क़तर की राज़धानी दोहा साल 2022 में फ़ुटबॉल वर्ल्ड कप का मेज़बान बन जाएगा, ये कुछ साल पहले तक किसी ने अनुमान भी नहीं किया था.
एक शताब्दी पहले साल 1922 में ये 12000 वर्ग किलोमीटर में फैला खाड़ी देश व्यावहारिक रूप से बसावट के काबिल नहीं माना जाता था.
यहां रहने वाले लोगों में बड़ी तादाद मछुआरों और मोती चुनने वालों की थी और ये लोग खानाबदोश थे जो अरब द्वीप में घूम-घूम कर रहा करते थे.
जो लोग अपनी उम्र के नौवें दशक में हैं उन्हें 1930-40 के दौर का भयावह आर्थिक संकट अभी भी याद है. ये वो समय था जब जापानी लोगों ने मोती की खेती और इसका व्यापक उत्पादन शुरू कर दिया गया. नतीजतन क़तर की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी.
इसी दशक में, कतर से 30 फ़ीसदी लोगों ने पलायन कर दिया और बेहतर मौकों की तलाश में विदेश चले गए. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़ यहां की बसावट 24 हज़ार तक सिमट कर रह गई.
लेकिन फिर क़तर की अर्थवस्था में यू-टर्न आया और एक जादू की तरह क़तर दुनिया के सबसे बड़े तेल रिज़र्व के रूप में उभर कर सामने आया.
20वीं शताब्दी के मध्य में क़तर के ख़जाने में तेज़ी से बढ़त होने लगी और वह दुनिया के सबसे समृद्ध देशों में शुमार हो गया. आज क़तर में अनगिनत गगनचुंबी इमारतें हैं, शानदार कृत्रिम द्वीप और अत्याधुनिक स्टेडियम हैं तो ऐसे में बीबीसी ने उन तीन बदलावों का विश्लेषण कर रही हैं जिसने क़तर को दुनिया का एक दौलतमंद देश बना दिया.
1939 में तेल की खोज
जब क़तर में ‘ब्लैक गोल्ड’ की खोज हुई तो क़तर एक आज़ाद देश नहीं था और 1916 से ब्रितानी हुकूमत के हाथ में था. जब क़तर ने अपने काले सोने (तेल के कुंए) की खोज की, तब तक यह एक राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में नहीं था और यह अंग्रेजों के हाथों में था, जिन्होंने 1916 में ही इस क्षेत्र पर नियंत्रण कर लिया.
कई सालों की खोज के बाद, पहला भंडार 1939 में देश के पश्चिमी तट पर दोहा से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर दुखान में पाया गया.
हालांकि इस खोज को भुनाने में क़तर को कुछ और साल लगे.
अमेरिका के बेकर इंस्टीट्यूशन में क़तर मामलों की जानकार क्रिस्टियन कोट्स कहती हैं कि “यह खोज द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत में ही हुई, जिसके कारण 1949 तक तेल के निर्यात रुका रहा और इसलिए इससे फ़ायदा मिलना शुरू नहीं हो सका.”
तेल के निर्यात ने क़तर में अवसरों का अंबार लगा दिया और यहां तेज़ी से बदलाव और आधुनिकरण आने लगा.
फलते-फूलते तेल उद्योग से आकर्षित होकर, प्रवासी और निवेशक क़तर में आने लगे जिससे इसकी आबादी में वृद्धि हुई. 1950 में क़तर की आबादी 25,000 से भी कम थी जो 1970 तक 100,000 से अधिक हो गई.
जो देश कभी मछुआरों और मोती चुनने के लिए जाना जाता था वहां की जीडीपी 1970 में 300 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की हो गई.
एक साल बाद, ब्रिटिश शासन का अंत हुआ और क़तर एक स्वतंत्र देश बन गया. इसके साथ ही यहां एक नए युग की शुरुआत हुई जिसने क़तर को और भी अधिक धनवान देश बनाया.
