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भारत-रूस-चीन ने कसकर पकड़ ली है कॉलर, तीनों के ताबड़तोड़ पंच से रोएगा अमेरिकी डॉलर…

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नवंबर, 2024 की बात है। रूस के कजान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन चल रहा था। अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व को खत्म करने के लिए ब्रिक्स का मंच एक आंदोलन में तब बदल गया, जब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन एक संभावित ब्रिक्स बैंकनोट का एक प्रोटोटाइप पकड़े हुए मंच पर आए।

उस वक्त उन्होंने कहा कि ब्रिक्स सदस्य देशों का लक्ष्य अमेरिकी डॉलर आधारित स्विफ्ट प्लेटफॉर्म से दूर जाना नहीं है, बल्कि ब्रिक्स देशों और व्यापारिक साझेदारों के बीच वित्तीय लेन-देन में स्थानीय मुद्राओं के उपयोग हेतु वैकल्पिक प्रणालियां विकसित करके अमेरिकी डॉलर के ‘हथियारीकरण’ को रोकना है। अब पुतिन भारत आ रहे हैं, ऐसे में माना जा रहा है कि भारत और रूस के बीच स्थानीय मुद्राओं में कारोबार करने पर भी और ज्यादा सहमति बन सकती है। इसमें ब्रिक्स देशों की कॉमन मुद्रा पर भी बात हो सकती है, जिसे चीन का समर्थन भी हासिल है।

पुतिन पहले ही किस ओर इशारा कर चुके हैं

पुतिन ने कजान के मंच से कहा था-हम डॉलर से इनकार नहीं कर रहे हैं, उससे लड़ नहीं रहे हैं, लेकिन अगर वे हमें इसके साथ काम करने नहीं देंगे, तो हम क्या कर सकते हैं? हमें तब अन्य विकल्पों की तलाश करनी होगी, जो हो भी रहा है। एक संभावित ब्रिक्स मुद्रा इन देशों को मौजूदा अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली के साथ प्रतिस्पर्धा करते हुए अपनी आर्थिक स्वतंत्रता का दावा करने में सक्षम बनाएगी। वर्तमान प्रणाली में अमेरिकी डॉलर का प्रभुत्व है, जो सभी मुद्रा व्यापार का लगभग 89 प्रतिशत है। परंपरागत रूप से, लगभग 100 प्रतिशत तेल व्यापार अमेरिकी डॉलर में होता था। हालांकि, 2023 में तेल व्यापार का पांचवां हिस्सा गैर-अमेरिकी डॉलर मुद्राओं का उपयोग करके किया गया।

डी-डॉलरीकरण क्या है, जान लीजिए

  • डी-डॉलराइजेशन का मतलब है डॉलर से दूरी बनाना।
  • अपनी मुद्राओं में अंतरराष्ट्रीय कारोबार करना।
  • अमेरिकी डॉलर की मांग में गिरावट आना।
  • ब्रिक्स देशों के बीच डी-डॉलराइजेशन का मुद्दा।
  • अमेरिका और वैश्विक अर्थव्यस्था पर पड़ेगा प्रभाव।

अगले साल भारत में होगी ब्रिक्स बैठक

फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक खबर के अनुसार, इस जुलाई में ब्राजील में आयोजित 2025 ब्रिक्स बैठक में पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग शामिल नहीं हुए। इससे ब्रिक्स मुद्रा पर चर्चा भी बहुत धीमी रही। अगले साल की ब्रिक्स की बैठक भारत में होने वाली है। ऐसे में डॉलर के खिलाफ रूस-चीन और भारत का गठजोड़ बन सकता है। बीते दिनों तियानजिन में शंघाई सहयोग शिखर सम्मेलन (SCO) में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच एकसाथ मंच साझा करने पर भी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप तिलमिला उठे थे और उनकी टेंशन बढ़ गई थी।

ब्रिक्स देश नई मुद्रा क्यों बनाना चाहते हैं?

