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रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद उसकी नीति में बदलाव, हंगरी की संसद ने सोमवार को स्वीडन की नाटो संगठन में जोड़ने की की मांग को मंजूरी…

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हंगरी की संसद ने सोमवार को स्वीडन की नाटो संगठन में जोड़ने की की मांग को मंजूरी दी थी. इस फैसले को अब संसद के स्पीकर ने आगे राष्ट्रपति को बढ़ा दिया है. स्वीडन, जो 200 साल तक किसी सैन्य गुट में शामिल होने से दूर रहा, अब नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (NATO) का हिस्सा बनने जा रहा है.

यह भूराजनीति में एक ऐतिहासिक घटना है. चलिए जानते हैं कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि दोनों विश्व युद्धों में तटस्थ रहने वाले देश ने अपनी विचारधारा बदल ली.

स्वीडन में 19वीं सदी की शुरुआत से ही सशस्त्र संघर्षों में न्यूट्रल रहने की नीति थी. दोनों विश्व युद्धों के दौरान भी स्वीडन न्यूट्रल रहा था.

रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद उसकी नीति में बदलाव आया. दरअसल, रूस के राष्ट्रपति व्लादमीर पुतिन का मानना है कि नाटो का विस्तार रूस की सुरक्षा के लिए खतरा है.

फरवरी 2022 में रूस ने जब यूक्रेन पर चढ़ाई की, तब भी यहीं तर्क दिया गया था. लेकिन इस हमले का उलटा असर हुआ. युद्ध से पैदा हुई अस्थिरता ने स्वीडन को सैन्य अलायंस से दूर रहने की विचारधारा को फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया.

स्वीडन ने क्यों छोड़ी सैन्य गुटनिरपेक्षता?

कुछ दिन पहले स्वीडन के प्रधानमंत्री उल्फ क्रिस्टरसन ने प्रेस काॅन्फरेंस में कहा, ‘स्वीडन 200 साल की तटस्थता और सैन्य गुटनिरपेक्षता को पीछे छोड़ रहा है.’ उन्होंने इस ऐतिहासिक फैसले की वजह बताते हुए कहा कि हम नाटो में शामिल हो रहे हैं जिससे हम जो हैं और जिस चीज पर विश्वास करते हैं उसे और भी बेहतर ढंग से बचा सके. उन्होंने कहा, ‘हम दूसरों के साथ मिलकर अपनी स्वतंत्रता, अपने लोकतंत्र और अपने मूल्यों की रक्षा कर रहे हैं.’

नाटो सदस्य बनने से स्वीडन की सैन्य सुरक्षा में इजाफा होना तय है. दरअसल, नाटो सामूहिक रक्षा के सिद्धांत पर काम करता है. यानी कि अगर किसी एक सदस्य देश पर हमला होता है तो बाकी देश उसकी मदद के लिए आगे आएंगे. नाटो के पास अपनी कोई सेना नहीं है. संकट के जवाब में सदस्य देश सामूहिक सैन्य कार्रवाई कर सकते हैं. नाटो देश संयुक्त सैन्य अभ्यास भी करते रहते हैं.

NATO में शामिल होने से क्या बदलेगा?

नाटो एक सैन्य गठबंधन है जिसकी स्थापना 1949 में हुई थी. शुरुआत में इसमें 12 देश थे जिनमें अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और फ्रांस शामिल थे. सैन्य गठबंधन का मूल मकसद रूस के यूरोप में विस्तार को रोकना था. 1955 में सोवियत रूस ने नाटो के जवाब में अपना अलग सैन्य गठबंधन खड़ा किया था जिसे वॉरसा पैक्ट नाम दिया गया. इसमें पूर्वी यूरोप के साम्यवादी देश शामिल थे. लेकिन 1991 में सोवियत यूनियन के विघटन के बाद वॉरसा पैक्ट का हिस्सा रहे कई देशों ने दल बदल लिया और नाटो में शामिल हो गए.

 NATO सामूहिक रक्षा के सिद्धांत पर काम करता है. (AFP)

नाटो के सदस्य होने से सैन्य सुरक्षा तो मिलती है लेकिन इसके साथ कुछ नियम भी मानने पड़ते हैं. इसमें एक प्रमुख नियम है कि सभी सदस्य देशों को अपनी कुल GDP का कम से कम 2 प्रतिशत हिस्सा डिफेंस पर खर्च करना होगा. पिछले साल अलायंस में शामिल हुए फिनलैंड ने इस तय लक्ष्य को हासिल कर लिया है. स्वीडन साल 2026 तक इस लक्ष्य को हासिल करने की योजना बना रहा है.

क्या NATO में जुड़ने से स्वीडन पर खतरा गहराएगा?

स्वीडन का नाटो सैन्य गठबंधन में शामिल होना रूस की एक बड़ी हार माना जा रहा है. सोवियत संघ के विघटन के बाद नाटो गुट न सिर्फ सक्रिय हुआ बल्कि उसने अपना दायरा भी बढ़ाया है. वहीं, रूस नाटो के किसी भी तरह के विस्तार का विरोध करता है. राष्ट्रपति पुतिन का दावा है कि पश्चिमी देश नाटो का इस्तेमाल रूस के इलाकों में घुसने के लिए कर रहे हैं.

पिछले साल जब फिनलैंड और स्वीडन नाटो में शामिल होने पर विचार कर रहे थे, तब रूस के विदेश मंत्रालय की एक प्रवक्ता ने चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर फिनलैंड और स्वीडन नाटो में शामिल होते हैं तो इसके गंभीर राजनीतिक और सैन्य परिणाम भुगतने होंगे. अब जब फिनलैंड और स्वीडन नाटो सदस्य बनने की कगार पर हैं, तो बाल्टिक सागर में तनाव बढ़ रहा है. जनवरी में स्वीडन के सिविल डिफेंस मिनिस्टर ने एक कॉन्फ्रेंस में कहा था, ‘स्वीडन में युद्ध हो सकता है.

’ वहीं, शीर्ष मिलिट्री अधिकारियों ने भी नागरिकों से युद्ध के लिए मानसिक रूप से तैयार रहने की सलाह दी थी.