प्राकृतिक गैस की खोज
जब 1971 में इंजीनियरों ने क़तर के पूर्वोत्तर तट से दूर नॉर्थ फील्ड में विशाल प्राकृतिक गैस रिज़र्व की खोज की तो बेहद कम लोग ही इसके महत्व को समझ पाए.
यह समझने में 14 साल और दर्जनों अभ्यास लगे कि नॉर्थ फील्ड धरती का पर सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस क्षेत्र है, जिसमें दुनिया के ज्ञात भंडार का लगभग 10% हिस्से का पता लगा.
इससे ये पता चला कि ईरान और रूस के बाद क़तर प्रकृतिक गैस के भंडार में सबसे बड़ा देश है. नॉर्थ फील्ड का क्षेत्रफल लगभग 6,000 वर्ग किमी है, जो पूरे क़तर के आधे हिस्से के बराबर है. क़तर गैस, जो कंपनी दुनिया में सबसे अधिक तरल प्राकृतिक गैस का उत्पादन करती है, वह अपने इस उद्योग से क़तर की आर्थिक वृद्धि में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.
लेकिन तेल की तरह ही गैस से होने वाली आमदनी ने भी समय लिया. कोट्स के मुताबिक़, “लंबे समय तक, मांग उतनी बड़ी नहीं थी और इसे विकसित करने में कोई खास दिलचस्पी भी नहीं थी, हालांकि 80 के दशक में सब कुछ बदलना शुरू हो गया था, जब बुनियादी ढांचे को तैयार किया जाना शुरू हुआ तो इसे देश के भीतर इसका डिस्ट्रीब्यूशन किया जाने लगा और 90 के दशक में इसे निर्यात करने की व्यवस्था की गई जिसने अर्थव्यवस्था के और आगे बढ़ाने वाले इंजन की तरह काम किया.”हमाद बिन खलीफा अलथानी
1995 का तख़्तापलट
क़तर की आर्थिक विकास दर के ग्राफ़ ने 21वीं सदी के आने के साथ ही एक बड़ी छलांग भरी. साल 2003 से 2004 में क़तर की जीडीपी दर 3.7 फ़ीसदी से बढ़कर 19.2 फ़ीसदी हो गई. दो साल बाद साल 2006 में ये बढ़कर 26.2 फ़ीसदी हो गई.
ये बढ़ती जीडीपी दर कई सालों तक क़तर की ताकत की पहचान रही है और इस बढ़त को सिर्फ़ गैस के मूल्य तक ही सीमित नहीं किया जा सकता.
मोहम्मद सईदी क़तर विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर हैं और स्थायी अर्थशास्त्र के जानकार हैं. वह कहते हैं-” ये आर्थिक बदलाव तब हो रहे थे जब देश में राजनीतिक बदलाव भी हो रहा था. साल 1995 में वर्तमान आमिर तमीम बिन हमद अलथानी के पिता हमाद बिन खलीफा अलथानी ने सत्ता संभाली थी, यह कुछ लोगों के लिए ये एक विवादास्पद घटना थी कि ऐसा कैसे हुआ? “
हमाद बिन खलीफा अलथानी ने अपने पिता की जगह तब ली जब वो स्विट्ज़रलैंड के दौरे पर थे. अलथानी परिवार डेढ़ सौ साल से क़तर पर राज कर रहा है और इस परिवार में इस तरह से सत्ता पर कब्ज़ा करना का ये कोई पहला वाकया नहीं था. लेकिन पैलेस की साजिशों के इतर इस सत्ता परिवर्तन ने क़तर की अर्थव्यवस्था में एक बड़ा बदलाव लाया.
गैस औऱ तेल को निकालने में किए गए निवेश, तरलीकरण और इसे निर्यात करने के लिए तैयार किए गए इंफ्रांस्ट्रक्चर ने देश को विदेशों से जोड़ने का काम किया.
