केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) के निदेशकों का कार्यकाल मौजूदा दो वर्ष से अधिकतम पांच साल तक करने की अनुमति देने वाले दो अध्यादेशों पर विपक्ष के हमले के बाद केंद्र सरकार ने सोमवार को कहा कि ये “संस्थागत परिवर्तन” हैं और जांच में निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए यह कदम आवश्यक था.
एक सरकारी अधिकारी ने न्यूज़18 को बताया, “ये अखिल भारतीय सेवाएं हैं. अधिकारी को केवल संगठन को समझने में एक वर्ष का समय लगता है और अगले वर्ष तक उनके जाने का समय आ जाता है. इसलिए, यह इन संस्थानों के हित में है कि निदेशकों को 5 साल तक का कार्यकाल दिया जा रहा है.”
‘क्यों जरूरी है कार्यकाल में विस्तार’
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि विशेष रूप से ईडी और सीबीआई ऐसे मामलों की जांच कर रही हैं, जिनमें ना सिर्फ पैसे का लेनदेन काफी जटिल है, बल्कि वैश्विक प्रभाव भी है. उन्होंने कहा, “ये ‘फौजदारी’ जांच नहीं हैं. दुनिया भर में पैसे की हेराफेरी की जा रही है. साइबर तत्व शामिल हैं. ये लंबे समय से चल रही जांच हैं और शीर्ष पर निरंतरता की दरकार है.”
दरअसल सरकार ने 14 नवंबर को दो अध्यादेश जारी किये थे, जिसके तहत सीबीआई और ईडी के निदेशकों का कार्यकाल मौजूदा दो वर्ष से अब अधिकतम पांच साल तक हो सकता है. अध्यादेशों के मुताबिक दोनों ही मामलों में, निदेशकों को उनकी नियुक्तियों के लिए गठित समितियों द्वारा मंजूरी के बाद तीन साल के लिए एक-एक साल का विस्तार दिया जा सकता है.
किसकी सिफारिश पर होती है ईडी और सीबीआई निदेशक की नियुक्ति
ईडी निदेशक की नियुक्ति केंद्रीय सतर्कता आयुक्त की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिश पर केंद्र सरकार करती है. इसके सदस्यों में सतर्कता आयुक्त, गृह सचिव, कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के सचिव तथा राजस्व सचिव शामिल हैं. सीबीआई के निदेशक का चयन प्रधानमंत्री, प्रधान न्यायाधीश और लोकसभा में विपक्ष के नेता की एक समिति की सिफारिश के आधार पर होता है.
‘केंद्र सरकार ने शीतकालीन सत्र का इंतजार क्यों नहीं किया’
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और वाम दलों ने सरकार पर संसद का मजाक उड़ाने का आरोप लगाया और उसकी मंशा पर सवाल खड़ा करते हुए पूछा कि उसने आगामी शीतकालीन सत्र का इंतजार क्यों नहीं किया. कांग्रेस ने सीबीआई और ईडी निदेशकों के कार्यकाल को बढ़ाने की आवश्यकता पर सवाल उठाया. कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने ट्वीट किया, “इन संवेदनशील पदों पर आसीन लोगों के सामने वार्षिक विस्तार का प्रलोभन देकर राजग-भाजपा सरकार इन दोनों संगठनों की जो भी संस्थागत अखंडता बची है उसे मिटाना चाहती है, स्पष्ट है कि विपक्ष को परेशान करें और विस्तार प्राप्त करें.”