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Uniform Civil Code: समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) को लेकर इन दिनों देशभर में चर्चा जारी

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नई दिल्ली, Uniform Civil Code। समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) को लेकर इन दिनों देशभर में चर्चा जारी है और संभावना जताई जा रही है कि केंद्र सरकार जल्द ही इस कानून बनाने की दिशा में कदम बढ़ा सकती है, वहीं कई विपक्षी दल समान नागरिक संहिता का जमकर विरोध कर रहे हैं।

Uniform Civil Code की समीक्षा कर रहे विधि आयोग ने भी इस कानून के बारे में सुझाव देने की डेडलाइन को अब आगे बढ़ा दिया है। आयोग ने आम जनता के लिए सुझाव देने की डेडलाइन अब 14 जुलाई 2023 से बढ़ाकर 28 जुलाई 2023 कर दी है।

आपको बता दें कि विधि आयोग ने दूसरी बार Uniform Civil Code पर सुझाव मांगे है। इससे पहले 21वें विधि आयोग ने धार्मिक संगठनों और आम जनता से 2018 तक के कार्यकाल के दौरान सुझाव आमंत्रित किए थे। इसके बाद 22वें विधि आयोग ने कहा कि काफी ज्यादा समय बीत जाने के कारण समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर दोबारा से विचार-विमर्श करने की जरूरत है।

जानें क्या है UCC, क्या खत्म होंगे पर्सनल लॉ

Uniform Civil Code (UCC) देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून की वकालत करता है, जो किसी धर्म पर आधारित कानून नहीं होगा। Uniform Civil Code के आने के बाद पर्सनल लॉ के साथ-साथ गोद लेने और उत्तराधिकार से संबंधित कानूनों में बड़ा बदलाव देखा जा सकता है।

अभी किन समुदायों के है पर्सनल लॉ?

पर्सनल लॉ को पारिवारिक कानून के रूप में भी जाना जाता है। इसके अंतर्गत कानूनी प्रावधानों का एक समूह है, जो विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने, संरक्षकता और अन्य पारिवारिक मुद्दों से संबंधित मामलों को नियंत्रित करता है। पर्सनल लॉ कानून, किसी व्यक्ति की धार्मिक मान्यताओं पर अलग-अलग होते हैं और धार्मिक ग्रंथों, रीति-रिवाजों और परंपराओं से प्राप्त होते हैं।

हिंदू पर्सनल लॉ और मुस्लिम पर्सनल लॉ

देश में पर्सनल लॉ को विभिन्न धार्मिक समुदायों पर लागू होने वाले अलग-अलग कानूनों के आधार पर विभक्त किया गया है। हिंदू पर्सनल लॉ को हिंदू मैरिज एक्ट, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम और अन्य द्वारा संचालित किया जाता है, वहीं दूसरी ओर मुस्लिम पर्सनल लॉ कुरान और हदीस से लिए गए हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट के जरिए संचालित होते हैं। इसके अलावा ईसाइयों, पारसियों और अन्य धार्मिक समुदायों के लिए भी अलग-अलग कानून मौजूद हैं।

शादी के लिए अलग-अलग धर्म में ये कानून

हिंदू मैरिज एक्ट, 1955

हिंदू मैरिज एक्ट 1955 हिंदू धर्म के युवक-युवतियों के अधिकारों की रक्षा के लिए लाया गया था। हिंदू मैरिज एक्ट 1955 ऐसे लोगों पर लागू होता है, जो खुद को वीरशैव, लिंगायत और ब्रह्म, प्रार्थना या आर्य समाज का अनुयायी बताते हैं। इसके अलावा बौद्धों, सिखों और जैन धर्म से जुड़े लोगों पर भी हिंदू मैरिज एक्ट 1955 लागू होता है। हिंदू मैरिज एक्ट दरअसल हिंदू कोड बिल के हिस्से के रूप में पारित महत्वपूर्ण कानूनों में से एक है। हिंदू कोड बिल में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम 1956 और हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम 1956 जैसे कई एक्ट हैं। ये सभी एक्ट सामूहिक रूप से हिंदू समुदाय के भीतर उत्तराधिकार, संरक्षकता और गोद लेने से संबंधित मामलों की कानूनी स्थिति को स्पष्ट करते हैं।

भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1872

1872 के भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम के तहत भारत में ईसाइयों के बीच विवाह के नियम तय करता है। ईसाई विवाह अधिनियम के अंतर्गत तलाक के लिए विशिष्ट आधार परिभाषित किए गए हैं। भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1872 के अंतर्गत एक पति अपनी पत्नी द्वारा किए गए व्यभिचार के आधार पर तलाक मांग सकता है। आउटलुक की रिपोर्ट के अनुसार, पत्नी दूसरे धर्म में परिवर्तन के साथ-साथ अनाचार पूर्ण गलत विचार, दूसरा विवाह, दुष्कर्म और पाशविकता के मामलों में भी तलाक की मांग कर सकती है।

पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936

पारसी समुदाय के जुड़े विवाह व तलाक के मामलों में पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936 काम करता है। इस अधिनियम में बहुविवाह पर रोक लगाते हुए केवल एक पत्नी विवाह की अनुमति दी गई है। साल 2001 में इस अधिनियम के प्रावधानों को हिंदू विवाह अधिनियम के साथ जोड़ने के लिए कानून में संशोधन किया गया था। तलाक से संबंधित एक उल्लेखनीय संशोधन में कहा गया है कि लंबित गुजारा भत्ता (अस्थायी भरण-पोषण) या नाबालिग बच्चों के भरण-पोषण और शिक्षा के लिए आवेदन को मामले के आधार पर पत्नी या पति को नोटिस देने की तारीख से 60 दिनों के भीतर हल किया जाना चाहिए।

भारत में मुस्लिम विवाह अधिनियम

देश में मुस्लिम विवाह अधिनियम, हिन्दू मैरिज एक्ट से बिल्कुल अलग है, क्योंकि यह इस्लामी धार्मिक ग्रंथों और परंपराओं के आधार पर संचालित होता है। संसद ने समय-समय पर मुस्लिम विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह सहमति, उम्र, तलाक, विरासत और अन्य पहलुओं से संबंधित मामलों से निपटने के लिए कई संशोधन और अधिनियम पारित किए हैं। इसमें हाल ही में सबसे ज्यादा चर्चित तीन तलाक कानून था, जिसे मोदी सरकार ने हटाकर सामान्य तलाक का कानून लागू किया।

पर्सनल लॉ में ये कानून भी शामिल

  • 1869 का भारतीय तलाक अधिनियम
  • 1929 का बाल विवाह निरोधक अधिनियम
  • 1969 का विदेशी विवाह अधिनियम
  • 1880 का काजी अधिनियम
  • 1925 का भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम
  • 1909 का आनंद विवाह अधिनियम।

विरासत को लेकर भी अलग-अलग कानून

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम साल 1956 में लाया गया था। इसमें किसी व्यक्ति को बिना वसीयत की छोड़ी गई संपत्ति को नियंत्रित करने के लिए अधिनियमित किया गया है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 5-29 बिना वसीयत की संपत्ति के उत्तराधिकार से संबंधित है। इसमें संपत्ति का वितरण तब शामिल होता है, जब कोई व्यक्ति वैध वसीयत छोड़े बिना मर जाता है। गौरतलब है कि पहले हिंदू कानून के तहत महिलाओं को पुरुषों के बराबर हक नहीं दिया गया था और उन्हें संपत्ति और विरासत में समान अधिकार नहीं मिलता था, लेकिन साल 2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन के जरिए कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए। इस संशोधन के बाद संपत्ति और विरासत के मामलों में महिलाओं को अब समान अधिकार दिए जाने लगे हैं।

मुसलमानों में विरासत का शरिया कानून

मुस्लिम कानून के तहत विरासत को लेकर फैसला शरिया कानून के आधार पर किया जाता है। शरिया कानून मुसलमानों के लिए कानूनी ढांचे को नियंत्रित करता है। कानून के तहत यदि कोई मुस्लिम व्यक्ति बिना वसीयत छोड़े मर जाता है तो ऐसी परिस्थिति में मृत व्यक्ति की संपत्ति, खर्चों और देनदारियों में कटौती के बाद कानूनी उत्तराधिकारियों के बीच वितरित की जाती है। इस संपत्ति वितरण को विरासत योग्य संपत्ति के रूप में जाना जाता है।