लोकसभा में नेता विपक्ष अपने कथित साक्ष्यों के साथ केंद्र सरकार और चुनाव आयोग पर मिलकर गलत तरीके से SIR लागू करके वोट चोरी का इल्जाम लगाया. अब बिहार में हार के बाद वो इस मुद्दे पर और हमलावर होने के मूड में है.
इसलिए वो इंडिया ब्लॉक के सहयोगी दलों से चर्चा कर रही है, जिसके बाद संसद के शीतकालीन सत्र में मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने के लिए प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रही है.
वैसे आंकड़ों की बात करें तो ऐसे किसी प्रस्ताव को पास करने का आंकड़ा विपक्ष के पास नहीं है. लेकिन अपने आंकड़ों के दम पर वो प्रस्ताव तो ला ही सकता है. इसके जरिए कांग्रेस बिहार में हार के बाद इंडिया ब्लॉक में बिखराव की खबरों और सहयोगी दलों के दबाव को दरकिनार करना चाहती है क्योंकि, SIR और वोट चोरी के मुद्दे पर ममता, अखिलेश, लेफ्ट, शिवसेना, स्टालिन भी खिलाफ हैं.
विपक्ष को ये मालूम है कि वो ऐसा प्रस्ताव मूव तो कर सकता है, लेकिन पास नहीं करा सकता. लेकिन इस प्रस्ताव के जरिए वो अपने चार अहम बिंदुओं को जनता तक पहुंचाना चाहता है.
पीएम, नेता विपक्ष और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की चयन समिति में कानून लाकर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की जगह कैबिनेट मंत्री को रखा गया.
ऐसा भी कानून बनाया गया, जिससे मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य आयुक्त (2023) अधिनियम के तहत मुख्य और अन्य चुनाव आयुक्तों को उनके आधिकारिक कामकाज के दौरान किए गए निर्णयों, कार्यों या बयानों के लिए किसी भी तरह की कानूनी कार्रवाई से सुरक्षा मिलती है. यानी उनके खिलाफ न तो दीवानी और न ही फौजदारी मुकदमेबाजी हो सकती है. इसके अलावा, किसी आयुक्त को मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश के बिना पद से हटाया नहीं जा सकता.
ऐसे में खुलकर चुनाव आयोग सत्ता पक्ष के साथ मिलकर SIR प्रकिया हो, वोटर लिस्ट में धांधली, महज 45 दिन बाद सीसीटीवी फुटेज नष्ट करने के काम सत्ता पक्ष के हक में करता है. वहीं विपक्ष के आरोपों को अनसुना कर देता है. ये लोकतंत्र के लिए खतरनाक है.
विपक्ष, खासकर कांग्रेस को उम्मीद है कि, इस मुद्दे पर चर्चा और वोटिंग हुई तो उसे अपनी बातें खुलकर कहने का मौका मिलेगा। साथ ही इस मुद्दे पर इंडिया ब्लॉक एकजुट दिखेगा, यहां तक कि, आप जैसे दल भी विपक्ष के साथ ही खड़े दिख सकते हैं. इससे वो सत्ता पक्ष और चुनाव आयुक्त को एक पाले में, वहीं पूरे विपक्ष को एक पाले में रखकर अपना नैरेटिव सेट कर पायेगा.



