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अब भारत में भी बनेगी एमआरएनए वैक्सीन, कोरोना वायरस पर है अधिक प्रभावी

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कोरोना वायरस (Coronavirus) के खिलाफ अब तक सबसे असरदार एमआरएनए प्लेटफार्म पर तैयार की गई वैक्सीन (Corona Vaccine) रही है. अमेरिका की फाइज़र और मॉडर्ना कंपनी ने विकसित देशों में कोविड-19 के खिलाफ इसका टीकाकरण का अभियान चलाया, हालांकि सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए ये तरीका पहली बार प्रयोग में लाया गया. अब भारत ने इस मामले में भी खुद को साबित करते हुए घरेलू एमआरएनए वैक्सीन (mRNA Vaccine) बनाने की तरफ कदम बढ़ाया है.

पुणे की जेनोवाल फार्मास्युटिकल का कहना है कि वो फेज-1 के ट्रायल के लिए तैयार है. अभी वैक्सीन विकास की प्रक्रिया से गुज़र रही है इसलिए कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा लेकिन फिर भी भारत का ये कदम दूसरे विकासशील देशों के लिए और भारत के लिए बेहतर साबित हो सकता है. जेनोवा वैक्सीन क्या है?
HGC019 नाम की ये वैक्सीन जेनोवा और अमेरिका की एचडीटी बायोटेक कॉरपोरेशन ने मिलकर बनाई है. कंपनी का कहना है कि उन्होंने इस वैक्सीन पर तब से ही काम शुरू कर दिया था जब पहली बार जनवरी 2020 में सार्स को वी 2 जीनोम प्रकाशित हुआ था. वैक्सीन का चूहों और गैरमानव प्राइमेट मॉडल पर सुरक्षा, इम्यूनोजेनिसिटी, एंटीबॉडी सक्रियता, निष्प्रभावीकरण का परीक्षण किया जा चुका है.

पहले चरण के ट्रायल के लिए 18-70 साल के 120 स्वस्थ लोगों पर भी अध्ययन किया गया है. ये क्लीनिकल ट्रायल भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के क्लीनिकल ट्रायल रजिस्ट्री के तहत किया गया है. न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक फेज ट्रायल की अनुमति मिली है और फेज 2 के ट्रायल में 18-75 उम्र के करीब 500 स्वस्थ लोगों पर अध्ययन किया जाएगा.

क्या है एमआरएनए वैक्सीन?
ये वैक्सीन न्यूक्लिक एसिड वैक्सीन की श्रेणी में आती है. इसमें बीमारी पैदा करने वाले वायरस या पैथोजन से जेनेटिक मटेरियल का उपयोग किया जाता है. जिससे शरीर के अंदर वायरस के खिलाफ इम्यून रिस्पांस सक्रिय हो सके. सभी वैक्सीन को शरीर में इसलिए डाला जाता है ताकि वो संक्रमण पैदा करने वाले कारण की पहचान कर सके और भविष्य में ऐसे किसी वायरस के हमले पर एंटिबॉडी का निर्माण हो.

पारंपरिक वैक्सीन में इसके लिए बीमारी पैदा करने वाले वायरस को ही मृत या निष्क्रिय करके शरीर में डाला जाता है. लेकिन न्यूक्लिक एसिड वैक्सीन जैसे डीएनए या आरएनए वैक्सीन में पैथोजन का जेनेटिक कोड शरीर में डाला जाता है जो मानव कोशिका को हमले की पहचान करके उसके बचाव के लिए रक्षात्मक प्रोटीन तैयार करने के लिए प्रेरित करता है.

इस तरह की वैक्सीन में वायरस का किसी तरह का कोई जीवित तत्व नहीं डाला जाता है. इसलिए इस वैक्सीन में बीमारी के बढ़ने का खतरा नहीं होता है. साथ ही ये वैक्सीन निर्माण में भी आसान होती है बस बीमारी पैदा करने वाले पैथोजन का जीनोम सीक्वेंस ही इसमें अहम होता है. सार्स कोवी 2 के जीनोम का सीक्वेंस हो जाने के बाद मॉडर्ना एम आरएनए दो महीने के अंदर ही क्लीनिकल ट्रायल पर चली गई थी.
बस वैक्सीन बनाने का ये तरीका सबसे नया है, डीएनए और आरएनए वैक्सीन विभिन्न बीमारियां जिसमें एचआईवी, ज़ीका वायरस शामिल है उसके लिए विकसित की जा रही हैं. कोविड-19 के मामले में पहली बार इसे इंसानों पर आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति मिली है.

जेनोवो वैक्सीन की क्या खासियत है?
जेनोवा का कहना है कि वैक्सीन जिस स्पाइक प्रोटीन के साथ बनाई जा रही हैं वो कोरोना वायरस के D614G म्यूटेशन के साथ काम करता है जो दुनिया भर में प्रमुख स्ट्रेन है, वायरस के खिलाफ जितनी भी वैक्सीन बनाई गई है, उन्हें तब तैयार किया गया, जिस दौरान वर्तमान का कोई भी स्ट्रेन मौजूद नहीं था. हालांकि वे सभी वैक्सीन भी काम कर रही हैं. जेनोवा का कहना है कि HGCO19 वैक्सीन में खुद से बढ़ने वाले saRNA प्लेटफार्म का इस्तेमाल किया गया है. जो फाइजर और मॉडर्ना से थोड़ी अलग है.

हालांकि दोनों वैक्सीन के कार्य करने का तरीका एक जैसा ही होता है. बसे saRNA वैक्सीन में वायरस एंजाइम के लिए कोड भी रहता है जो इसे इंसान की कोशिका में वायरस की कई प्रतियां तैयार करने में मदद करता है, जिससे प्रोटीन का उत्पादन तेजी से होता है. चूंकि ये खुद को बढ़ा लेता है इसलिए इसका कम डोज ही काफी होता है. साथ ही इसकी लागत भी मॉडर्ना या फाइजर की तुलना में कम है.

वैक्सीन कब इस्तेमाल के लिए तैयार होगी?
वैक्सीन निर्माता ने अभी तक फेज 1 क्लिनिकल ट्रायल का डाटा ही दिया है और इसे उत्पादन तक पहुंचने में अभी कुछ वक्त लगेगा. कंपनी का कहना है कि अगले चरण में हम संयुक्त तौर पर फेज 2 और 3 के ट्रायल की अनुमति लेंगे. और फिर इसके आपातकालीन इस्तेमाल की इजाजत ली जाएगी. खास बात ये है कि इस वैक्सीन को 2-8 डिग्री पर स्टोर किया जा सकता है इसलिए इसके आवागमन में भी कोई परेशानी नहीं होगी.