18 जुलाई का दिन देश के आगामी लोकसभा चुनाव के लिए बड़ा दिन था. बेंगलुरु में 26 विपक्षी पार्टियों ने India नाम के गठबंधन का एलान किया. इसका पूरा नाम इंडियन नेशनल डिवेलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस रखा गया है.
इसके थोड़ी देर बाद बीजेपी ने दिल्ली के अशोका होटल में लोकसभा चुनाव 2024 के लिए एनडीए गठबंधन की तस्वीर की झलक पेश की. विपक्ष के पास कुल 26 पार्टियों की ताकत है तो बीजेपी की बैठक में 38 पार्टियां शामिल थीं.
एनडीए के साथ लगभग सभी छोटी क्षेत्रीय पार्टियां थीं. गणित के हिसाब से कुल 66 पार्टियों ने अपना रुख साफ किया कि आने वाले चुनाव में इंडिया के साथ चुनाव लड़ेंगी या एनडीए के साथ. लेकिन कुछ बड़ी पार्टियां दोनों ही खेमों से दूर रही हैं.
विपक्षी गठबंधन इंडिया से दूर रहने वाली पार्टी में मायावती की बीएसपी का नाम भी शामिल है. सवाल ये है कि मायावती ‘इंडिया’ से दूरी क्यों बना ली है, क्या उनका इरादा बीजेपी के साथ जाने का है, या फिर अकेले चुनाव लड़कर नुकसान पहुंचाना चाहती हैं लेकिन किसे?
बीजेपी के बचाव में मायावती, इशारा क्या?
बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने इस बार विपक्ष की बैठकों से खुद को दूर रखा. मायावती ने साफ कहा है कि वो इस गठबंधन का हिस्सा नहीं होंगी इसके साथ ही लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का ऐलान कर दिया है.
भले ही मायावती विपक्ष से दूरी बनाते हुए लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने की बात कर रही हैं लेकिन वो खुलकर केंद्र सरकार के बचाव में भी आई हैं. इससे पहले भी 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद कई मुद्दों पर उन्होंने सरकार का समर्थन किया है.
वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश अश्क ने एबीपी न्यूज को बताया कि अब तक ये साफ नहीं है कि मायावती बीजेपी के साथ जाएंगी. ये जरूर साफ है कि वो विपक्षी गठबंधन के साथ नहीं हैं. मायावती का किसी भी दल में शामिल न होना दोनों ही दलों का नुकसान कराएगा.
अश्क ने का कहना है कि दोनों ही दलों में एक बहुत बड़ी कमी ये है कि उनके साथ गठबंधन में ज्यादातर ऐसी पार्टियां हैं जिनका कोई भी जनाधार नहीं है. लोकसभा में उनके एक भी सदस्य नहीं हैं. इन गठबंधनों का साफ मतलब यही है कि छोटे- छोटे क्षेत्रों में एक -दो प्रतिशत वोट को भी अपने पाले में लाया जाए. लेकिन ये प्रयोग फेल है क्योंकि जिन पार्टियों का वोट शेयर हैं वो मोटे तौर पर दोनों ही दलों में नहीं हैं. इसका उदाहरण मायावती की पार्टी बीएसपी है.
अश्क ने कहा कि विपक्षी गठबंधन ने मायावती, जगन मोहन रेड्डी, चन्द्रबाबू नायडु को छोड़ कर पहली और सबसे बड़ी गलती की है. ये सभी ऐसे नेता रहे हैं जिन्होंने अपने-अपने राज्यों की शासन किया है. इनका प्रभाव विपक्षी गठबंधन के साथ नहीं जुड़ने पर पूरे विपक्ष को नुकसान पहुंचाएगा.
अश्क ने कहा कि विपक्ष को सबसे ज्यादा नुकसान यूपी में होगा. मायावती दलितों की नेता हैं. जितना प्रभाव उनका यूपी के दलितों में है. बीएसपी का वोट प्रतिशत यूपी में 13 फीसदी के करीब है. बीजेपी जब एक-एक प्रतिशत वोट बैंक वाली पार्टियों को अपने पाले में ला रही है तो 10 फीसदी ज्यादा वोटबैंक रखने वाली बीएसपी को विपक्ष दलों का गठबंधन पीछे कैसे छोड़ सकता है.
क्या बीजेपी के साथ जा सकती हैं मायावती
वरिष्ठ पत्रकार ओम सैनी ने एबीपी न्यूज को बताया कि मायावती यूपी में एनडीए के साथ सरकार चला चुकी हैं. इसलिए ये मान के चलना चाहिए कि मायावती का मन एनडीए से मिल सकता है. मायावती ये जरूर सोच सकती हैं कि जब द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाया जा सकता है तो उन्हें क्यों नहीं. मायावती के साथ आने पर बीजेपी को भी फायदा होगा क्योंकि देश में कुल दलित आबादी 18 -20 प्रतिशत है. बीजेपी इन समुदायों को साधना चाहेगी.
एक तरफ जहां कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों ने ये मांग की थी कि नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से कराया जाए. बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने नए संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कराए जाने का समर्थन किया था.
