एक समय था, जब छोटे से शहर रायपुर में पानी के लिए जनता को जूझना नहीं पड़ता था। घर-घर में कुआं, मंदिरों के पास बावली और हर इलाके में तालाब हुआ करते थे। उनमें से कई तालाब और कुआं तो खत्म हो गए, लेकिन अभी भी राजधानी के दो मंदिरों में सैकड़ों साल पुरानी ‘बावली’ विद्यमान हैं, जिनके पानी से प्यास बुझ रही है। इलाके के लोगों का कहना है कि सैकड़ों साल बाद भी बावली सूखी नहीं हैं और उसमें पानी लबालब भरा रहता है। जानकारों का कहना है कि किसी ने भी बावली को सूखी नहीं देखा। दोनों ही बावली की अपनी विशेषता है। भले ही अन्य इलाकों की बावली खत्म हो गई है लेकिन पुरानी बस्ती स्थित महामाया मंदिर जिसकी स्थापना राजा मोरध्वज ने की थी, उस मंदिर के बावली के पानी से ही देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को स्नान कराने की परंपरा चली आ रही है।
अथाह गहराई, आज तक नहीं सूखी बावली
मंदिर के सहायक पुजारी पं.मनोज शुक्ला बताते हैं कि अन्य मंदिरों के कुएं-बावली भले ही सूख चुके हों मगर महामाया मंदिर की बावली आज तक नहीं सूखी। मंदिर में पानी कम होने की नौबत कभी नहीं आई। बावली कितनी गहरी है इसका अंदाजा कोई नहीं लगा पाया है। कई बार गहराई को नापने की कोशिश की गई, 25 फीट से अधिक लंबे बांस को बावली के भीतर डाला गया तो वह भी डूब गया। ।
बावली के पानी से देवी महामाया को कराते हैं स्नान
वर्तमान में बावली के पानी को टुल्लू पंप के जरिए टंकी में भरकर फिर पूरे परिसर में सप्लाई किया जाता है। माता की प्रतिमा को बावली के पानी से ही स्नान कराने की परंपरा चली आ रही है। परिसर में निवासरत पुजारी परिवार, कर्मचारी भी बावली का पानी ही इस्तेमाल करते हैं। 25-30 साल पहले तक पुरानी बस्ती के आसपास के लोग भी बावली का पानी ही इस्तेमाल करते थे। काफी गहराई में होने के कारण किसी भी तरह की अनहोनी न हो और बावली की पवित्रता बरकरार रहे, इसलिए मंदिर ट्रस्ट ने नीचे उतरने के लिए सीमेंट की पक्की सीढ़ियां बना दी है और चारों ओर जालीदार गेट से घेर दिया गया है ताकि कोई भी अंदर न घुस सके।
बावली के भीतर से सुरंग
कहा जाता है कि बावली के भीतर विशाल सुरंग है जो लगभग एक किलोमीटर दूर स्थित कंकाली मंदिर तक जाती है।
500 साल पुरानी हनुमान मंदिर की बावली
पुरानी बस्ती में जैतूसाव मठ के समीप हनुमान मंदिर में भी ऐसी ही एक बावली है, जो लगभग 500 साल पुरानी है। इतिहासकार एलएस निगम बताते हैं कि पुराने शहर की अनेक बावली में से कुछ ही बावली बची है। उनमें से एक पुरानी बस्ती में है। मंदिर के पुजारी पाठक परिवार के सदस्य बताते हैं कि ग्रामीणों को बावली के भीतर से हनुमान की प्रतिमा प्राप्त हुई थी। बावली के बगल में श्रीराम भक्त हनुमान का विशाल मंदिर है जिसे बावली वाले हनुमान मंदिर के नाम से ही जाना जाता है। इसके अलावा राजधानी में तात्यापारा के समीप गली में लगभग 250 पुरानी बावली है। गर्मी के दिनों में जब पानी के लिए हाहाकार मचता है तब इसी बावली का पानी उपयोग में लाया जाता है।
क्या है बावली
इतिहासकार श्री निगम बताते हैं कि वर्तमान पीढ़ी को बावली के बारे में कुछ नहीं मालूम। बावली को एक तरह से ऐसा बड़ा कुआं या छोटा सा पोखर, तालाब कहा जा सकता है जिसमें नीचे तक जाने के लिए सीढ़ियां बनी होती है।