इन दिनों देहरादून में डीएम आवास के लिए साउथ इंडियन कुक की खोज करना पीआरडी विभाग के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है। विभाग में फिलहाल अभी कोई ऐसा कुक नहीं है जो साउथ इंडियन व्यंजन बनाने में निपुण हो। युवा कल्याण एवं पीआरडी विभाग बमुश्किल कोई स्थानीय कुक खोज भी लाता है तो वह डीएम के परिवार के सदस्यों की भाषा नहीं समझ पाता है। अब तक दो-तीन कुक इसी वजह से काम छोड़ चुके हैं। फिलहाल इस समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है। विभागीय अधिकारी कुक की तलाश में जुटे हैं। दरअसल, डीएम सी रविशंकर मूलरूप से दक्षिण भारत से हैं। उनकी स्थानीय भाषा मलयालम है। उनके परिवार के सदस्य मलयालम ही बोलते हैं। इस वजह से उनके साथ कम्युनिकेशन में यह दिक्कतें आ रही हैं।
जिला युवा कल्याण एवं पीआरडी विभाग के कर्मचारियों ने बताया कि डीएम के
परिवार के सदस्य मलयालम भाषा में ही बात करते हैं। जो कुक लाते हैं उसकी
स्थानीय भाषा परिवार के सदस्य समझ नहीं पाते हैं। मुश्किल से दो-तीन कुक
मिले भी, वे दो-तीन दिन से ज्यादा टिक नहीं पा रहे हैं। जिला युवा कल्याण
एवं पीआरडी अधिकारी प्रकाश चंद्र सती ने भी इस बात की पुष्टि की है।
साउथ
इंडियन व्यंजनों में आम तौर पर डोसा, इडली, सांभर जैसे आम व्यंजन ही कुकों
को बनाने आते हैं, जबकि इसके अलावा भी दर्जनों अन्य व्यंजन भी होते हैं,
जिन्हें सिखाना बड़ी चुनौती है।
फिलहाल, पीआरडी विभाग बाहर से साउथ
इंडियन कुक की खोज कर रहा है, जिसे मलयालम का ज्ञान हो। साथ ही उसे कुछ
अंग्रेजी भी आती हो, ताकि अंग्रेजी को कॉमन भाषा के रूप में भी प्रयोग में
लाया जा सके।