IMD यानी भारत मौसम विज्ञान विभाग ने मंगलवार को बताया है कि उत्तर-पश्चिम के कुछ क्षेत्रों को छोड़कर भारत के अधिकांश भागों में अक्टूबर से दिसंबर के मॉनसून के बाद तैयार होने वाले मौसम के दौरान सामान्य से अधिक वर्षा होने की संभावना है।
चार महीने का दक्षिण-पश्चिम मॉनसून मौसम मंगलवार को समाप्त हो गया, जिसमें देश में सामान्य से आठ प्रतिशत अधिक वर्षा दर्ज की गई। खास बात है कि 2001 के यह बाद यह 5वां साल है, जिस दौरान सबसे ज्यादा वर्षा दर्ज की गई है.
IMD महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने ऑनलाइन संवाददाता सम्मेलन में कहा कि अक्टूबर-दिसंबर की अवधि में अधिकांश क्षेत्रों में सामान्य से अधिक वर्षा होने की उम्मीद है, जबकि उत्तर-पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों में सामान्य से लेकर सामान्य से कम वर्षा हो सकती है। उन्होंने कहा कि जून-सितंबर के दौरान हुई भरपूर बारिश के बाद, अक्टूबर में वर्षा सामान्य से 15 प्रतिशत अधिक होने की उम्मीद है।
महापात्र ने कहा, ‘अक्टूबर में उत्तरी मैदानी इलाकों, मध्य और प्रायद्वीपीय भारत में अधिकतम तापमान सामान्य से नीचे रहने की उम्मीद है। जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और गुजरात के सौराष्ट्र एवं कच्छ क्षेत्रों में तापमान सामान्य से अधिक रहेगा।’ खबर है कि मॉनसून की वापसी की लाइन वेरावल, भरूच, उज्जैन, झांसी और शाहजहांपुर से गुजर रही है।
भारत में इस मॉनसून के दौरान 868.6 मिलीमीटर की सामान्य बारिश की तुलना में 937.2 मिलीमीटर वर्षा दर्ज की गई, जो आठ प्रतिशत अधिक है। पूर्वी और उत्तरपूर्व भारत में 1089.9 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई, जो सामान्य बारिश 1367.3 मिलीमीटर से 20 प्रतिशत कम है। महापात्र ने बताया कि बिहार, अरुणाचल प्रदेश, असम और मेघालय में मॉनसून के चार महीनों में से तीन महीनों में कम बारिश हुई।
उन्होंने कहा, ‘इस मॉनसून में पूर्वी और उत्तरपूर्व भारत में बारिश 1901 के बाद से दूसरी बार सबसे कम रही। इस क्षेत्र में मॉनसून के दौरान सबसे कम बारिश (1065.7 मिलीमीटर) 2013 में दर्ज की गई थी। अध्ययनों से पता चलता है कि पिछले दो दशकों में इस क्षेत्र में वर्षा में कमी आई है।’
महापात्र ने कहा कि उत्तर-पश्चिम भारत में 747.9 मिलीमीटर बारिश हुई, जो सामान्य बारिश से 27.3 प्रतिशत अधिक है। महापात्र ने कहा कि यह 2001 के बाद से सबसे अधिक और 1901 के बाद से छठी सबसे अधिक बारिश है। उन्होंने बताया कि क्षेत्र के सभी जिलों में जून, अगस्त और सितंबर में सामान्य से अधिक वर्षा दर्ज की गई।
उन्होंने कहा, ‘हाल के वर्षों में उत्तर-पश्चिम भारत में वर्षा में वृद्धि हुई है और इसके कारणों का पता लगाने के लिए इसका अध्ययन किए जाने की आवश्यकता है।’ पंजाब में दशकों की सबसे भीषण बाढ़ आई, जबकि हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर में बादल फटने, अचानक बाढ़ और भूस्खलन की खबरें आईं, जिससे बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचा और लोग विस्थापित हुए।
IMD ने अतिरिक्त बारिश का श्रेय सक्रिय मॉनसून को दिया, जिसे लगातार पश्चिमी विक्षोभों का समर्थन मिला, जिससे क्षेत्र में बारिश में वृद्धि हुई। उन्होंने कहा कि मध्य भारत में 1125.3 मिलीमीटर वर्षा दर्ज की गई, जो सामान्य बारिश से 15.1 प्रतिशत अधिक है, जबकि दक्षिणी प्रायद्वीप में 9.9 प्रतिशत अधिक बारिश दर्ज की गई।
भारत में जून में सामान्य से 8.9 प्रतिशत अधिक वर्षा हुई, जुलाई में 4.8 प्रतिशत, अगस्त में 5.2 प्रतिशत तथा सितम्बर में 15.3 प्रतिशत अधिक वर्षा हुई। मॉनसून 24 मई को केरल में पहुंचा, जो 2009 के बाद से इसका सबसे जल्दी आगमन था और 29 जून तक पूरे देश को कवर कर लिया।
IMD प्रमुख ने कहा कि उत्तर-पश्चिम भारत से मॉनसून वापसी दो दिन पहले शुरू हो गई, लेकिन बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के ऊपर नई निम्न-दबाव प्रणालियों के कारण मध्य, पूर्व और उत्तर-पूर्व भारत में एक सप्ताह की देरी होने की उम्मीद है।
मॉनसून कृषि के लिए महत्वपूर्ण है, जो लगभग 42 प्रतिशत आबादी का समर्थन करती है और सकल घरेलू उत्पाद में 18.2 प्रतिशत का योगदान देती है। यह पेयजल और बिजली उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण जलाशयों को भी भरता है।