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Uniform Civil Code : मुस्लिम कम्युनिटी में संपत्ति को लेकर क्या हैं मौजूदा नियम, UCC का क्यों हो रहा है विरोध?

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देश में जब से समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड की गूंज सुनी जा रही है, तब से सबसे ज्यादा विरोध मुस्लिम समुदाय के कथित ठेकेदार या जिम्मेदार, जो भी कहें, उनकी ओर से सामने आ रहा है.

कश्मीर में धारा 370 हटने और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित राज्यों में बंटवारे के फैसले के बाद लोगों को यह लगने लगा है कि यूसीसी भी सरकार कभी भी लेकर आ सकती है. हाल ही में पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूसीसी की चर्चा भर की तो एक बार फिर देश में तूफान मच गया.

इसी चर्चा और तूफान के बीच जानना जरूरी है कि आखिर शरीयत में मुस्लिम महिलाओं को संपत्ति में क्या और किस तरह के अधिकार दिए गए हैं. जैसे हिन्दू समुदाय में बेटियों को भी पिता की संपत्ति में बराबर का अधिकार है, वह लेती हैं या नहीं, उनका अपना विवेक है. पर, कानून हर बेटी को यह अधिकार देता है कि वह पिता की संपत्ति में हक से दावा कर सकती है.

ऐसी मान्यता है और समाज कहता भी है कि मुस्लिम कम्युनिटी में महिलाओं को बहुत सारे अधिकारों से वंचित रखा जाता है. इसकी सच्चाई जानने की कोशिश में टीवी9 भारतवर्ष डिजिटल ने दारुल कज़ा फरंगी महल के मुफ्त्ती नसर उल्लाह से बात कर समझने की कोशिश की.

शरीयत में संपत्ति को लेकर क्या हैं नियम?

उन्होंने बताया कि मुफ्ती के रूप में किसी और धर्म की बात नहीं करूंगा लेकिन शरीयत के बारे में जानकारी देना पसंद करूंगा. यहां महिलाओं-बेटियों को संपत्ति में वही अधिकार दिए गए हैं, जो बाकी रिश्तों को हैं. शरीयत में सभी का हिस्सा तय है. कोई भेदभाव नहीं है. बिल्कुल स्पष्ट तरीके से चीजें शरीयत में दर्ज की गई हैं. उन्होंने उदाहरण देकर कहा कि फर्ज करिए, किसी परिवार में एक बेटा-एक बेटी, इनके माता-पिता और दादा-दादी हैं. अब जरूरत पड़ने पर संपत्ति का बंटवारा कैसे होगा?

अगर किसी की संतान नहीं है, तब सूरत क्या बनेगी? शौहर का निधन हो जाए और बच्चे भी न हों तब संपत्तिका क्या हिसाब-किताब बनेगा? शरीयत में सब कुछ दर्ज है. शरीयत कहता है कि संपत्ति का बंटवारा एक भाई और एक बहन के बीच होना है तो दो तिहाई हिस्सा भाई को मिलेगा और एक तिहाई हिस्सा बहन को देने की व्यवस्था है. इसी तरीके से अगर दो भाई में बंटवारा होगा तो बराबर-बराबर बंटेगा.

अगर किसी दम्पत्ति की संतान कोई संतान नहीं है और शौहर की मौत हो जाती है तब पत्नी को पूरी संपत्ति का 25 फीसदी मिलेगा. बाकी 75 फीसदी पति के भाई, बहन, पिता, माँ आदि को जाएगा. मान लीजिए कि किसी दम्पत्ति के बच्चे हैं और पति न रहे उस सूरत में आठवाँ हिस्सा सबसे पहले पत्नी को मिलेगा. छठवाँ हिस्सा पिता और इतना ही मां को मिलेगा, बाकी बच्चों को.

विवाद होने पर कहां जा सकते हैं?

पारिवारिक संपत्ति को लेकर होने वाले किसी भी विवाद में कोई भी पक्ष दारुल इफ्ता जाकर फतवा की अपील कर सकता है. मुफ्ती मामले को समझते हैं. सबको सुनते हैं. फिर फतवा देते हैं. फतवा देने का मतलब समाधान देना होता है. मुफ्ती नसर उल्लाह कहते हैं कि अगर मुफ्ती के फैसले से भी कोई असहमत हो जाए तो उसे सिविल कोर्ट जाने का अधिकार है. उनका दावा है कि जैसे ही अदालत मामले की सुनवाई शुरू करेगी तो फतवे के बारे में पूछेगी. फतवा पेश होगा.

आगे की सुनवाई अदालत अपने तरीके से देश में उपलब्ध नियम-कानून के दायरे में रहकर करेगी, लेकिन वह शरीयत को इग्नोर नहीं करती. मुफ्ती नसर उल्लाह कहते हैं कि शरीयत सब कुछ साफ है. अब किसी की नियत खराब हो. वह शरीयत की न मानें. बड़ों की न मानें. काजी-मुफ्ती की न माने तो हमारा देश है, संविधान है, उसे मानना ही होगा. पर, मुस्लिम समाज के लिए शरीयत एक मुकम्मल व्यवस्था है. पारदर्शी है. उसमें कहीं कोई कन्फ्यूजन नहीं है