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इजरायल की उत्तरी सीमा पर हुए एक विस्फोट में केरल से गए एक मजदूर की मौत हो गई. इजरायल ने इसके लिए आतंकी गुट हिजबुल्लाह को जिम्मेदार बताया है.

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जरायल की उत्तरी सीमा पर हुए एक विस्फोट में केरल से गए एक मजदूर की मौत हो गई. इजरायल ने इसके लिए आतंकी गुट हिजबुल्लाह को जिम्मेदार बताया है.

इस बीच लगातार ये बात आ रही है कि युद्ध-प्रभावित इस देश में भारतीयों का वर्कफोर्स की तरह जाना कितना सेफ है.

भले ही इजरायल सुरक्षा का आश्वासन और काम की अच्छी कीमत दे रहा है, लेकिन ताजा हादसा कुछ और ही कहता है. वैसे इजरायल अकेला देश नहीं, दुनिया के कई देशों में भारतीय लेबर की अच्छी-खासी डिमांड रही. जानिए, क्या है इसकी वजह.

भारत और इजरायल ने फ्रेमवर्क एग्रीमेंट एंड इम्प्लिमेंटेशन प्रोटोकॉल्स साइन किए. ये वो करार है, जो इजरायल में काम करने गए भारतीयों को समान अधिकार और सुरक्षा की गारंटी देता है. उन्हें मेडिकल ट्रीटमेंट और सोशल सिक्योरिटी कवरेज भी मिलेगी. इसके अलावा मजदूरी या खेतों में काम के लिए अच्छी तनख्वाह दी जाएगी. ये तमाम चीजें हैं, जिनकी वजह से भारत के कई राज्यों से लोग इजरायल जाने लगे.

इजरायल को क्यों पड़ी जरूरत?

इस देश का फिलहाल हमास के साथ युद्ध चल रहा है. काफी संख्या में इजरायली नागरिक सेना में चले गए. फिलिस्तीन के भी लोग अनस्किल्ड लेबर करते थे. हमास के साथ तनाव में इजरायल ने उनकी एंट्री रोक दी. ऐसे में वहां काम के लिए भरोसेमंद लोगों की जरूरत पड़ी. भारत से दोस्ताना संबंधों के चलते देश ने हमसे संपर्क किया. इस तरह से नई खेप वहां जाने लगी. वैसे इससे पहले से भी हजारों भारतीय इजरायल में एक खास काम के लिए जाते रहे.

बुजुर्ग आबादी की देखरेख के लिए इजरायली परिवार केयरगिवर्स हायर कर रहे हैं. इसमें भारतीय टॉप पर हैं. धीरज और प्रोफेशनल स्किल्स के चलते वे इजरायल की पसंद बने हुए हैं. यही वजह है कि वहां रह रहे करीब 14 हजार भारतीय यही काम करते हैं. सोशल मीडिया पर इजरायली केयरगिवर्स के कई ग्रुप चलते हैं. इनकी मानें तो वहां सवा लाख से 3 लाख तक की तनख्वाह कॉमन है. घंटों के हिसाब से देखें तो प्रति घंटा काम के बदले कम से कम 9 सौ रुपए मिलते हैं. रहने-खाने का खर्च अलग से है. साथ ही मेडिकल सुविधाएं भी केयरगिवर का परिवार ही उठाता है.

भारत में किन राज्यों से जा रहे लोग?

केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र से लोग इजरायल जा रहे हैं. भारतीयों के अलावा नेपाल और फिलीपींस जैसे देशों के लोग भी इजरायल में केयरगिवर का काम करते मिल जाएंगे.

अनस्किल्ड लेबर की तरह ही नहीं, बल्कि पढ़े-लिखे प्रोफेशनल्स की भी भारी डिमांड है. अमेरिका और कनाडा में भारतीय आईटी में टॉप पोजिशन्स पर हैं. टेक्नोलॉजी काउंसिल्स ऑफ नॉर्थ अमेरिका और कनाडा टेक नेटवर्क की रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च 2022 से अगले सालभर के अंदर ही 15 हजार से ज्यादा इंडियन टेक वर्कर कनाडा पहुंचे.

