ICMR ने कोरोना की तीसरी लहर में ओमिक्रॉन से संक्रमित मरीजों के इलाज को लेकर नई गाइडलाइन जारी की है। इसमें कई दवाओं को कोरोना के इलाज से हटा दिया गया है। इनमें कुछ ओरल एंटीवायरल, एंटीबायोटिक्स और मोनोक्लोनल एंटीबॉडी दवाएं शामिल हैं।
साथ ही इसमें कहा गया है कि स्टेरॉयड्स देने से कोरोना मरीजों को कोई फायदा नहीं हो रहा है, बल्कि इससे ब्लैक फंगस जैसी बीमारियों के होने का खतरा होता है। दूसरी लहर के दौरान संक्रमित मरीजों को बड़ी संख्या में स्टेरॉयड्स देने से बड़ी संख्या में ब्लैक फंगस के मामले सामने आए थे।
डॉक्टरों के एक समूह की तरफ से इन दवाओं के इस्तेमाल के खिलाफ ओपन लेटर लिखने के बाद यह फैसला किया गया है। नई गाइडलाइन को AIIMS, ICMR, कोविड-19 टास्क फोर्स एवं डायरेक्टरेट जनरल ऑफ हेल्थ सर्विस (DGHS) ने जारी किया है। ICMR ने अपनी लिस्ट से एंटी वायरल दवा मोलनुपिराविर को हटा दिया है। एक्सपर्ट्स बता रहे हैं कि इस दवा के फायदे से ज्यादा साइडइफेक्ट्स हैं।
आइए जानते हैं ICMR की नई गाइडलाइंस से किन दवाओं को हटाया गया है। साथ ही ओमिक्रॉन से संक्रमित पर होने क्या करने की सलाह दी गई है?
ICU में जाने के 48 घंटे के अंदर टोसिलीजुमाब (tocilizumab) दे सकते हैं
ICMR की गाइडलाइंस में कहा गया है कि कोरोना से गंभीर रूप से पीड़ित होने या ICU में भर्ती होने के 24 से 48 घंटे के अंदर इसे दिया जा सकता है।
जरूरी होने पर ही सीटी स्कैन कराएं
ICMR की नई गाइडलाइंस में साफ कहा गया है कि सीटी स्कैन और महंगे ब्लड टेस्ट काफी गंभीर मरीजों और ज्यादा जरूरी होने पर ही करवाना चाहिए।
स्टेरॉयड्स के ज्यादा इस्तेमाल से बचने की सलाह
नई गाइडलाइंस में कहा गया है कि स्टेरॉयड्स वाली दवाएं अगर जरूरत से पहले, या ज्यादा डोज में, या फिर जरूरत से ज्यादा वक्त तक इस्तेमाल की जाएं तो इनसे ब्लैक फंगस जैसे सेकेंडरी इन्फेक्शन का डर बढ़ता है।
अलग-अलग दवाइयों के डोज की सलाह
नई गाइडलाइन में कोरोना के हल्के, मध्यम और गंभीर लक्षणों के लिए अलग-अलग दवाइयों की डोज की सलाह दी गई है। इसमें कहा गया है कि इंजेक्शन मेथेपरेडनिसोलोन 0.5 से 01 mg/kg की दो अलग खुराकों में या इसके बराबर डेक्सामीथासोन की खुराक पांच से दस दिनों तक हल्के लक्षण वाले लोगों को दी जा सकती है। इसी दवा की 01 से 02 mg/kg की दो अलग खुराकों को गंभीर केस में दिया जा सकता है।
तीन हफ्तों से आ रही है खांसी, तो टीबी का टेस्ट कराएं
इसमें बुडेसोनाइड लेने का भी सुझाव दिया गया है। यह दवा उन मामलों में दी जा सकती है जब रोग होने के पांच दिन बाद भी बुखार और खांसी बनी रहती है। साथ ही यह भी कहा गया है कि अगर किसी की खांसी दो-तीन हफ्तों से ठीक नहीं हो रही है तो उसे टीबी या ऐसी ही किसी दूसरी बीमारी के लिए टेस्ट कराना चाहिए।
33 डॉक्टरों के समूह ने कई दवाओं के इस्तेमाल पर सवाल उठाए थे
दरअसल 33 डॉक्टरों के एक समूह ने 14 जनवरी को केंद्र सरकार, राज्यों और IMA को पत्र लिखकर कहा था कि ऐसी दवाओं और टेस्ट को रोका जाना चाहिए जो कोरोना संक्रमण के इलाज के लिए जरूरी नहीं हैं। पत्र में कहा गया है कि ड्रग रेगुलेटर और ICMR के बीच समन्वय की कमी पर भी सवाल किया गया था। साथ ही डॉक्टरों ने कहा था कि सरकार वही गलती कर रही है जो दूसरी लहर में की गई थी। विटामिन और एजिथ्रोमाइसिन, डॉक्सीसाइक्लिन, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन, फेविपिराविर और आइवरमेक्टिन जैसी दवाएं देने का कोई मतलब नहीं है। इस तरह के दवाओं के उपयोग के कारण ही डेल्टा की दूसरी लहर में ब्लैक फंगस के मामले देखने को मिल थे।