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Uniform Civil Code: क्या था शाहबानो केस?, जिसके चलते 1985 में चर्चा में आया था UCC

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केंद्र सरकार ने UCC यानी समान नागरिक संहिता लागू करने की ओर एक कदम और बढ़ा दिया है. इसके बाद से यूसीसी को लेकर देशभर में बहस चल रही है, समान नागरिक संहिता के पक्ष- विपक्ष में तरह-तरह के दावे किए जा रहे हैं.

माना ये जा रहा है कि मानसून सत्र में सरकार इस पर बड़ा फैसला ले सकती है.

पीएम मोदी ने भोपाल में आयोजित जनसभा में यूसीसी का जिक्र किया था. इसके बाद से इसे लेकर चर्चा शुरू हो गई थी. अब संसद की कार्मिक, लोक शिकायत, कानून एवं न्याय समिति ने 3 जुलाई को इस पर विचार-विमर्श के लिए बैठक बुलाई है. ये पहला मौका नहीं है जब यूसीसी को लेकर देश भर में बहस हो, समान नागरिक संहिता को लेकर कई दफा चर्चा हो चुकी है, हालांकि सबसे पहले इसका जिक्र 38 साल पहले शाहबानो केस के दौरान हुआ था. तब सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिक वाई वी चंद्रचूड़ ने समान नागरिक संहिता लागू न होने पर अफसोस जताया था.

क्या था शाहबानो केस?

मध्य प्रदेश के इंदौर की रहने वाली शाहबानो का निकाह इंदौर के मोहम्मद अहमद खान से हुआ था जो जाने माने वकील थे. दोनों के 5 बच्चे थे, बाद में अहमद खान ने दूसरी शादी कर ली. अनबन के बाद अहमद खान ने शाहबानो को घर से निकाल दिया. शुरुआत में अहमद खान शाहबानो को गुजारे के लिए कुछ पैसे दे दिया करते थे, बादमें शाहबानो ने नियमित गुजारे भत्ते के लिए केस दायर किया.

इसके बाद अहमद ने शाहबानो को तलाक दिया और मेहर की रकम देकर गुजारा भत्ता देने से इन्कार कर दिया. बाद में शाहबानो ने मजिस्ट्रेट कोर्ट में बानो के पक्ष में निर्णय दिया, लेकिन रकम महज 20 रुपये तय की. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में मामला पहुंचा तो गुजारे की रकम 179 रुपये तय हुई. इसके बाद अहमद खान ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. मामला संविधान पीठ तक पहुंचा, जिसकी अगुवाई तत्कालीन सीजेआई वाई वी चंद्रचूड़ कर रहे थे उन्होंने हाईकोर्ट के फैसले पर मोहर लगाते हुए समान नागरिक संहिता का जिक्र किया था.

तत्कालीन सीजेआई ने क्या कहा था?

1985 में शाहबानो केस का फैसला सुनाते वक्त तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया वाई वी चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने यूसीसी लागू न होने पर अफसास जताया था. उस समय पीठ ने सरकार ने इस दिशा में कदम बढ़ाने की अपील की थी. तत्कालीन सीजेआई वाई वी चंद्रचूड़ ने कहा था कि देश में किसी भी सरकार ने समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए कोई पहल नहीं की. इसलिए मुस्लिम समुदाय को पर्सनल लॉ में सुधार के लिए पहल करनी होगी. उन्होंने यह भी कहा था कि समान नागरिक संहिता विरोधाभासी कानूनों को खत्म कर राष्ट्रीय एकता को बल देगी.

पीठ ने की थी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की आलोचना

शाहबानो केस का फैसला सुनाते वक्त संविधान पीठ ने अहमद खान का पक्ष लेने के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की आलोचना की थी. हालांकि उस वक्त समान नागरिक संहिता को लागू करने की बजाय तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने प्रोटेक्शन ऑफ राइट ऑन डाइवोर्स ऐक्ट, 1986 बनाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया था.