  • ब्रिक्स देशों के समक्ष हाल की वैश्विक वित्तीय चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं।
  • आक्रामक अमेरिकी विदेश नीतियां भी इसके पीछे बड़ी वजह हैं।
  • अपने आर्थिक हितों को बेहतर ढंग से पूरा करने का मकसद है।
  • अमेरिकी डॉलर और यूरो पर वैश्विक निर्भरता कम करने का लक्ष्य है।
  • अमेरिका-यूरोप की पाबंदियों के असर को कम करना भी मकसद है।

एक्सपर्ट ने कहा-अमेरिकी डॉलर का वर्चस्व होगा कम

इस बीच, जाने-माने एक्सपर्ट डॉ. ब्रह्मचेलानी ने सोशल मीडिया एक्स पर कहा है कि प्रतिद्वंद्वी गुटों में बंटती दुनिया में पुतिन की 4-5 दिसंबर की नई दिल्ली यात्रा सिर्फ एक और कूटनीतिक पड़ाव नहीं है। यह एक शक्तिशाली भू-राजनीतिक बयान है। इस यात्रा से महत्वपूर्ण समझौते होने की संभावना है, जिनमें स्विफ्ट प्रणाली को दरकिनार करने और अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को कम करने के लिए डिजाइन किए गए नए भुगतान चैनल शामिल हैं।…भारत अपना एक स्पष्ट संदेश दे रहा है। ऐसे समय में जब ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका उसके साथ बुरा व्यवहार कर रहा है (उदाहरण के लिए, भारत पर अमेरिकी टैरिफ अब चीन से ज्यादा हैं), नई दिल्ली न तो रूस को बाहर करेगा और न ही उन पश्चिमी प्रतिबंधों के साथ चलेगा जो उसकी रणनीतिक स्वायत्तता को नुकसान पहुंचाते हैं। पुतिन की मेजबानी करके भारत यह स्पष्ट कर रहा है कि वह पश्चिम द्वारा थोपे गए ‘हमारे साथ या हमारे खिलाफ’ के द्विभाजन को नामंजूर करता है और अपना रास्ता खुद बनाएगा।

भारत-रूस के बीच 90 फीसदी कारोबार में डॉलर नहीं

रूस के उप-प्रधानमंत्री डेनिस मंटुरोव ने नवंबर, 2024 में कहा था कि भारत और रूस के बीच लगभग 90% व्यापार अब स्थानीय या वैकल्पिक मुद्राओं के माध्यम से हो रहा है, जबकि शेष व्यापार अभी भी अन्य मुक्त रूप से परिवर्तनीय मुद्राओं में होता है। यानी इस कारोबार में डॉलर का इस्तेमाल नहीं हो रहा है। उन्होंने दिल्ली में व्यापार, आर्थिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और सांस्कृतिक सहयोग पर भारत-रूस अंतर-सरकारी आयोग के 25वें सत्र में अपने उद्घाटन भाषण में कहा-द्विपक्षीय व्यापार में स्थानीय और वैकल्पिक मुद्राओं की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है। यह अब 90% के करीब पहुंच रही है। हम रूसी और भारतीय बैंकों के बीच संवाददाता संबंधों के विस्तार पर अपना काम जारी रखना आवश्यक समझते हैं।

भारत ने कर दी थी पहल, अब होगा और मजबूत

भारत ने स्थानीय मुद्रा में व्यापार निपटान को सक्षम बनाने की दिशा में पहला कदम तब उठाया, जब जुलाई 2022 में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार लेनदेन के चालान और भुगतान को रुपये में अनुमति दे दी। यह कदम यूक्रेन युद्ध की शुरुआत और अंतर्राष्ट्रीय भुगतान एवं निपटान प्रणालियों से रूस को बाहर करने के बाद उठाया गया था। भारत में लगभग 20 प्राधिकृत डीलर (एडी) बैंकों को इस व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए 22 से अधिक देशों के साझेदार बैंकों के 92 विशेष रुपया वास्ट्रो खाते खोलने की अनुमति दी गई है।

भारत में इन देशों के बैंकों ने खोले हैं रुपया खाता

फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, ऐसे देश जिनके बैंकों ने भारत में कॉरेसपांडेंट बैंकों के साथ रुपया खाते खोले हैं, वे हैं बांग्लादेश, बेलारूस, बोत्सवाना, फिजी, गुयाना, इजरायल, कजाकिस्तान, केन्या, मलेशिया, मालदीव, मॉरीशस, म्यांमार, न्यूजीलैंड, ओमान, सेशेल्स, श्रीलंका, तंजानिया और युगांडा।

ब्रिक्स के सदस्य कौन से देश हैं?