साल 1996 में, तरल प्राकृतिक गैस से भरा एक जहाज़ जापान के लिए रवाना हुआ. यह क़तर गैस का पहला बड़ा निर्यात था और अरबों डॉलर के उद्योग की शुरुआत यहीं से हुई जिसने क़तर को वैश्विक संपदा के शिखर पर पहुंचा दिया. क़तर में प्रति व्यक्ति जीडीपी 2021 में 61,276 अमेरिकी डॉलर थी. यदि हम खरीद की शक्ति के समानता के पैमाने पर भी देखें तो विश्व बैंक के अनुसार यह आंकड़ा बढ़कर 93,521 डॉलर हो जाता है, जो दुनिया में सबसे अधिक है. हालांकि इसकी छोटी आबादी एक बड़ी वजह है. क़तर की जनसंख्या केवल 300,000-350,000 के आस-पास है, जिनमें से अधिकांश प्रवासी हैं. क़तर सरकार ऊंचा वेतन देती है और साथ ही बेहतरीन शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था अपने लोगों को देती है.
क़तर की अर्थवस्था की चुनौतियां
हालांकि हालिया सालों में क़तर की अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ है और वह थोड़ी धीमी हुई है. भविष्य में इसके सामने चुनौतियां हैं, जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता और वर्तमान में वह जलवायु प्रभाव को लेकर कड़ी सक्रूटनी झेल रहा है.
सईदी कहते हैं, “2013 और 2014 में तेल की कीमतों में गिरावट आई और आय के स्रोतों में बदलवा की ज़रूरत चर्चा का मुख्य विषय बना.”
क़तर के साथ एक राजनयिक विवाद के बाद सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और मिस्र ने 2017 और 2021 के बीच नाकाबंदी की थी जिससे क़तर की अर्थव्यवस्था को बड़ी चुनौती दी थी.
कोट्स के अनुसार, कतर ने गैस और तेल के अलावा आर्थिक कमाई के ज़रिए नहीं तलाशे हैं. और इसलिए अब वे निजी सेक्टर को फैलाना चाहते हैं. वह इसमें निवेश कर रहे हैं ताकि हाइड्रोकार्बन पर उनकी निर्भरता कम हो सके.
इस प्रयास का एक अच्छा उदाहरण ये है कि लंदन और न्यूयॉर्क जैसे शहरों में कई प्रसिद्ध संपत्तियों में क़तर के निवेश प्राधिकरण और क़तर के फंड की हिस्सेदारी है.
कोट्स का मानना है कि “अब क़तर दोहा को इवेंट, कॉन्फ्रेंस, बैठकों का हब बनाने पर ज़ोर दे रहा है और खास कर विश्व कप का आयोजन इसका एक बड़ा उदाहरण है.”
क़तर ने फुटबॉल विश्व कप के आयोजन के लिए 200,000 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक खर्च किया है, जो इतिहास में अब तक का सबसे महंगा फीफा विश्व कप है. इसमें आठ स्टेडियम, एक नया हवाई अड्डा और एक नई मेट्रो लाइन जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर बनाए गए हैं.
दुनिया का एक बड़ा हिस्सा जिस तरह से क़तर का इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया गया है, उस पर सवाल उठाता है. इसके निर्माण में शामिल कई मज़दूर नेपाल, भारत और बांग्लादेश जैसे देशों से आते हैं जिन्होंने अमानवीय परिस्थितियों में काम किया और कईयों की जान भी चली गई.
इसमें कतर और इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ एसोसिएशन फुटबॉल (फ़ीफ़ा) के खिलाफ भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के आरोप लगाए जा रहे हैं. कई लोग दावा कर रहे हैं कि साल 2010 में क़तर ने रिश्वत के बदले आयोजन की मेज़बानी अपने नाम करवाई.
हाल हीन में क़तर के अधिकारियों की ओर से एलजीबीटी समुदाय को लेकर विवादित बयान सामने आए जिसने उशी रूढ़िवादी छवि को दुनिया के सामने साया.
इन आलोचनाओं से परे, यह स्पष्ट है कि यह आयोजन एक छोटे से देश के लिए विश्व कप से कहीं अधिक है जो रिकॉर्ड समय में समृद्ध हुआ और जो अब एक अधिक आधुनिक और प्रगतिशील छवि के तहत खुद को एक प्रमुख भू-राजनीतिक खिलाड़ी के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहा है.
कर सकते हैं.