रायपुर . छत्तीसगढ़, धान आैर किसान आज प्रदेश की राजनीति का सबसे बड़ा केन्द्र बन गया है। राज्य बनने के बाद से अब तक कई कारणों से छत्तीसगढ़ की राजनीति चर्चा में रही है। लेकिन इस राज्य की राजनीतिक को जिसने सबसे ज्यादा प्रभावित किया वह यहां की मुख्य फसल धान है। छत्तीसगढ़ में धान ही एकमात्र ऐसा कारण है जिसके दम पर भाजपा ने जहां लगातार तीन बार सत्ता हासिल की तो वहीं उसे इसी धान के कारण ही बुरी तरह हार भी झेलनी पड़ी। यानि तीन बार से विपक्ष में रही कांग्रेस ने धान के कारण ही साल 2018 में अप्रत्याशित जीत दर्ज कर सरकार बनाई।
कांग्रेस ने 2500 रुपए प्रति क्विंटल में धान खरीदी आैर किसानों की कर्जमाफी के दम पर सत्ता हासिल की तो अब यही उनके लिए गले की फांस बनती जा रही है। सरकार बनने के बाद से अब तक लगभग 11 महीने के कार्यकाल में प्रदेश की पूरी राजनीति धान के ईर्द-गिर्द ही घूम रही है। भाजपा को जहां कर्जमाफी आैर बोनस का बैठे-बिठाए मुद्दा मिल गया तो वहीं कांग्रेस भी केन्द्र सरकार पर किसान विरोधी होने का आरोप लगा रही है। पिछले दो महीने से धान को लेकर राजनीति इसलिए भी तेज हो गई है क्योंकि केन्द्र सरकार ने छत्तीसगढ़ का चावल लेने से मना कर दिया है।
यानि केन्द्र सरकार इसी धान के बहाने छत्तीसगढ़ सरकार को बैकफुट पर धकेलने की तैयारी में है। केन्द्र के इस फैसले के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल प्रधानमंत्री को जहां तीन बार चिट्ठी लिख चुके हैं वहीं प्रदेश के दो मंत्रियों के साथ केन्द्रीय मंत्रियों से मुलाकात कर इस दिशा में सार्थक पहल करने का आग्रह भी कर चुके हैं। इस मुद्दे पर छत्तीसगढ़ भाजपा लगातार कांग्रेस को यह कहकर घेरने में लगी है कि चुनावी घोषणापत्र में किसानों से वादा केन्द्र सरकार से पूछकर किया था क्या?
राजनीतिशास्त्र के केंद्र में धान दिल्ली में धरना दे चुके जोगी
राज्य बनने के बाद अजीत जोगी पहले मुख्यमंत्री बनें। केंद्र में एनडीए की सरकार थी। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को सत्ता मिली। दोनों स्थानों पर विपरीत सत्ता होने का प्रभाव कई बार देखने को मिला। जोगी विकास के लिए केंद्र से धन न मिलने का आरोप लगाकर केंद्र सरकार को घेरने का प्रयास करते। एक बार तो जोगी ने अपने पूरे मंत्रिमंडल के सदस्यों और विधायकों के साथ 7-रेसकोर्स के सामने धरना प्रदर्शन भी किया था।
धान… द फायर भूपेश भी वही करेंगे, जो किया था जोगी ने
भाजपा वही करेगी, जो 15 साल किया कांग्रेस ने
43 फीसदी भूमि खेती की, जीडीपी में 20% हिस्सा धान का
छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है लेकिन राज्य बनने के बाद से अब छत्तीसगढ़ में धान राजनीति का सबसे बड़ा केन्द्र बन गया है। राज्य की 43 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि में मुख्य फसल धान की होती है आैर यहां की लगभग 80 फीसदी आबादी कृषि से जुड़ी है। कृषि और उससे संबंधित क्षेत्रों का राज्य की जीएसडीपी में 20 प्रतिशत से अधिक योगदान है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2018-19 में 80.40 लाख टन धान का उत्पादन हुआ था। इसमें राज्य में 42.40 लाख टन धान खप जाता है जबकि 38 लाख टन सरप्लस धान बच जाता है। राज्य में कुल 32 लाख किसान हैं। पिछली बार प्रदेश के 16 लाख पंजीकृत किसानों ने सोसाइटियों में धान बेचा था। जबकि इस बार धान बेचने के लिए कुल 19 लाख किसानों ने अपना पंजीयन करवाया है जो कि पिछले साल की तुलना में तीन लाख ज्यादा है।
पहले साल सिर्फ 4.63 लाख टन खरीदी
राज्य बनने के बाद साल 2000 में पहली बार सरकार ने समर्थन मूल्य पर धान खरीदा था। तब सरकार ने लगभग 4.63 लाख मीट्रिक धान खरीदा था। जबकि साल 2014 आते तक यह आंकड़ा लगभग 80 लाख मीट्रिक टन हो गया था। इस बार सरकार ने 85 लाख मीट्रिक टन धान खरीदने का लक्ष्य रखा है।
भाजपा की दूसरी पारी का अाधार