उन्होंने कहा कि संसद की नई इमारत का निर्माण सरकार ने कराया है, इसलिए प्रधानमंत्री को इसका उद्घाटन भी कराने का पूरा अधिकार है . मायावती ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से नए संसद भवन के उद्घाटन की मांग से भी असहमति जताई. बीएसपी सुप्रीमो मायावती विपक्ष से दूरी बनाते हुए खुलकर केंद्र सरकार के बचाव में आ गईं हैं. सैनी ने कहा कि निश्चित ही दोनोे ही अपना फायदा अभी से देख रहे हैं.
क्या मायावती के लिए ये फ़ायदे की राजनीति साबित होगी
मायावती ने तीन बार बीजेपी के समर्थन में अपनी सरकार बनाई है. साल 1995, 1997 और 2002 में बीजेपी के समर्थन में उनकी सरकार बनी, हालांकि तीनों बार उनकी सरकार को गिराने का काम भी बीजेपी ने ही किया. इस दौरान बीएसपी ने कई हिंदी भाषी राज्यों में भी आंशिक कामयाबी दर्ज की. नए सामाजिक समीकरण साधते हुए 2007 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने पहली बार पूर्ण बहुमत हासिल कर सरकार बनाई जो पूरे पांच साल चली. 2007 के बाद बीएसपी का जनाधार लगातार सिकुड़ता गया. 2022 के विधानसभा चुनाव में उन्हें महज एक ही सीट मिली. बीएसपी ने दलित और अति पिछड़ी जातियों का जो वोट बैक कांग्रेस से छीना था, उसका भी बहुत बड़ा हिस्सा अब बीजेपी के पास है.
मायावती के हाल के कई बयानों से भी बहुत कुछ ज़ाहिर होता है. मायावती अब राजनीतिक नारों से भी पीछा छुड़ाती दिख रही हैं. कभी इन्हीं नारों के सहारे वे उत्तर भारत में दलितों और अति पिछड़े वर्गों यानी बहुजन समाज की शीर्ष नेता बनी थीं.
वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश अश्क ने एबीपी न्यूज को बताया कि बीजेपी के साथ गठबंधन करना मायावती के लिए कोई नई बात नहीं होगी. जिस तरह से वो पुराने नारे से खुद को बचा रही हैं वो इस बात की तरफ एक इशारा हो सकता है.
मायावती की सियासी ताकत, कर सकती है विपक्ष को कमजोर?
बीएसपी प्रमुख मायावती देश में दलितों की सबसे बड़ी नेता हैं, ये भी सच है कि लगातार उनका सियासी आधार सिमटता जा रहा है. मायावती ने 2019 के लोकसभा चुनाव यूपी में सपा के साथ मिलकर लड़ा था. बीएसपी ने देश भर में 351 कैंडिडेट उतारे थे, लेकिन यूपी में ही उन्हें जीत मिली थी. हालांकि, एक समय बीएसपी यूपी से बाहर हरियाणा, पंजाब और एमपी में जीत दर्ज करती रही है.
बीएसपी के दलित वोटबैंक का बड़ा हिस्सा छिटक कर कुछ बीजेपी के साथ तो कुछ दूसरी पार्टियों के साथ चला गया है. यूपी में मायावती के पास अब भी 13 फीसदी के करीब वोट हैं. दूसरे राज्यों में भी दलित समुदाय के बीच उनका सियासी आधार है. बीएसपी के पास अभी 10 लोकसभा सांसद भी हैं.
क्या 2024 की इन सीटों पर बीएसपी की वजह से होगा विपक्ष को नुकसान
वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) 80 सीटों वाली उत्तर प्रदेश लोकसभा सीट में से 10 सीटों पर जीत हासिल की थी. इन 10 सीटों में अम्बेडकर नगर, अमरोहा, बिजनौर, गाजीपुर, घोषी, जौनपुर, लालगंज, नगीना, सहारनपुर, और श्रावस्ती शामिल हैं. चुनाव आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में बीएसपी का कुल वोट शेयर 12. 77 प्रतिशत है. यूपी के अलावा इससे सटे राज्यों बिहार, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़, राजस्थान, में भी बीएसपी का कुछ इलाकों में मतदाताओं पर प्रभाव है.
चुनाव आयोग की रिपोर्ट उत्तराखंड में बीएसपी का कुल वोट शेयर 4. 70 प्रतिशत है. पंजाब में 1.88 प्रतिशत है.
वहीं हरियाणा में 2019 के चुनाव से पहले इनेलो और बीएसपी के बीच गठजोड़ रहा. इनेलो को बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने के बाद ही मान्यता प्राप्त दल का दर्जा प्राप्त हुआ था. फरवरी 1998 में 12वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में हरियाणा में इनेलो को चार और बीएसपी को एक सीट मिली थी.
ओम प्रकाश अश्क ने कहा कि जहां पर भी बीएसपी का वोट शेयर है अगर चुनावों से पहले सुप्रीमो के स्तर पर कोई फरमान जारी होता है तो उनके समर्थक उसे मानेंगे. मध्य प्रदेश या बिहार में भले ही मायावती का शासन नहीं रहा है लेकिन उनका एक समर्थक तबका है, मायावती के उम्मीदवार बिहार में भी जीतते रहे हैं. इस स्थिति में एनडीए या विपक्ष को मायावती को अपने साथ लाना चाहिए. मायावती जिसके खिलाफ गईं, नुकसान जरूर पहुंचाएंगी.