अक्सर पंजाब, हरियाणा समेत कई राज्यों के युवा खुद मानते हैं कि वे अमेरिका जाकर ट्रक ड्राइवरी करेंगे. डेटा भी इस बात को सपोर्ट करता है. इंटरनेशनल रोड ट्रांसपोर्ट यूनियन के अनुसार दुनिया में अब भी लगभग 26 लाख ट्रक ड्राइवरों की कमी है. अकेले अमेरिका में 80 हजार ड्राइवरों की जरूरत है. ऐसे में भारतीय अनस्किल्ड लेबर इस काम के लिए भी भारी संख्या में जा रहा है.

अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में नर्सों की भी जरूरत है. जिसे पूरा करने का काम भारतीय नर्सें कर रही हैं. इस काम के लिए खासकर दक्षिण भारतीय नर्सों को खूब पूछा जाता है क्योंकि उन्हें भाषा की समस्या कम होती है. साथ ही वे ज्यादा मेहनती और वर्क एथिक्स वाली होती हैं.

बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप ने 197 देशों के साढ़े 3 लाख से ज्यादा लोगों पर एक सर्वे किया. इसमें ये जानने की कोशिश थी कि क्या लोग जॉब के लिए बाहर जाना चाहते हैं. इसमें एक चौंकाने वाली बात दिखी. साल 2014 में यानी आज से लगभग एक दशक पहले 64 प्रतिशत लोगों ने बाहर जाने की बात का हां में जवाब दिया. वहीं साल 2019 में इसमें गिरावट आ गई. केवल 57 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे काम के लिए दूसरे देश जाना पसंद करेंगे. हालांकि इसमें भी एक पेंच है. हामी भरने वाले देशों में भारतीयों की संख्या सबसे ज्यादा थी. सर्वे के दौरान 90 प्रतिशत भारतीयों ने बाहर काम करने की इच्छा जताई. दूसरे नंबर पर 70 प्रतिशत के साथ ब्राजीलियन लोग थे.

किस देश जाने की होड़

बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप के सर्वे में निकलकर आया कि सबसे ज्यादा लोग अमेरिका जाना चाहते हैं. इसके बाद जर्मनी, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और फिर यूनाइटेड किंगडम हैं. जापान अकेला एशियाई देश है, जहां लोग काम के लिए जाना चाहते हैं, लेकिन ये भी 10वें नंबर पर है.

कहां सबसे कम आवाजाही?

कई देश देश हैं, जहां इमिग्रेंट्स की संख्या नहीं के बराबर है, खासकर जॉब के मामले में. इनमें ज्यादातर देश वे हैं, जहां गरीबी और भुखमरी ज्यादा है, जैसे वियतनाम, म्यांमार, हैती और श्रीलंका. हालांकि इस लिस्ट में चीन का नाम दूसरे नंबर पर है. अमीर देश होने के बाद भी यहां कुल आबादी का केवल 0.7 प्रतिशत ही बाहरी लोगों का है. इसकी एक वजह यहां भाषा को लेकर कट्टरता भी है.

देश क्यों भेज रहे अपने लोगों को बाहर?

– हमारे यहां वर्किंग-एज-आबादी काफी ज्यादा है. ऐसे में ज्यादा से ज्यादा लोग काम कर सकें, इसके लिए भारतीयों को विदेशी धरती पर भेजा जा रहा है.

– ये सॉफ्ट डिप्लोमेसी भी है. जिन देशों को हमारी जरूरत है, हमारे लोग वहां उनका काम भी करेंगे, साथ ही देश के अनौपचारिक प्रतिनिधि की तरह भी काम करते हैं.

– ओवरसीज लेबर माइग्रेशन से लोगों को इंटरनेशनल एक्सपोजर मिलता है, जो कि देश लौटने पर काम आता है.

– विकसित देशों में ज्यादा तनख्वाह मिलती है. इसका असर देश की इकनॉमी पर भी सकारात्मक ढंग से पड़ता है.