2013 में हुए चुनाव में भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में 21 सौ रुपए प्रतिक्विंटल की दर से धान खरीदी का वादा किया था। इसके दम पर वह सरकार बनाने में सफल हो गई। लेकिन सरकार ने मूल्य बढ़ाने की बजाय 1345 रुपए में ही 10 क्विंटल धान खरीदने की सीमा भी तय कर दी। इसे लेकर विपक्षी दल कांग्रेस ने प्रदेशभर में प्रदर्शन किया था। राज्योत्सव के दिन जहां कांग्रेस ने आर्थिक नाकेबंदी की थी वहीं उन्होंने यह भी तय किया था कि कांग्रेस का कोई भी नेता भाजपाइयों के साथ मंच साझा नहीं करेगा।
घोषणापत्र में भी धान-चावल ही
कांग्रेस ने जहां अपने घोषणा पत्र में समर्थन मू्ल्य पर धान खरीदी, कर्जमाफी आैर बीपीएल आैर गरीबी रेखा से ऊपर जीवन-यापन करने वालों (आयकरदाताओं को छोड़कर) 35 किग्रा चावल मुफ्त देने की बात कही थी तो भाजपा पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में गरीबों को 1 रुपए प्रति किलो की दर से चावल देने का वादा किया था। इसी तरह तीसरी पार्टी जोगी कांग्रेस ने अन्त्योदय, बीपीएल और एपीएल श्रेणी के लोगों को 35 किग्रा चावल हर माह मुफ्त देने की बात कही थी।
कांग्रेस दिल्ली तो भाजपा राज्य में प्रदर्शन की तैयारी में
इस मुद्दे पर सीएम बघेल ने सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। इसमें जोगी कांग्रेस आैर बसपा नेता तो शामिल हुए लेकिन भाजपा के नेताआें ने इससे दूरी बना रखी थी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हाल ही में कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे और खाद्य मंत्री अमरजीत भगत के साथ दिल्ली जाकर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और खाद्य मंत्री रामविलास पासवान से मुलाकात कर छत्तीसगढ़ का चावल सेंट्रल पूल में लेने का आग्रह किया। साथ ही उन्होंने मंत्रियों से प्रधानमंत्री से मिलने के लिए पत्र लिखने की जानकारी भी दी।
दोनों मंत्रियों ने सीएम बघेल को आश्वस्त किया कि वे इस मुद्दे पर राज्य सरकार के साथ हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के लिए वे खुद भी उनके साथ जाएंगे। इस मामले में प्रदेश भाजपा के नेता जहां कांग्रेस पर बेवजह राजनीति करने और अपनी गलती छिपाने केंद्र पर दोष मढ़ने का का आरोप लगा रही है, तो वहीं कांग्रेस ने भाजपा नेताओं को नसीहत दी है कि वे छत्तीसगढ़ सरकार के खिलाफ बोलने की बजाय केंद्र सरकार से चावल लेने का आग्रह करें। कांग्रेस इस मुद्दे पर जहां पीएम मोदी के जवाब का इंतजार कर रही है वहीं केन्द्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने दिल्ली जाने की तैयारी भी कर रखी है।
विशेषज्ञ राय
राजनीति स्वाभाविक, धान की बात करनेवालों को ही सत्ता : बीकेएस रे
तीन बार कृषि उत्पादन आयुक्त रहे बीकेएस रे का मानना है कि राजनीतिक दलों द्वारा किसानों को समर्थन मूल्य आैर बोनस देने की घोषणा के कारण ही यहां पर फसल चक्र परिवर्तन नहीं हो पाया। वे धान उगाकर ही खुश रहते हैं। छत्तीसगढ़ में धान को लेकर राजनीति होना स्वाभाविक है। क्योंकि किसानों को ज्यादा पैसा देने का वादा करने वाली आैर गरीबों को मुफ्त चावल देने का वादा करने वाली पार्टी सत्ता में काबिज होती है। राज्य की अर्थव्यवस्था पर भी इसका असर पड़ता है क्योंकि किसानों की कर्जमाफी आैर धान खरीदी जैसे कार्यों के लिए सरकार को कर्ज लेना पड़ता है।
धान पर अर्थ व्यवस्था टिकी, फसल अच्छी तो बाजारों में रौनक : कृदत्त
लंबे समय तक छत्तीसगढ़ में कृषि उत्पादन आयुक्त रहे प्रतापराव कृदत्त का मानना है कि समर्थन मूल्य आैर बोनस के कारण ही धान राजनीति का केन्द्र बनता है। छत्तीसगढ़ का प्रमुख फसल होने के कारण जब फसल अच्छी होती है तो बाजारों में रौनक रहती है आैर अकाल-दुकाल की स्थिति में बाजार में वीरानी छा जाती है। राज्य की अर्थव्यवस्था धान पर ही टिकी है। पहले की तुलना में अब उत्पादन बढ़ रहा है। लोग जागरूक हो रहे हैं।
छत्तीसगढ़ की आय और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में योगदान : ब्रह्मे
अर्थशास्त्री रविन्द्र ब्रह्मे का कहना है कि छत्तीसगढ़ की आय आैर ग्रामीण अर्थव्यवस्था में धान का महत्वपूर्ण योगदान है। 80 फीसदी जनसंख्या के जीवन का केन्द्र ही धान है।
जितना कृषि का योगदान है तुलनात्मक रुप से इस पर निर्भर रहने वाले लोगों की संख्या