CAG के डेटा से पता चलता है कि 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का संयुक्त पेंशन बिल 2019-20 में 3.38 लाख करोड़ रुपये रहा, जो वेतन और मजदूरी पर उनके संयुक्त खर्च का 61.82 प्रतिशत था.
CAG Report On Pension Bill: पेंशन को लेकर इन दिनों खूब चर्चा हो रही है. लगभग हर राजनीतिक दल ने पेंशन को एक मुद्दा बनाया है और चुनावों में इसका प्रभाव भी नजर आता है. वहीं अब कैग की एक रिपोर्ट (CAG Report) सामने आई है, जिससे यह पता चलता है कि पेंशन बिल केंद्र और राज्यों सरकारों के लिए एक प्रमुख खर्चा बन गया है. बीते कुछ सालों में यह तेजी से ऊपर की ओर गया है. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, पेंशन बिल 2019-20 के दौरान केंद्र और गुजरात सहित तीन राज्यों के ‘वेतन और मजदूरी’ खर्च से अधिक था.
बता दें कि पुरानी पेंशन योजना (OPS) हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा चुनावों में एक प्रमुख चुनावी वादे के रूप में उभरी है. दो कांग्रेस शासित राज्यों (राजस्थान और छत्तीसगढ़) ने पहले ही ओपीएस को लागू करने का फैसला कर लिया है, जबकि पार्टी ने सत्ता में आने पर गुजरात और हिमाचल प्रदेश में इसे बहाल करने का वादा किया है.
CAG रिपोर्ट से क्या सामने आया
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 2019-20 के दौरान केंद्र का कुल प्रतिबद्ध खर्च 9.78 लाख करोड़ रुपये था, जिसमें ‘वेतन और मजदूरी’ पर 1.39 लाख करोड़, ‘पेंशन’ पर 1.83 लाख करोड़ रुपये और ‘ब्याज भुगतान और कर्ज चुकाने’ पर 6.55 लाख करोड़ रुपये शामिल था. रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र का कुल प्रतिबद्ध खर्च 2019-20 में उसके कुल राजस्व खर्च 26.15 लाख करोड़ रुपये का 37 प्रतिशत था.
‘पेंशन पर खर्च वेतन और मजदूरी खर्च से अधिक है’
कैग रिपोर्ट में कहा गया, “केंद्र सरकार के संबंध में प्रतिबद्ध व्यय (Committed Expense) में ब्याज भुगतान और लोन की सर्विसिंग पर 67 प्रतिशत शामिल है. वहीं बाकी 19 प्रतिशत और 14 प्रतिशत खर्च में क्रमशः पेंशन और वेतन और मजदूरी खर्च शामिल था. यह स्पष्ट है कि पेंशन पर खर्च वेतन और मजदूरी पर खर्च से अधिक है.”
किन तीन राज्यों में अधिक है खर्च?
रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र का पेंशन बिल 2019-20 में वेतन और मजदूरी पर उसके खर्च का 132 प्रतिशत था. पेंशन बिल 2019-20 में तीन राज्यों (गुजरात, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल) में वेतन और मजदूरी खर्च से भी अधिक हो गया. गुजरात में पेंशन बिल (17,663 करोड़ रुपये) वेतन और मजदूरी (11,126 करोड़ रुपये) पर खर्च का 159 प्रतिशत था. इसी तरह, कर्नाटक का पेंशन बिल (18,404 करोड़ रुपये) वेतन और मजदूरी (14,573 करोड़ रुपये) पर राज्य के खर्च का 126 प्रतिशत था. और पश्चिम बंगाल के लिए पेंशन बिल (17,462 करोड़ रुपये) वेतन और मजदूरी (16,915 करोड़ रुपये) पर खर्च का 103 प्रतिशत था.
डेटा से पता चलता है कि 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का संयुक्त पेंशन बिल 2019-20 में 3.38 लाख करोड़ रुपये रहा, जो वेतन और मजदूरी पर उनके संयुक्त खर्च (5.47 लाख करोड़ रुपये) का 61.82 प्रतिशत था. पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और ओडिशा में पेंशन बिल वेतन और मजदूरी पर उनके खर्च का दो-तिहाई से अधिक है.
सरकार को इससे क्या दिक्कत है?
पेंशन पर खर्च सरकार के प्रतिबद्ध खर्च के प्रमुख हिस्सों में से एक है. अन्य दो, वेतन और मजदूरी और ब्याज भुगतान और लोन की सर्विसिंग पर खर्च हैं. अगर प्रतिबद्ध खर्च अधिक है तो इसका मतलब है कि सरकार के पास उस उद्देश्य को निर्धारित करने के लिए कम लचीलापन है जिसके लिए राजस्व खर्च किया जाना है.
2019-20 के दौरान सभी राज्यों का कुल प्रतिबद्ध खर्च 12.38 लाख करोड़ रुपये था (वेतन और मजदूरी पर 5.47 लाख करोड़ रुपये; ब्याज भुगतान पर 3.52 लाख करोड़ रुपये और पेंशन पर 3.38 लाख करोड़ रुपये), जो 27.41 लाख करोड़ रुपये के उनके संयुक्त राजस्व खर्च का 45 प्रतिशत था.
राजस्थान में पेंशन पर खर्च 2019-20 में 20,761 करोड़ रुपये था. यह वेतन और मजदूरी पर उसके खर्च (48,577 करोड़ रुपए) का करीब 42.7 फीसदी है. इसी तरह, छत्तीसगढ़ का पेंशन बिल (6,638 करोड़ रुपये) राज्य के वेतन और मजदूरी व्यय (21,672 करोड़ रुपये) का 30.62 प्रतिशत था.