- गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर भूपेंद्र पटेल ने दूसरी बार शपथ ले ली है.
- जब भूपेंद्र पटेल को पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया, तो सभी की ज़ुबान पर एक ही लाइन थी- किस्मत हो तो इनके जैसी.
- मुख्यमंत्री बनने के बाद वे राज्यपाल भवन से सीधे अहमदाबाद के अडालज इलाके में बने त्रिमंदिर में दर्शन के लिए पहुंचे. आध्यात्मिक गुरु दादाभगवान द्वारा स्थापित इस संप्रदाय में भूपेंद्र पटेल की अटूट आस्था है.
- पिछली बार संगठन के साथ मनमुटाव के कारण बीजेपी को गुजरात मंत्रिमंडल में फेरबदल करने की नौबत आई.
- इस बार के विधानसभा चुनाव से पहले दोबारा इस तरह के टकराव की नौबत ना आए, इस वजह से भूपेंद्र पटेल को चुना गया.
गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है.
भाजपा की जीत के रणनीतिकारों में नरेंद्र मोदी, अमित शाह और गुजरात भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल के अलावा,
एक और नाम है वो है, भूपेंद्र पटेल – जिन्हें नरेंद्र मोदी एक ‘नरम लेकिन दृढ़ निश्चियी’ मुख्यमंत्री बताते हैं.
गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने सीआर पाटिल के साथ मिलकर वो कर दिखाया है, जिसके लिए बीजेपी हर चुनाव में मेहनत करती रही लेकिन इससे पहले सफल नहीं हुई.
जो रिकॉर्ड नरेंद्र मोदी अपने मुख्यमंत्री काल में नहीं तोड़ पाए वो भूपेंद्र पटेल ने तोड़ दिया है.
यह रिकॉर्ड 1985 के चुनाव में मुख्यमंत्री माधव सिंह सोलंकी के नेतृत्व में कांग्रेस ने बनाया था, जब पार्टी ने 149 सीटों जीतीं थी.
37 साल बाद बीजेपी 2022 के विधानसभा चुनाव में इस रिकॉर्ड को तोड़ पाई.
मुख्यमंत्री बनने से पहले भूपेंद्र पटेल पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता और विधायक के रूप में जाने जाते थे.
जानकार बताते हैं कि मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उन्होंने अपना लो प्रोफ़ाइल बरक़रार रखा है और उनकी शैली में ख़ास बदलाव नहीं आया है.
किस्मत के धनी
जब भूपेंद्र पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री चुना गया तो सभी को आश्चर्य हुआ.
मुख्यमंत्री के तौर पर विजय रूपाणी का चयन भी गुजरात में कम आश्चर्य की बात नहीं थी लेकिन तब वो गुजरात प्रदेश के अध्यक्ष थे और संगठन में उनका एक लंबा करियर था.
भूपेंद्र पटेल ने 2017 में पहली बार घाटलोडिया विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीता. ये एक ऐसा निर्वाचन क्षेत्र है जिसे बीजेपी का गढ़ माना जाता है.
अगर बीजेपी का कोई भी अनजान उम्मीदवार यहाँ खड़ा होता है तो भी उसकी जीत होगी. इस लिहाज से भूपेंद्र पटेल की जीत बड़ी जीत नहीं मानी गई.
हालांकि यहाँ भूपेंद्र पटेल ने 1 लाख 17 हज़ार के भारी अंतर से कांग्रेस के शशिकांत पटेल को हराया था.
भूपेंद्र पटेल को आनंदी पटेल का क़रीबी माना जाता है और घाटलोडिया आनंदी पटेल का निर्वाचन क्षेत्र रहा है.
हालाँकि किसी को उम्मीद नहीं थी कि उन्हें कैबिनेट में जगह मिलेगी. जब समय आया, तो वे सीधे मुख्यमंत्री बन गए.
दरियापुर का चहेता
घाटलोडिया और अहमदाबाद शहर के राजनीतिक हलकों में उन्हें एक बुद्धिमान, विनम्र, शांत नेता के रूप में जाना जाता रहा है.
उनके करीबी लोग उन्हें ‘दरियापुर का चहेता’ भी कहते हैं, क्योंकि मूल रूप से उनका परिवार दरियापुर में रहता था.
15 जुलाई, 1962 को अहमदाबाद में जन्मे भूपेंद्र पटेल 1987 में भाजपा-आरएसएस में शामिल हुए.
वे मेमनगर में संघ के पंडित दीनदयाल पुस्तकालय से जुड़े रहे हैं.
अहमदाबाद में जब तेज़ी से विकास हो रहा था, तब उनका पूरा परिवार अहमदाबाद आ गया.
1995 में वे मेमनगर नगर पालिका की स्थायी समिति के अध्यक्ष बने.
1999-2000 और 2004-2006 में मेमनगर नगर पालिका प्रमुख भी बने.
उन्हें 2008-10 में स्कूल बोर्ड के अध्यक्ष और 2015 से 2017 तक अहमदाबाद अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी (ऑडा) के चेयरमैन रहे.
सामाजिक रूप से सरदार धाम और विश्व उमिया फाउंडेशन से भी जुड़े. चूँकि वह पेशे से एक बिल्डर हैं, इसलिए वह बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण बिल्डर लॉबी का भी समर्थन करते हैं.
पिछली बार सौराष्ट्र में पटेल वोट बैंक के फासले की वजह से बीजेपी दो अंकों में 99 पर सिमट गई.
बीजेपी को ऐसे नेता की ज़रूरत थी, जो पार्टी अध्यक्ष सीआर पाटिल के साथ मिल कर काम करें.