Assembly Elections 2023: पिछले दिनों पटना में 15 विपक्षी दलों की बैठक हुई। बसपा सुप्रीमो मायावती उससे दूर रहीं। उन्होंने पहले ही कहा था कि वह 2024 का चुनाव अपने दम पर लड़ेंगी और किसी से गठबंधन नहीं करेंगी।
हालांकि, वह 2024 के मद्देनजर बनते-बिगड़ते और संभावित समीकरणों पर पैनी नजर गड़ाए हुई हैं। सियासी गलियारों में ये भी चर्चा है कि बसपा यूपी में कांग्रेस के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ सकती है। दोनों को एक-दूसरे की सख्त जरूरत है। पिछली बार बसपा ने सपा के साथ चुनाव लड़ा था और 10 सीटें जाती थीं।
मध्य प्रदेश के समीकरण:
2024 से पहले इस साल के अंत तक होने वाले विधानसभा चुनावों खासकर मध्य प्रदेश ,छत्तीसगढ़ और राजस्थान में दोनों पार्टियों को भी एक दूसरे की सख्त जरूरत है। मध्य प्रदेश में जहां कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनावों में 40.89 फीसदी वोट हासिल कर 230 सदस्यों वाली विधानसभा में 114 सीटों पर जीत दर्ज की थी, वहीं बसपा ने 5 फीसदी वोट हासिल कर दो सीटें जीती थीं। बसपा दो सीटों पर बीजेपी से मुकाबले में दूसरे नंबर पर भी रही थी और कम मार्जिन से चुनाव हारी थी। बीजेपी को उन चुनावों में 41.02 फीसदी वोट मिले थे लेकिन सीटों की संख्या कांग्रेस से कम पांच कम यानी 109 थी।
2020 के शुरुआत में ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक विधायकों के पाला बदलने के बाद राज्य में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी थी। फिलहाल मध्य प्रदेश विधानसभा में बीजेपी के 127, कांग्रेस के 96, निर्दलीय चार, बसपा के दो और सपा के एक विधायक हैं। अब जब कांग्रेस फिर से बीजेपी को हराकर राज्य की सत्ता में वापसी चाह रही है,तब उसे बसपा के साथ की जरूरत महसूस होती दिख रही है। अगर 2018 के ही चुनावी पैटर्न को आधार मानें तो दोनों दलों के मिल जाने के बाद कुल वोट परसेंट करीब 46 फीसदी हो जाता है, जो सर्वाधिक होगा।
छत्तीसगढ़ में हाथ हाथी को सटाना भी न चाहेगा:
छत्तीसगढ़ विधानसभा में कुल 90 सीटें हैं। 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने अपने दम पर 43 फीसदी वोट परसेंट लाकर कुल 68 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि लगातार तीन बार से सत्तारूढ़ रही बीजेपी को कुल 33 फीसदी वोट और 15 सीटें ही मिल सकी थीं। राज्य में तीसरे नंबर पर जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ रही थी, जिसे 7.6 फीसदी वोट और 5 सीटें मिली थीं। इन चुनावों में भी दलितों की राजनाति करने वाली बसपा को 3.9 फीसदी वोट और दो सीटों पर जीत मिली थी।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस फीलगुड में है और उसे पूरा भरोसा है कि भूपेश बघेल के नेतृत्व में पार्टी फिर से चुनाव जीतेगी। कांग्रेस यहां किसी से भी गठबंधन नहीं करना चाह रही है, जबकि बसपा को कांग्रेस के साथ की जरूरत है। उसे पता है कि कांग्रेस ने साथ दिया तो हाथी दो से ज्यादा घर पर कब्जा कर सकता है। हालांकि, इसकी संभावना दूर-दूर तक नहीं दिख रही है।
राजस्थान में कांग्रेस से जली-भुनी बैठी है बसपा:
2018 में राजस्थान में भी विधानसभा चुनाव हुए थे। 200 सीटों वाली विधानसभा में तब कांग्रेस ने 99 सीटों पर जीत दर्ज की थी और बहुमत से दो सीट कम रह गई थी। मायावाती की पार्टी बसपा ने तब अपने छह विधायकों का समर्थन कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार को दिया था। बाद में राजनीति के जादूगर कहलाने वाले गहलोत ने बसपा के सभी छह विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल करवा लिया। इससे मयावती कांग्रेस से खार खाए बैठी है।
वैसे आंकड़ों की बात करें तो कांग्रेस को तब 39.30 फीसदी वोट मनिले थे, जबकि बीजेपी को 38.77 फीसदी वोट और 73 सीटें मिली थीं। 13 निर्दलीयों ने जीत हासिल की थी। बहुजन समाज पार्टी को तब 4 फीसदी वोट मिले थे। बीजेपी और कांग्रेस के बीच वोट परसेंट का अंतर एक फीसदी से कम रहा था। राज्य में हर पांच साल पर सत्ता परिवर्तन की रिवायत रही है। ऐसे में कांग्रेस को बड़ी जीत हासिल करने और सत्ता में वापसी के लिए मायावती के साथ की जरूरत हो सकती है। फिलहाल इसकी संभावना दूर-दूर तक नहीं दिख रही है लेकिन 2024 के लिए अगर बसपा और कांग्रेस साथ आई तो मरुस्थल में भी दोस्ती के फूल खिला सकती हैं।