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“रूस का सस्ता तेल या अमेरिका के साथ व्यापार, भारत के लिए किसकी दोस्ती है अधिक फायदेमंद?”

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रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इन दिनों अपने भारत दौरे पर हैं. इसे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी अपने पहले कार्यकाल में भारत दौरे पर पहुंचे थे. रूस और अमेरिका हमेशा से ही रणनीतिक तौर पर भारत के साझेदार रहे हैं, हालांकि ट्रंप के मौजूदा रवैया को देखते हुए इसपर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है.

सवाल ये है कि आखिर इन दोनों देशों में से कौनसा देश भारत के लिए अधिक फायदेमंद है.

रूस से मिल रहा कच्चा तेल

बता दें कि ट्रंप की ओर से भारत पर रूस से कच्चा तेल खरीदने को लेकर 25 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क लगाया है. वहीं भारत के रूस के साथ पुराने और भरोसेमंद संबंध रहे हैं. एनर्जी सप्लाई से लेकर डिफेंस डील तक रूस हमेशा भारत का अहम साझेदार रहा है. ‘स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के मुताबिक साल 2019-2023 के बीच रूस से 36 फीसदी हथियार इंपो4ट हुए हैं. हाल ही में रूस से मिल रहे कच्चे तेल के चलते भारत की अर्थव्यवस्था को भी बड़ी राहत मिली है.

अमेरिका के साथ भारत का व्यापार

अमेरिका की बात करें तो यह भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. साल 2024-2025 में दोनों देशों के बीच 131.84 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ है. सर्च ग्रुप ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव ( GTRI) के फाउंडर अजय श्रीवास्तव के मुताबिक भारत का अमेरिका के साथ लगभग 41 बिलियन डॉलर ट्रेड सरप्लस है, यानी इंपोर्ट कम और एक्सपोर्ट ज्यादा है. भारत की ओर से अमेरिका को 87 बिलियन डॉलर का सामान जा रहा है. अजय श्रीवास्तव के मुताबिक अगर ट्रंप का 50 फीसदी टैरिफ बना रहता है तो इससे भारत के एक्सपोर्ट में 50 बिलियन डॉलर की गिरावट देखने को मिल सकती है.

भारत के साथ किसकी बेहतर दोस्ती

आर्थिक नजरिए को हटा दें तो मुसीबत के समय केवल रूस ने ही भारत की मदद की है. साल 1971 में भारत-पाक जंग के दौरान रूस ने भारत को सैन्य हथियार देने के साथ ही संयुक्त राष्ट्र ( UN)में भी भारत का पक्ष लिया था, जबकि अमेरिका की ओर से खुले तौर पर पाकिस्तान का समर्थन किया गया था. इतना ही नहीं US ने भारत के खिलाफ हिंद महासागर में अपना 7वां जहाज भेजा था. साल 1988 में न्यूक्लियर टेस्ट के बाद जब पश्चिमी देश भारत पर पाबंदियां लगा रहे थे तब रूस ने ही भारत को हथियार सप्लाई जारी रखी थी. इंटरनेशनल पॉलिटिक्स की बात करें तो भारत कभी भी 2 या ज्यादा बड़े सैन्य या राजनीतिक गुटों का हिस्सा नहीं रहा है. भारत का रुख हमेशा से स्पष्ट और स्वतंत्र रहा है. वहीं भारत को दूसरे देशों पर अधिक निर्भर रहने से बेहतर ‘मेक इन इंडिया’ और स्वदेशी व्यापार को मजबूत करने पर अधिक फोकस करना चाहिए.