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One Nation One Election: पहली बार 1983, फिर 1999, 2015, 2017, 2018 में भी उठी मांग, जानें कब क्या-क्या दिए गए सुझाव

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One Nation One Election: केंद्र सरकार ने ‘एक देश एक चुनाव’ के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया है. इस कमेटी में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे समेत 8 लोगों को कमेटी में शामिल किया गया है.

हालांकि अधीर रंजन चौधरी ने कमेटी में शामिल होने से इनकार कर दिया है.

सरकार की ओर से जारी अधिसूचना में एक साथ चुनाव कराना राष्ट्रीय हित में करार दिया गया. अधिसूचना में लिखा गया है कि 1951-52 से 1967 तक लोकसभा और राज्यविधान सभाओं के चुनाव अधिकांशतः एक साथ कराए गए थे. इसके बाद ये चक्र टूट गया. अब, लगभग हर साल अलग-अलग जगह चुनाव होते रहते हैं. इस कारण सरकार और चुनाव आयोग का बहुत ज्यादा खर्च होता है. नियम यह होना चाहिए कि लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए पांच साल में एक बार में एक साथ चुनाव कराया जाए.

1983 में चुनाव आयोग ने फिर एक साथ चुनाव की उठाई मांग
भारत में एक साथ चुनाव कोई नई बात नहीं है. साल 1967 तक लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए गए. लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए 1951-52, 1957, 1962 और 1967 के दौरान एक साथ आयोजित किए गए थे. हालांकि 1968 और 1969 में कुछ विधानसभाओं और फिर 1970 में लोकसभा भंग हो जाने के कारण एक साथ चुनाव कराए जाने का चक्र बाधित हो गया.

इसके बाद चुनाव आयोग (ECI) ने 1983 में फिर एक साथ चुनाव कराने का विचार रखा था. आयोग ने अपनी पहली वार्षिक रिपोर्ट में सात प्रमुख कारण बताते हुए हुए लोकसभा और विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की थी. एक साथ चुनाव कराए जाने का सबसे मुख्य कारण खर्चों में काफी कमी को बताया गया था. हालांकि इस रिपोर्ट पर कार्रवाई नहीं की गई न ही इसे आगे की चर्चा के लिए नहीं रखा गया.

1999 में लॉ कमीशन की रिपोर्ट
साल 1999 में भारत के लॉ कमीशन ने अपनी 170वीं रिपोर्ट में चुनावी कानूनों में सुधार की बात कही. न्यायमूर्ति बीपी जीवन रेड्डी की अध्यक्षता वाले लॉ कमीशन ने कहा था, “हर साल किसी न किसी राज्य में चुनाव कराए जाने के सिस्टम को खत्म किया जाना चाहिए. 1967 के बाद लोकसभा और विधानसभाओं में एक साथ चुनाव कराए जाने का सिस्टम कई वजह से बाधित हुआ. हमें उस स्थिति में वापस जाना चाहिए. लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए पांच साल में एक बार एक चुनाव का होना चाहिए.”

2015 में संसदीय स्थायी समिति की 79वीं रिपोर्ट
दिसंबर 2015 में संसद की स्थायी समिति ने अपनी 79वीं रिपोर्ट में लोकसभा और विधानसभाओं में एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की थी. कांग्रेस सांसद ईएम सुदर्शन नचियप्पन की अध्यक्षता में समिति ने रिपोर्ट में कहा था कि एक साथ चुनाव कराने से हर साल भारी खर्च कम हो जाएगा. साथ ही चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) लागू होने से सामान्य शासन और विकास कार्यों पर गंभीर असर पड़ता है.

संसदीय स्थायी समिति की सिफारिश थी कि चुनाव दो चरणों में कराए जाए. इसमें कहा गया है कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 चुनाव आयोग को लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल खत्म होने से छह महीने पहले आम चुनाव को अधिसूचित करने की अनुमति देता है. उस समय समिति ने सुझाव दिया था कि विधानसभा चुनाव का प्रस्तावित पहला चरण नवंबर 2016 में आयोजित किया जा सकता है. जिन राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल निर्धारित चुनाव तारीख से पहले या बाद में छह महीने से एक साल के भीतर खत्म हो रहा है, वहां एक साथ चुनाव कराया जा सकता है.

2017 में नीति आयोग का वर्किंग पेपर
नीति आयोग ने जनवरी 2017 में ‘एक साथ चुनाव का विश्लेषण: क्या, क्यों और कैसे’ नाम से एक वर्किंग पेपर तैयार किया. रिपोर्ट में एक साथ चुनाव कराए जाने का विश्लेषण किया गया और एक रूपरेखा तैयार की गई. नीति आयोग के मेंबर बिबेक देबरॉय और किशोर देसाई ने रिपोर्ट में बताया, 2009 चुनाव में सरकारी खजाने से लगभग 1115 करोड़ और 2014 चुनाव में लगभग 3870 करोड़ का खर्च हुआ. पार्टियों और उम्मीदवारों का खर्चा भी जोड़ा जाए तो कुल खर्च कई गुना ज्यादा हो जाएगा.

वर्किंग पेपर की रिपोर्ट में कहा गया कि बार-बार चुनाव का एक बड़ा अमूर्त प्रभाव यह है कि सरकारें और राजनीतिक दल लगातार ‘प्रचार’ मोड में रहते हैं. पार्टियों का चुनाव मोड से बाहर निकलना बहुत जरूरी है. पांच साल बाद चुनाव होने से मानसिकता में बड़ा परिवर्तन आ सकता है. इससे संभावित रूप से सरकारें अगले चुनाव की चिंता किए बिना विकास पर ध्यान केंद्रित कर सकती हैं.

2018 लॉ कमीशन ड्राफ्ट रिपोर्ट
अप्रैल 2018 में कानूनी मामलों का विभाग (The Department of Legal Affairs) ने लॉ कमीशन से एक साथ चुनाव कराए जाने के मुद्द पर जांच कर रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बीएस चौहान की अध्यक्षता में कमीशन ने इस विषय पर एक ड्रॉफ्ट रिपोर्ट पेश की. कमीशन ने एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में अपनी रिपोर्ट दी. साथ ही इस संबंध में पहले राजनीतिक दलों से विचार विमर्श करने के लिए भी कहा.

रिपोर्ट में ये भी सुझाव दिया कि संविधान के मौजूदा फ्रेमवर्क के साथ एक साथ चुनाव नहीं कराया जा सकता है. इसके लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता है. साथ ही कम से कम 50 फीसदी राज्यों को संवैधानिक संशोधनों की पुष्टि करनी होगी. लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 और लोकसभा राज्य विधानसभाओं की प्रक्रिया के नियमों में भी संशोधन करने की बात कही.

लॉ कमीशन ने एक साथ चुनाव कराए जाने के तीन ऑप्शन दिए. पहला ऑप्शन- कुछ राज्यों में चुनाव का समय आगे बढ़ाकर या स्थगित करके 2019 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ करा दिए जाए. दूसरा ऑप्शन- पांच साल में दो बार चुनाव कराए जा सकते हैं. पहले 2019 में लोकसभा चुनाव के साथ 13 राज्यों में चुनाव करा दिए जाए. फिर 2021 में बाकी बचे 13 राज्यों में एक साथ विधानसभा चुनाव आयोजित किए जा सकते हैं. तीसरा ऑप्शन- हर साल होने वाले सभी विधानसभा चुनावों को एक साथ कराया जा सकता है.