक्षा-खुफिया एजेंसियां) नहीं पकड़ पाए. ऐसा नहीं है कि मणिपुर पहली बार जला है.

कुकी और मैतई के बीच बीते करीब 145 साल से चली आ रही लड़ाई भी कोई नई बात नहीं है. सबको इनके झगड़े के बारे में पता है. अगर नहीं पता हमें तो यह कि, मैतई और कुकी इस बार इतने खतरनाक तरीके से खून-खराबे पर उतर आएंगे, यह बात.”

‘म्यांमार और बांग्लादेश का भी हो सकता है हाथ’

पूर्व रॉ अफसर बोले, “मणिपुर अचानक ही नहीं जलने लगा. इसे एक सोचे-समझे षडयंत्र के तहत जलाया गया है. यह षडयंत्र न केवल हिंदुस्तान की हदों में मौजूद लोगों ने अकेले ही जलाना शुरु कर दिया. सही से अगर एनआईए जांच कर ले, तो इसमें म्यांमार और बांग्लादेश भी कहीं न कहीं जाने-अनजाने घुसा हुआ मिलेगा. भले ही दोनो ही देशों का मणिपुर को जलवाने में सीधा या इस षडयंत्र में कोई हाथ न हो. मगर, मणिपुर में 141 साल पहले यानी साल 1881 से कुकी और मैतई के बीच चले आ रहे मनमुटाव के बारे में तो सबको पता है.

बांग्लादेश के रास्ते भारत में दाखिल होते हैं कुकी

बात अगर अब दो महीने से मणिपुर के लगातार हिंसा की आग में जलने की और इसकी जांच में संघीय जांच एजेंसी एनआईए को उतारे जाने की करूं तो, जैसे ही हिंदुस्तानी हुकूमत को भनक लगी कि इस बार मणिपुर के जलने की तह में, म्यांमार के कुकी प्रमुख वजह हैं. जोकि अक्सर म्यांमार से सीधे आसान रास्ता न मिलने पर, बांग्लादेश के रास्ते भारत में (मणिपुर-मिजोरम) में घुस आते हैं. तो वैसे ही मैतई समुदाय के लोग भड़क गए. क्योंकि जो कुकी भारत में (विशेषकर मणिपुर मिजोरम में) 142 साल पहले से रह रहे हैं, अब वे म्यांमार से भाग रहे या वहां से मिलिट्री द्वारा भगाए जा रहे, कुकी भारत में पहले से रहने वाले अपने परिचितों के यहां मेहमान बनकर कुछ दिन रुक जाते हैं. उसके बाद स्थानीय प्रशासन की मिलीभगत से, म्यांमार से भारत भागकर आए कुकी परिवार, पहले से यहां रहने वाले अपने परिचित कुकी परिवारों की मदद से, अपने नाम के जाली हिंदुस्तानी कागजात बनवा लेते हैं.”

लड़ाई की असली वजह मणिपुर के अप्रवासी कुकी- सूद

एन के सूद ने कहा, “लड़ाई की दरअसल असल जड़ तो म्यांमार से भागकर मिजोरम और मणिपुर पहुंचे अप्रवासी कुकी हैं. अगर विदेश से भागकर भारत में आकर शरण पाने वाले कुकियों का मुद्दा न हो. तो फिर मैतई समाज पहले से रहने वाले कुकियों से दूरी बनाकर शांति से रहने को तैयार है. दूसरी, बात चूंकि इस वक्त मणिपुर के जलने में म्यांमार से भागकर आए कुकियों का नाम निकल सामने आ चुका है. लिहाजा ऐसे में केंद्रीय हुकूमत ने ताड़ लिया कि, इसकी जांच संघीय जांच एजेंसी एनआईए को दिए बिना काम नहीं चलेगा. क्योंकि यह जांच सिर्फ मणिपुर राज्य के हदों तक ही सिमटी नहीं रहेगा. इस जांच के तार विदेश से भी जुड़े मिलेंगे. यही वजह है कि दो महीने से जलते मणिपुर के जलने की असल वजह जानने के लिए जांच का जिम्मा एनआईए के हवाले किया गया है.”

केंद्रीय बलों पर भरोसा

पूर्व रॉ अफसर इस बात पर भी संदेह व्यक्त करते हैं कि, “कहीं मणिपुर राज्य के स्थानीय सुरक्षाबल व पुलिस भी, लड़ रहे कुकी और मैतई समुदाय का परदे के पीछे से साथ न दे रहे हों. लिहाजा ऐसे में और इसीलिए हालात काबू करने के लिए केंद्रीय सरकार को मणिपुर में आर्मी व केंद्रीय सुरक्षा और अर्धसैनिक बल मैदन में उतारने पड़ गए है.” जो और जितने बदतर हालात मणिपुर में बीते दो महीने से बने हुए हैं, जिस तरह से अब तक यहां चली आ रही हिंसा में 150 से ज्यादा लोगों को मारे जाने की खबरें आ रही हैं.

NIA को जांच करने में आएंगी कई मुश्किलें- सूद

इन हालातों में संभव है कि एनआईए जांच करके सच को सामने ला सकेगी? पूछने पर लंदन में खुफिया एजेंसी रॉ के डिप्टी सेक्रेटरी रह चुके एन के सूद ने कहा, “नहीं, बहुत मुश्किलात का सामना करना पड़ेगा एनआईए को जड़ के भीतर मौजूद या छिपा सच्चाई को वापिस लाने में. खबरों से मैने तो देखा सुना पढ़ा है कि, कुछ दिन पहले जब एनआईए ने जांच के लिए प्रभावित क्षेत्र में जाने की कोशिश की तो वह नाकाम हो गई थी. मैं इस तथ्य की पुष्टि तो नहीं कर रहा हूं, मगर मणिपुर से मीडिया के जरिए ही छनकर आ रही खबरों के हवाले से तो मैं आपसे (टीवी9 से) यह बातें साझा कर ही सकता हूं. अगर खबरें जैसी आ रही हैं, तो उसमें 100 फीसदी न सही 50 फीसदी तो सच निहित होगा ही. खबरें पूरी तरह से हवा में मानकर, आसानी से नहीं नकारी जा सकती हैं.”

बॉर्डर पुलिस को धोका देकर एंट्री करते हैं म्यांमार के कुकी

मणिपुर हिंसा के पीछे बांग्लादेश और मिजोरम का हाथ कैसे हो सकता है? इस सवाल के जवाब में पूर्वोत्तर राज्यों के मामलों की एक्सपर्ट और वरिष्ठ जर्नलिस्ट ममता सिंह ने कहा, “दरअसल, म्यांमार से भगाए गए या भाग कर चोरी छिपे भारत के सीमांत राज्यों (मिजोरण मणिपुर) में आकर छिपने वाले, कुकियों को जब म्यांमार सीमा पर सख्ती के चलते सीधे भारत में घुसपैठ करने की जुगाड़ नहीं बनती है. तो वे म्यांमार से भागकर पहले बांग्लादेश पहुंचते हैं. क्योंकि बांग्लादेश और म्यांमार की सीमाओं पर उस हद की सख्ती नहीं है, जितनी कि म्यांमार-भारत के बीच. इसीलिए म्यांमार से बांग्लादेश जा पहुंचे, कुकी बांग्लादेश के रास्ते बाद में आराम से भारत में आ जाते हैं. क्योंकि भारत-बांग्लादेश से प्रवेश के वक्त दोनो देशों की एजेंसियां सोचती हैं कि, यह तो बंग्लादेशी होंगे. जबकि होते यह म्यांमार के कुकी हैं.”