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NCP किसके साथ है? इन 3 मानदंडों पर चुनाव आयोग दे सकता है फैसला

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एनसीपी कौन है और ‘अलार्म घड़ी’ चुनाव चिन्ह पर दावा किसका होगा- शरद पवार गुट का या अजित पवार गुट का, इसपर फैसला चुनाव आयोग को करना है। करीब एक साल पहले शिवसेना में जो यह विवाद हुआ था, उसमें चुनाव आयोग में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुट को जीत मिली थी और उद्धव ठाकरे गुट नुकसान में रहा था।

टीओआई ने दो पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों से बातचीत के आधार पर एक रिपोर्ट दी है, इसके मुताबिक चुनाव आयोग इस मामले में 1971 के सादिक अली केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर निर्णय कर सकता है।

सादिक अली का फैसला लाइटहाउस की तरह-पूर्व सीईसी

पूर्व सीईसी सुनील अरोड़ा के मुताबिक, ‘सादिक अली केस का फैसला चुनाव आयोगों के लिए लगातार ‘लाइटहाउस’ (की तरह) रहा है।’ 1971 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस की टूट के मामले में चुनाव आयोग के आदेश को कायम रखा था। इसमें पार्टी का सुरक्षित चिन्ह ‘जुए के साथ जोड़ा बैल’ जगजीवन राम वाले गुट को दिया गया था।

चुनाव चिन्ह पर फैसले के लिए तीन मौलिक मानदंड

उन्होंने कहा कि सादिक अली केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चुनाव आयोग निश्चित तौर पर पैरा 15 (पार्टी का चुनाव चिन्ह) के तहत कुछ जरूरी कदम उठाए, ताकि इसकी जांच किसी तरह के संदेह में न फंसे। इस फैसले ने चुनाव चिन्ह को लेकर विवाद होने पर निर्णय देने के लिए तीन मौलिक मानदंड तय कर दिया था।

ये तीन मानदंड हैं- पार्टी के लक्ष्यों और उद्दश्यों की जांच, पार्टी के संविधान की जांच और बहुमत की जांच। पहले मानदंड के मुताबिक ईसी यह देखता है कि क्या कोई गुट पार्टी के लक्ष्यों और उद्दश्यों से भटका है, जो उनके बीच मतभेद उभरने की मूल वजह है।

दूसरे मानदंड में आयोग यह तय करता है कि क्या पार्टी उसके संविधान के मुताबिक चलाई जा रही है, जिसमें आंतरिक लोकतंत्र की भी झलक दिखती हो। तीसरे मानदंड में यह देखना होता है कि गुटों के बीच विधायिका में और पार्टी के संगठनात्मक ढांचे में किसकी पकड़ ज्यादा मजबूत है।

जिस मानदंड में कोई संदेह नहीं होता, वही लागू किया जाता है

पूर्व सीईसी ओपी रावत के मुताबिक, ‘हालांकि मानदंड तीन हैं, लेकिन केवल वही जो संदेह से परे स्पष्ट परिणाम देता है, पार्टी चिन्ह के विवाद को तय करने के लिए लागू किया जाता है, बाकी को हटा दिया जाता है।’ क्योंकि, कई बार विभिन्न गुट इतने सारे हलफनामे भेज देते हैं, जिन्हें जांचना संभव नहीं होता है। उन्होंने एआईएडीएमके के ‘दो पत्ते’ निशान को लेकर चले विवाद का हवाला दिया, जिसमें चुनाव आयोग के पास दो ट्रकों पर भरकर हलफनामे पहुंचा दिए गए थे।

विधायिका में बहुमत के आधार पर ही शिंदे गुट के पक्ष में फैसला

शिवसेना विवाद में भी चुनाव आयोग ने इन्हीं मानदंडों की पड़ताल के बाद अपना आदेश जारी किया था। इसमें पार्टी के लक्ष्य और उद्देश्य, पार्टी का संविधान और संगठनात्मक शक्ति की जांच अनिर्णायक रही थी। तब आयोग ने विधायिका में बहुमत की जांच की और उसी आधार पर एकनाथ शिंदे गुट के लिए पार्टी चुनाव चिन्ह सुरक्षित कर दिया।

एनसीपी मामले में भी चुनाव आयोग संबंधित पक्षों के सभी दस्तावेजों और हलफनामा देखने के बाद यह तय करेगा कि क्या इसमें भी पैरा 15 के तहत सुनवाई की आवश्यकता है। फिर, उसी आधार पर आयोग फैसला ले सकता है कि एनसीपी के चुनाव चिन्ह पर किस गुट का दावा जायज है। यह तय होने से पहले यदि कोई चुनाव या उपचुनाव होता है तो किसी भी पक्ष को गैर-उचित फायदा न मिल जाए, इसके लिए आयोग अंतिम निर्णय होने तक सुरक्षित चुनाव चिन्ह को फ्रीज भी कर सकता है।

जब आयोग तय कर लेगा कि असली एनसीपी कौन है तब वह गुट ‘अलार्म घड़ी’ का इस्तेमाल पार्टी निशान के तौर पर कर सकता है।