2025 तक ब्रिक्स के 10 सदस्य देश हैं: ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, मिस्र, इथियोपिया, इंडोनेशिया, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई)। 10 पूर्ण सदस्य देशों के इस विस्तारित समूह को कभी-कभी ब्रिक्स+ भी कहा जाता है। यह समूह मूल रूप से ब्राजील, रूस, भारत और चीन के चार देशों से बना था और इसे ब्रिक कहा जाता था, जो 2010 में दक्षिण अफ्रीका के शामिल होने पर ब्रिक्स में बदल गया। 2023 के ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में 6 देशों को ब्रिक्स सदस्य बनने के लिए आमंत्रित किया गया था। ये हैं-अर्जेंटीना, मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और यूएई। अर्जेंटीना और सऊदी अरब को छोड़कर सभी देश आधिकारिक तौर पर जनवरी 2024 में गठबंधन में शामिल हो गए और 2025 में इंडोनेशिया ब्रिक्स का 10वां पूर्ण सदस्य बन गया।

ब्रिक्स मुद्रा के क्या फायदे हो सकते हैं

एक नई मुद्रा से ब्रिक्स देशों को कई लाभ हो सकते हैं, जिनमें अधिक कुशल सीमा-पार लेनदेन और बेहतर वित्तीय समावेशन शामिल हैं। ब्लॉकचेन तकनीक, डिजिटल मुद्राओं और स्मार्ट अनुबंधों का लाभ उठाकर, यह मुद्रा वैश्विक वित्तीय प्रणाली में क्रांति ला सकती है। निर्बाध सीमा-पार भुगतानों के माध्यम से, यह ब्रिक्स देशों और अन्य देशों के बीच व्यापार और आर्थिक एकीकरण को भी बढ़ावा दे सकती है।

एक नई ब्रिक्स मुद्रा से क्या होगा

  • ब्रिक्स देशों के भीतर आर्थिक एकीकरण को मजबूत करना।
  • वैश्विक मंच पर अमेरिका के प्रभाव को कम करना।
  • वैश्विक आरक्षित मुद्रा के रूप में अमेरिकी डॉलर की स्थिति को कम करना।
  • क्षेत्रीय मुद्राओं के विकास के लिए अन्य देशों को गठबंधन बनाने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • एकतरफा उपायों और डॉलर पर निर्भरता में कमी के कारण वैश्विक अस्थिरता से जुड़े जोखिमों को कम करना।

ब्रिक्स मुद्रा पर डोनाल्ड ट्रंप का रुख क्या है?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप टैरिफ के ज़रिए अमेरिकी संरक्षणवाद को और मजबूत कर रहे हैं। उन्होंने शुरुआत में चीन के खिलाफ ख़ास तौर पर कड़ा रुख़ अपनाया था। यहां तक कि चीनी आयात पर 60 प्रतिशत से 100 प्रतिशत तक टैरिफ लगाने की धमकी दी थी। इसके बाद ट्रंप ने भारत पर भी भारी-भरकम टैरिफ लगा दिया। उन्होंने रूस से तेल आयात करने पर धमकी भी दे डाली। उन्होंने अपनी धमकी को पूरा भी किया। हालांकि, यूरो और येन की लोकप्रियता बढ़ने के साथ डॉलर की आरक्षित मुद्रा हिस्सेदारी कम हो गई है, फिर भी डॉलर अभी भी सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली आरक्षित मुद्रा है, उसके बाद यूरो, येन, पाउंड और युआन का स्थान आता है।

जयशंकर ने 2030 के लिए क्या अनुमान लगाया था

11 नवंबर, 2024 में ही विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने अनुमान लगाया था कि भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2030 तक 100 अरब अमेरिकी डॉलर को पार कर जाएगा। उन्होंने इसे एक यथार्थवादी और प्राप्त करने योग्य लक्ष्य बताया। मुंबई में भारत-रूस व्यापार मंच को संबोधित करते हुए जयशंकर ने कहा था कि हमारा द्विपक्षीय व्यापार मौजूदा वक्त में 66 अरब अमेरिकी डॉलर है। इससे 2030 तक 100 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का लक्ष्य और भी ज्यादा यथार्थवादी हो जाता है।