सिंधिया राज घराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया की बेटी और मध्य प्रदेश की खेल मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने अचानक अगला विधानसभा चुनाव न लड़ने की घोषणा करके राजनीति में हलचल मचा दी है।
यशोधरा राजे के इस फैसले ने भाजपा को भी चौंका दिया है। हालांकि, भाजपा नेतृत्व ने अभी तक इस मामले पर चुप्पी साध रखी है, लेकिन यशोधरा ने शिवपुरी जाकर एक बार फिर अपना संकल्प दोहरा दिया।
यशोधरा के इस निर्णय से ग्वालियर-चम्बल में केवल बीजेपी की ही नहीं जय विलास पैलेस की राजनीति में भी बड़े बदलाव आएंगे। एक तरफ अब राजनीति में सिर्फ ज्योतिरादित्य सिंधिया का एकछत्र राज हो जाएगा, वहीं बीजेपी में सक्रिय उन लोगों का भविष्य धुंधला हो जाएगा, जिनकी अगुवाई यशोधरा राजे करती थीं।
यशोधरा के समर्थकों को संभालना BJP के लिए चुनौती
बीजेपी के लिए चिंता की बात यह है कि राजमाता की राजनीतिक विरासत को बीजेपी के साथ संभालकर कैसे रखा जाए। जो लोग माधवराव सिंधिया के नेतृत्व में भी काम नहीं कर सके और ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भी नहीं रहे, वह मूलत: बीजेपी के लोग हैं, लेकिन राजमाता सिंधिया के प्रति उनकी आस्था है, जिसे यशोधरा राजे सिंधिया के साथ जाकर वह पूरा कर रहे थे। अब उनका क्या होगा और वह क्या करेंगे। इस बात की चिंता भारतीय जनता पार्टी को निश्चित तौर पर करनी होगी।
दरअसल, चार दिन पहले शिवपुरी जिले में मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने समर्थकों के बीच जाकर अपने खराब स्वास्थ्य की बात कहकर यह ऐलान कर दिया था कि अबकी बार मैं चुनाव नहीं लड़ रही हूं। यशोधरा राजे के चुनाव नहीं लड़ने की बात पूरे प्रदेश में आग की तरह फैल गई। उसके बाद से मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया के बयान लगातार सामने आ रहे हैं कि वह इस बार विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ रही है। अब इस बयान के अलग-अलग मतलब निकालकर नए-नए कयास भी लगाए जा रहे हैं।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि मंत्री यशोधरा ने अपने राजनीतिक करियर से संन्यास ले लिया है तो कोई यह कह रहा है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के आने के कारण वह अपने आपको पार्टी में असहज महसूस कर रही थीं, इस कारण ही उन्होंने यह निर्णय लिया है।